उत्तराखंड

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उत्तराखंड त्रासदी से सही सीख लेने की जरूरत
Posted on 29 Sep, 2013 10:51 AM पहाड़ के निचले इलाकों में उद्योग लगाने के लिए लाइसेंस जारी किए गए ह
उत्तराखंड: निर्माण के मापदंडों का निर्धारण
Posted on 21 Sep, 2013 03:44 PM महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हमारे पास हिमालय की बहुत कम जानकारी है और
उत्तराखंड बांध त्रासदी, भाग -3
Posted on 17 Sep, 2013 10:12 AM आपदा प्रबंधन में लगी सरकार को फुर्सत कहां की वो नई आपदाओं को रोकने
उत्तराखंड बांध त्रासदी, भाग -2
Posted on 12 Sep, 2013 10:23 AM

आपदाग्रस्त उत्तराखंड में टी.एच.डी.सी. की मनमानी

उत्तराखंड बांध त्रासदी, भाग -1
Posted on 10 Sep, 2013 12:02 PM विष्णुप्रयाग बांध आपदा संघ द्वारा एक पत्र सरकार के संबंधित विभागों
बांधों से बढ़ गया बाढ़ का संकट
Posted on 03 Sep, 2013 04:10 PM होशंगाबाद जिले की दुधी, मछवासा, ओल, कोरनी आदि सभी नदियां सतपुड़ा से निकली हैं। नाम भी बहुत अच्छे हैं। दुधी यानी दूध जैसा साफ पानी
flood
उम्मीद की सूरत
Posted on 01 Sep, 2013 01:58 PM गंगोत्री लगभग जनशून्य थी। वहां कुल तीन दुकानें खुली थी, जिनमें से दो पूजा सामग्री की और एक परचून की। यात्रियों के नाम पर बीस-पच्च
आपदा के बाद उत्तराखंड
Posted on 01 Sep, 2013 01:49 PM उत्तराखंड की आपदा ऐसे छोड़ गई है जिसकी टीस मिटने में लंबा वक्त लगेगा। दो महीने बाद भी कहीं राहत सामग्री और मुआवजे की बंदरबांट चल रही है तो कहीं मलबों में दबे शव डीएनए परीक्षण के इंतजार में दुर्गंध फैला रहे हैं। प्रशासन की उदासनता और हीलाहवाली लोगों की तकलीफ़ को और बढ़ा रही है। इस उथल-पुथल की दास्तान बयान कर रहे हैं गुंजन कुमार साथ में शंभूनाथ शुक्ल का यात्रा अनुभव।

आपदा के शुरुआती दिनों में आपदाग्रस्त गाँवों में हेलिकॉप्टर से बिस्कुट, पानी वगैरह गिराया गया था। उसके बाद लोग रोज़ाना दर्जनों बार हेलिकॉटर को अपने गांव के ऊपर से उड़ान भरते देखते हैं। जैसे ही किसी हेलिकॉप्टर की आवाज़ इनके कानों में पड़ती है तो सभी अपने आंगन में आकर आसमान को निहारने लगते हैं। ऐसा करते हुए इन्हें दो महीने हो गए हैं। लेकिन एक भी पैकेट अन्न इस क्षेत्र में नहीं गिरा। राहत सामग्री नहीं मिलने के कारण घाटी के लोगों पर भुखमरी का संकट गहराने लगा है। आपदा के दो महीने बाद भी उत्तराखंड में केदारनाथ इलाके की हकीक़त अब भी भयावह है। वहां मलबों में अब भी दबी लाशें डीएनए परीक्षण के इंतजार में दुर्गंध फैला रही हैं। भूख से तड़पते लोग हैं, मगर राहत सामग्री उन तक नहीं पहुंच पाई है। कालीमठ और मदमहेश्वर घाटी की सूरत-ए-हाल जानने के लिए जान जोखिम में डालकर उन दुर्गंध घाटियों में गया, जहां अभी तक कोई मीडियाकर्मी नहीं पहुंचा पाया था और न सरकारी कारिंदा। मुआवज़े का मरहम ज़ख्म तक पहुंचने से पहले ही प्रहसन में तब्दील हो रहा है। पीड़ा की घाटियों को जानने-समझने के क्रम में हमारा पहला पड़ाव ऊखीमठ था। इसी तहसील में केदारनाथ है, जो रुद्रप्रयाग जनपद में है। अगले दिन सबसे पहले ऊखीमठ का पैंज गांव जाना हुआ। बताया गया कि इस गांव के आठ लोग केदारनाथ के काल के गाल में समा गए, जिनमें पांच बच्चे थे।
अब दूसरी तबाही की तैयारी रोको
Posted on 31 Aug, 2013 10:23 AM मात्र 10 महीने पहले उत्तराखंड में गंगा की दोनों मुख्य धाराओं भागीरथ
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