समाचार और आलेख

Term Path Alias

/sub-categories/news-and-articles

पर्यावरण प्रदूषण से जूझते बुग्याल
प्रकृति ने हमें हरे-भरे जंगल व बुग्याल, बर्फीले पहाड़, कलकल करती अविरल बहती नदियाँ, झीले और प्राकृतिक सौन्दर्यता को मनोरंजन के साधन के रूप में प्रदान किया है लेकिन आज के इस मौज मस्ती भरे मानवीय क्रिया-कलापों से इन संसाधनों का अस्तित्व बढ़ते प्रदूषण के कारण संकट में आ गया है। आज ये प्राकृतिक संसाधन धीरे- धीरे प्रदूषित हो रहे हैं। इसी प्रदूषण को झेलते सुनहरे बुग्यालों का भविष्य संकट की ओर जाता दिखाई दे रहा है। Posted on 08 Jul, 2024 07:22 AM

वर्तमान में हम खतरनाक रूप की समस्या से घिरे हुए हैं और यह समस्या भविष्य में हमारे लिये जानलेवा भी हो सकती है। इस भयंकर पर्यावरणीय समस्या के मुख्य कारण हैं- औद्योगीकरण, शहरीकरण, वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाने वाले उत्पाद जो सामान्य जीवन की दैनिक जरूरतों के रूप इस्तेमाल किए जाते हैं। पेट्रोल और डीजल गाड़ियों का अत्याधिक उपयोग होने और उनसे निकले धुएँ से प्रदूषण की समस्या उत्

औली बुग्याल, उत्तराखंड में एक घास का मैदान। (फोटो सौजन्य: विकिमीडिया कॉमन्स, फोटो - संदीप बराड़ जाट)
क्या समुद्री खाद्य शृंखलाएं जलवायु परिवर्तन से बदल जाएंगी
तेजी से हो रहे निरंतर जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में समय के साथ तेजी से पोषक तत्वों की कमी होती जाएगी। एक शोध का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन का दक्षिण प्रशांत, हिंद-प्रशांत, पश्चिम अफ्रीकी तट और मध्य अमरीका के पश्चिमी तट पर स्थित देशों की समुद्री खाद्य श्रृंखलाओं पर प्रतिकल प्रभाव पड़ने की आशंका है। Posted on 08 Jul, 2024 06:49 AM

जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हुई भीषण तपन ने एक ओर पृथ्वी के ध्रुवों और हिमनदों को पिघलने पर मजबूर कर रखा है, वहीं समुद्री जल स्तर को बढ़ाने पर भी तुली हुई है। जलवायु परिवर्तन से समुद्रों और महासागरों के तापमान में वृद्धि के साथ-साथ वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर भी बढ़ रहा है। कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि से महासागरों की अम्लीयता बढ़ रही है। सारू रूप में देखा जाए तो जलवायु परिवर्तन के क

प्रतिकात्मक तस्वीर, फोटो स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
गंगा नदी का धार्मिक महत्व : आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति का प्राण-तत्व
गंगा नदी भारतीय जीवन के हर पहलू में गहराई से जुड़ी है और इसका सम्मान और संरक्षण सभी के लिए आवश्यक है। प्राचीन काल से नदिया मां की तरह हमारा भरण पोषण कर रही हैं। यदि हमने इनका समुचित संरक्षण किया तो मां रूपी नदियों का सेहिल छाया हमारी आने वाली पीढ़ियों पर भी बनी रहेगी। Posted on 07 Jul, 2024 08:56 AM

गंगा नदी का महत्व वैश्विक स्तर और वैश्विक समुदाय में पवित्र नदी की तरह है। इस अवधारणा के कारण वैश्विक समुदाय में नदियों के महत्व, उपादेयता और संरक्षण की आवश्यकता, जागरूकता, नदियों के प्रति वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण का वर्णन करना है। वैश्विक स्तर पर गंगा नदी की उपादेयता, जल के स्रोत, ऊर्जा दायिनी, मनुष्य के जीवन रेखा, पारिस्थितिकी एवं सांस्कृतिक विरासत के अभिन्न अंग हैं। गंगा नदी का महत्व भा

प्रतिकात्मक तस्वीर
दिमाग खाने वाला अमीबा - ब्रेन ईटिंग अमीबा : जलवायु संकट की देन
नेगलेरिया फाउलेरी एक अमीबा है जो जल में पाया जाता है और यह जीवाणु नहीं होता है, बल्कि एक स्वतंत्र जीव होता है। यह अमीबा आमतौर पर गरम जल के तालाबों, झीलों, नदियों और झरनों में पाया जाता है। यह जीव विशेष रूप से गरम जल में बढ़ता है और यह इंसानों के नाक और मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। यह अमीबा ब्रेन में प्रवेश करके अत्यधिक गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है, जिसे प्राइमरी अमीबिक मेनिंजिटिस कहा जाता है। इसके लक्षण में बुखार, सिरदर्द, अक्सर बदलते दिमाग की स्थिति, और अक्सर असमान्य व्यवहार शामिल हो सकते हैं। जानिए लक्षण और बचाव के उपाय
Posted on 07 Jul, 2024 05:46 AM

केरल के कोझिकोड में दिमाग खाने वाले अमीबा ने एक 14 साल के बच्चे की जान ले ली है। इस लड़के का नाम मृदुल है, और वह एक छोटे तालाब में नहाने गया था, जिसके बाद वह संक्रमित हो गया। इस बीमारी को “अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस” (पीएएम) कहा जाता है, जो नेगलेरिया फॉलेरी नामक अमीबा के कारण होती है। पानी के जरिए यह अमीबा शरीर में प्रवेश करता है, तो मात्र चार दिनों के अंदर यह इंसान के नर्वस सिस्टम (यानी दिमाग)

नेगलेरिया फाउलेरी, फोटो साभार - http://www.dpd.cdc.gov
जल का महत्व निबंध : समस्या और समाधान
आज लखनऊ में भी भूजल स्तर प्रति वर्ष तीन फीट नीचे जा रहा है। शहर की झीलें और तालाब सूखे पड़े हैं तथा अनाधिकृत कब्जे में है। शहर की अधिकांश भूमि पक्की होने के कारण वर्षा जल रिचार्ज होने के बजाय बह जाता है। भविष्य में भारी जल संकट आ सकता है। इससे बचाव के लिए आवश्यक है कि लखनऊ के सभी तालाब, झील, नदी अतिक्रमण से मुक्त कराकर उनमें पर्याप्त जल रहे, उनके आसपास अधिक से अधिक पीपल, बरगद, पाकड़ के पेड़ लगाये जाएं, बड़े-बड़े मकानों का नक्शा स्वीकृत करने के समय छत के पानी की रिचार्जिग व्यवस्था यानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य किया जाय। Posted on 05 Jul, 2024 08:35 AM

हमारे जीवन में चौबीस घंटे जल की आवश्यकता होती है। प्रातःकाल उठने के बाद नित्य क्रिया हेतु जल आवश्यक है। कपड़ा साफ करना, घर की सफाई, बर्तनों की सफाई, घर का निर्माण करने के पूर्व पर्याप्त जल की व्यवस्था करना होता है। जल हमारी दिनचर्या का अंग है। खेती का कार्य, पौधों को लगाना तथा उन्हें पालकर बड़ा करना जल के बिना संभव नहीं है। जहां जल नहीं है वहां पेड़-पौधे नहीं है। यहां तक कि बिना जल के घास का एक

भूगर्भ जल यानी भूजल हर वर्ष 3 फिट नीचे जा रहा है लखनऊ में
उत्तर कोरिया सरकार ने मानव मल एकत्र करने के लिए आदेश क्यों दिया है
उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के एक नए आदेश के बारे में जानना चाहिए कि उन्होंने कोरिया की जनता से 10 किलोग्राम मानव मल एकत्र करने का आदेश दिया है। ताकि उसे खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। हालांकि यह आदेश उत्तर कोरियाई लोगों के लिए पूरी तरह से नया नहीं है, क्योंकि वे पहले से ही सर्दियों में खाद के रूप में मानव मल का उपयोग करते आए हैं। Posted on 03 Jul, 2024 07:08 AM

उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के एक नए आदेश के बारे में जानना चाहिए कि उन्होंने कोरिया की जनता से 10 किलोग्राम मानव मल एकत्र करने का आदेश दिया है। ताकि उसे खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। हालांकि यह आदेश उत्तर कोरियाई लोगों के लिए पूरी तरह से नया नहीं है, क्योंकि वे पहले से ही सर्दियों में खाद के रूप में मानव मल का उपयोग करते आए हैं। हालाँकि, इस बार यह आदेश गर्मियों में भी मानव मल एक

प्रतिकात्मक तस्वीर
बदलते मौसम का विज्ञान
दलते मौसम का कहर केवल हमारे देश पर ही नहीं हैं, दुनिया भर में यह बीमारी फैल चुकी है. मौसम में हो रहे इन बदलावों का कारण जानने के लिए दुनिया भर में अनुसंधान हो रहे हैं. नए-नए सिद्धांत प्रतिपादित किए जा रहे हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार अन्य कारणों के अलावा वायुमंडल में मौजूद दो गैसें ओजोन और कार्बन डाइऑक्साइड-मौसम के निर्धारण और नियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. Posted on 02 Jul, 2024 09:09 AM

पिछले कई वर्षों में पूरा देश इस सदी के सबसे भंयकर सूखे की चपेट में था. सूखे ने करोड़ों की फसल बरबाद कर दी, हजारों पशुओं को मौत के कगार पर ला दिया और लाखों परिवारों को दाने-दाने के लिए मोहताज कर दिया. बदलते मौसम का कहर केवल हमारे देश पर ही नहीं हैं, दुनिया भर में यह बीमारी फैल चुकी है. मौसम में हो रहे इन बदलावों का कारण जानने के लिए दुनिया भर में अनुसंधान हो रहे हैं.

मौसम बदल रहा है
क्लाइमेट इमरजेंसी : गर बर्फ पिघलती जाए…
Posted on 29 Jun, 2024 04:14 PM

जिन वजहों से क्लाइमेट इमरजेंसी के हालात पैदा हुए हैं, उनमें से एक है ग्लोबल वॉर्मिंग के असर से ग्लेशियरों और ध्रुवीय इलाकों की बर्फ का पिघलना। हाल ही के वर्षों में वहां बर्फ इतनी तेजी से पिघलने लगी है कि जिसे देखकर डर लगता है। डर की वजह यह है कि इन इलाकों की एक सेंटीमीटर बर्फ पिघलने का असर 60 लाख लोगों पर पड़ता है। इसका अभिप्राय यह है कि इस तरह 60 लाख नए लोग डूब क्षेत्र की जद में आ जाते हैं। इस

ग्लेशियर का अस्तित्व खतरे में
क्लाइमेट इमरजेंसी हंगामा है क्यों बरपा
हवाएं अपना रुख बदल रही हैं। पूरी दुनिया में मौसमों की चाल ने ऐसी कयामत बरपाई है कि हर कोई हैरान-परेशान है। धरती पर रहने वाले तमाम जीव-जंतुओं से लेकर इंसान भी इस गफलत में पड़ गये हैं कि वह आखिर तेज गर्मी सर्दी से कैसे बचें। विज्ञान के तमाम आविष्कारों के बल पर हर परिस्थिति से लड़ने में सक्षम इंसान अब खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद से जूझने लगा है। ऐसा लग रहा है मानो पृथ्वी पर कोई प्राकृतिक या मौसमी आपातकाल लग गया है और उससे बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। Posted on 29 Jun, 2024 03:45 PM

प्राकृतिक (क्लाइमेट) इमरजेंसी या आपातकाल की बात कोई कपोल कल्पना नहीं है। बल्कि नवंबर, 2019 में विज्ञान के एक अंतर्राष्ट्रीय जर्नल-बायोसाइंस द्वारा भारत समेत दुनिया के 153 देशों के 11,258 वैज्ञानिकों के बीच एक शोध अध्ययन कराया, जिसका नतीजा यह है कि पिछले 40 वर्षों में ग्रीनहाउस गैसों के अबाध उत्सर्जन और आबादी बढ़ने के साथ-साथ पृथ्वी के संसाधनों के अतिशय दोहन, जंगलों के कटने की रफ्तार बढ़ने, ग्ले

जलवायु परिवर्तन आपातकाल के विरोध में प्रदर्शन
पहाड़ों पर बीस साल से घटती आ रही बर्फबारी और सिमटती नदियां
एक अध्ययन के अनुसार, साल 2003 के बाद से हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में सबसे कम बर्फबारी हुई है। उच्च हिंदू कुश हिमालय से निकलने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के जल प्रवाह का लगभग 23 प्रतिशत बर्फ के पिघलने से ही आता है। Posted on 28 Jun, 2024 03:16 PM

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के नए शोध के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) में इस साल असामान्य रूप से कम बर्फबारी से भारत में गंगा नदी बेसिन में रहने वाले 60 करोड़ से अधिक लोगों सहित अन्य समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। एचकेएच स्नो अपडेट-2024 के मुख्य लेखक शेर मुहम्मद ने कहा है कि गंगा नदी बेसिन में बर्फ पिघलने का योगदान 10.3 प्रतिशत है, जबकि ग्लेशियर पिघलने का योगदा

हिमालय से निकलने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के जल प्रवाह में कमी देखी जा रही है
×