उत्तराखंड से बर्बादी की रिर्पोट-1
श्रीनगर में मची भीषण तबाही के लिए निर्माणाधीन श्रीनगर जल विद्युत परियोजना जिम्मेदार है। परियोजना का निर्माण करवा रही जीवीके कंपनी ने डैम साइट कोटेश्वर से किलकिलेश्वर तक नदी किनारे लाखों ट्रक मिट्टी डंप की। इस कारण इस क्षेत्र में नदी की चौड़ाई कम हो गई। गत 16 एवं 17 जून को आई बाढ़ ने इस मिट्टी को काटना शुरू किया। जिससे नदी के जलस्तर में दो मीटर तक की बढ़ोतरी हो गई। सीमा सुरक्षा बल के परिसर में जहां बाढ़ ने तांडव मचाया वहां श्रीयंत्र टापू से नदी अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर के आकार में बहती है और उससे आगे नदी की चौड़ाई अचानक कम हो जाती है।श्रीनगर/अलकनन्दा नदी में आई विनाशकारी बाढ़ ने श्रीनगर में भी अपना तांडव दिखाया। नगर के एक बड़े हिस्से को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। बाढ़ ने एसएसबी अकादमी का परिसर, आईटीआई परिसर बुरी तरह तबाह हो गया। 70 आवासीय भवनों में रहने वाले सौ से अधिक परिवार बेघर हो गए हैं। इन मकानों में दस से बारह फीट तक मिट्टी भर गई है। घर का कोई भी सामान काम का नहीं रह गया है। 1970 में बेलाकूची की बाढ़़ की रिर्पोटिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉ. उमाशंकर थपलियाल का कहना है कि उस समय भी श्रीनगर में अलकनंदा नदी में लगभग इतना ही उफान था लेकिन तबाही इतनी नहीं हुई थी।
श्रीनगर में मची भीषण तबाही के लिए निर्माणाधीन श्रीनगर जल विद्युत परियोजना जिम्मेदार है। परियोजना का निर्माण करवा रही जीवीके कंपनी ने डैम साइट कोटेश्वर से किलकिलेश्वर तक नदी किनारे लाखों ट्रक मिट्टी डंप की। इस कारण इस क्षेत्र में नदी की चौड़ाई कम हो गई। गत 16 एवं 17 जून को आई बाढ़ ने इस मिट्टी को काटना शुरू किया। जिससे नदी के जलस्तर में दो मीटर तक की बढ़ोतरी हो गई। सीमा सुरक्षा बल के परिसर में जहां बाढ़ ने तांडव मचाया वहां श्रीयंत्र टापू से नदी अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर के आकार में बहती है और उससे आगे नदी की चौड़ाई अचानक कम हो जाती है। इस कारण उस दिन जब बाढ़ के साथ श्रीनगर परियोजना की मिट्टी आई तो वह उतनी मात्रा में आगे नहीं जा पाई जितनी की बाढ़ प्रभावित क्षेत्र तक आई थी। फलस्वरूप पानी के साथ आई यह मिट्टी एसएसबी, आईटीआई तथा शक्ति विहार क्षेत्र में जमा होने लगी। क्षेत्र से जब बाढ़ का पानी उतरा तो लोगों के होश उड़ गए। इस क्षेत्र के 70 आवासीय भवन एसएसबी अकादमी का आधा क्षेत्र, आईटीआई, खाद्य गोदाम, गैस गोदाम, रेशम फार्म में 12 फीट तक मिट्टी जमा हो गई। कई आवासीय भवन तो छत तक मिट्टी में समा गए हैं। इन घरों में रहने वाले लोगों की जीवन भर की पूंजी जमीदोज हो गई।
एक प्रभावित विनोद उनियाल का कहना है कि इस बाढ़ में उनके घर के अंदर कमरों में आठ फीट तक मिट्टी जमा हो गई है। जीवन भर की कमाई का सारा सामान बर्बाद हो चुका है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जीवन अब कैसे चलेगा। शक्ति विहार मोहल्ले में किराना की दुकान से आजीविका चलाने वाले संतोष चन्द्र नौटियाल पर तो इस आपदा की दोहरी मार पड़ी है। मकान के साथ साथ इनकी दुकान का सारा सामान मलबे में दफन हो गया है। जिससे उनके सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है।
एससबी अकादमी के निदेशक एस. बंदोपाध्याय की माने तो अकेले अकादमी को लगभग सौ करोड़ का नुकसान हुआ है। इस हिसाब से देखा जाए तो श्रीनगर क्षेत्र में कुल नुकसान का आंकड़ा तीन सौ करोड़ तक जा सकता है। इसके अलावा देवप्रयाग में भी जलविद्युत परियोजनाओं की मिट्टी से कई सरकारी एवं आवसीय भवन अटे पड़े हैं। श्रीनगर जल विद्युत परियोजना द्वारा नदी किनारे अवैध रूप डंप की गई मिट्टी अब गायब है और नदी क्षेत्र पूर्व की तरह दिखाई देने लगा है। श्रीकोट में इस तरह की तबाही नहीं हुई वहां भी नदी किनारे बहुत से मकान हैं। दरअसल श्रीकोट के कुछ आगे चौरास झूला पुल से किलकिलेश्वर तक परियोजना की ज्यादातर मिट्टी डंप की गई थी। इस कारण श्रीकोट इस तबाही से बच गया।
भू-वैज्ञानिक डॉ. एस.पी. सती का कहना है कि उत्तराखंड में बाढ़ से हुई तबाही मे यहां बन रही जल विद्युत परियोजनाओं का बहुत बड़ा हाथ है। श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की पांच लाख घनमीटर मिट्टी अलकनंदा के किनारे डंप की गई। जब नदी में बाढ़ आई तो उससे तेजी से यह मिट्टी पानी के संपर्क में आई और इससे नदी का आकार एकाएक बढ़ गया। क्योंकि यह मिट्टी श्रीनगर के ठीक सामने थी इसलिए यह बाढ़ के कारण श्रीनगर के निचले इलाकों में जमा हो गई और तबाही का कारण बनी।
(देवप्रयाग से लगभग 30 किलोमीटर, अलकनंदागंगा पर बनी 330 मेगावाट की यह परियोजना तमाम पर्यावरणीय शर्तो को दरकिनार करके सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक दवाब के कारण आगे बढ़ाई गई है। इसकी जानकारी हम दे सकते है।)
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