राजस्‍थान के रास्‍ते महाविनाश की दस्‍तक

रेगिस्तान के सामने दीवार बनकर खड़ी अरावली की पहाड़ियां अब नंगी हो गई हैं और मरुस्थल की ताक़त के समक्ष दम तोड़ने लगी हैं. उपग्रह से लिए गए चित्र बताते हैं कि किस तरह रेगिस्तान इस अरावली की कमज़ोर हो चुकी दीवार में सेंध लगाकर अपना आकार बढ़ाने पर आमादा है. इन चित्रों में साफ नज़र आता है कि रेगिस्तान की रुकावट बनी अरावली की पहाड़ियों में नौ दर्रे बन गए हैंजहां से रेगिस्तान का प्रसार हो रहा है. इन दर्रों के ज़रिए रेत लगातार दक्षिणी राजस्थान की ओर बढ़ रही है.

यह पंचांग बांचने वाले किसी पंडित की भविष्यवाणी नहीं है. यह सरहद पार के किसी दुश्मन की साजिश भी नहीं है. यह हमारी अपनी करनी है, जिसका फल हमें भुगतना पड़ेगा. जी हां, राजस्थान के रास्ते महाविनाश देश में दस्तक दे रहा है. थार मरुस्थल के लिए पहचाना जाने वाला राजस्थान हमें अपने मतलबपरस्त और अदूरदर्शी कामों के लिए सजा देने का ज़रिया बनेगा. जब यह महाविनाश आएगा तो किसी की तिजोरी में जमा धन काम नहीं आएगा. कोई चाहे कितना अमीर या पावरफुल हो, सब इसकी जद में होंगे. और, यह भयानक नज़ारा अब हमसे दूर नहीं है. हमारी अपनी ही बनाई गई व्यवस्था में वह एक-एक क़दम आगे बढ़ाता जा रहा है. मौजूदा पीढ़ी शायद इसकी आहट ही महसूस कर रही हो, लेकिन आने वाली पीढ़ियों को हमारे कर्मों का फल ज़रूर भुगतना पड़ेगा. इस महाविनाश में थार का मरुस्थल महज़ राजस्थान की दुखती रग नहीं रहेगा, बल्कि यह आधे भारत की तकदीर बन जाएगा. बस मुश्किल से एक सदी का सफर बाक़ी बचा है इस आफत के आने में. आप फिलहाल स़िर्फ कल्पना कर सकते हैं कि आने वाली पीढ़ियों के लिए आप कितनी भयानक विरासत छोड़कर जा रहे हैं.

राजस्थान का कुल क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें क़रीब दो लाख वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा रेत के क़ब्ज़े में है. उत्तर में हिमालय और दक्षिण में नीलगिरी पहाड़ों के बीच 692 किलोमीटर की अरावली पर्वत श्रृंखला इस रेगिस्तान पर लगाम लगाने का काम करती रही है, लेकिन अब इन पहाड़ियों की ताक़त ख़त्म हो रही है. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और तटीय मरुस्थल पर पशुओं एवं इंसानों की बढ़ती आबादी ने इस क्षेत्र का पर्यावरण संतुलन बिगाड़ कर रख दिया है. रेगिस्तान के सामने दीवार बनकर खड़ी अरावली की पहाड़ियां अब नंगी हो गई हैं और मरुस्थल की ताक़त के समक्ष दम तोड़ने लगी हैं. उपग्रह से लिए गए चित्र बताते हैं कि किस तरह रेगिस्तान इस अरावली की कमज़ोर हो चुकी दीवार में सेंध लगाकर अपना आकार बढ़ाने पर आमादा है. इन चित्रों में साफ नज़र आता है कि रेगिस्तान की रुकावट बनी अरावली की पहाड़ियों में नौ दर्रे बन गए हैं, जहां से रेगिस्तान का प्रसार हो रहा है. इन दर्रों के ज़रिए रेत लगातार दक्षिणी राजस्थान की ओर बढ़ रही है.

दक्षिणी राजस्थान प्रदेश का वह इलाक़ा है, जो हरा-भरा, झील, नदियों और प्राकृतिक संपदा से भरपूर हुआ करता था. पिछले कई सालों से यहां भी बारिश का औसत बेहद कम हो गया है. नदी-नाले और झीलें सूख गई हैं. झीलों की नगरी कहे जाने वाले उदयपुर की झीलें अब सूखे मैदानों में तब्दील होती जा रही हैं. राज्य के इस भाग में कभी बारिश की कमी के कारण गंभीर अकाल की स्थिति नहीं बनी थी, लेकिन पिछले एक दशक से यह क्षेत्र भी अकाल और सूखे की चपेट में है. किसी व़क्त यहां छोटी-बड़ी क़रीब एक दर्ज़न नदियां वर्ष भर बहती थीं, लेकिन अब ऐसी कोई नदी नहीं बची. बारिश के दौरान जिन नदियों और झीलों में थोड़ा-बहुत पानी आ भी जाता है, वह भी कुछ महीनों में ख़त्म हो जाता है.

दरअसल अरावली के इस क्षेत्र को सरकारी शह पर कुछ इस तरह लूटा जा रहा है, जैसे किसी डूबने वाले जहाज में सवार लोग उसकी क़ीमती चीज़ें तोड़कर अपनी जेबों में भर रहे हों और यह भूल गए हों कि जिस दिन जहाज डूबेगा, उस दिन जेबों में भरा क़ीमती सामान उनके किसी काम नहीं आएगा. यहां मिलने वाला क़ीमती मार्बल ही इस क्षेत्र में आई समृद्धि का कारण रहा और अब वही यहां की बर्बादी की वजह भी बन रहा है. मार्बल के लालच में अरावली में भारी पैमाने पर वैध और अवैध खनन हो रहा है. इस वजह से जंगल ख़त्म हो रहे हैं और पहाड़ भी. इस खनन का सीधा असर पहाड़ों और जंगलों पर पड़ता है, लेकिन व्यापक स्तर पर देखा जाए तो यह तमाम पारिस्थितिकी तंत्र को मटियामेट कर रहा है. पहाड़ों और जंगलों के ख़त्म होने के कारण क्षेत्र में बारिश का औसत तेज़ी से कम हुआ है. साथ ही अरब सागर से आने वाले मानसून का राजस्थान पर मेहरबान होना भी दुश्वार हो गया है. इसके अलावा मार्बल खनन और उसकी प्रोसेसिंग यूनिटों से भारी मात्रा में सफेद पाउडर निकलता है, जो इंसानों के फेफड़ों में जमकर सांसें रोक देता है और ज़मीन पर फैलने के बाद उसकी पानी सोखने जैसी सामान्य प्रक्रियाओं को रोक देता है. यही वजह है कि बारिश होने के बावजूद पानी को बचा पाना मुश्किल हो जाता है. अलग-अलग हिस्सों में फैला पानी ज़मीन के नीचे चलने वाली अंतर्धाराओं के माध्यम से संरक्षित रहता है और नदियों या झीलों को वर्षपर्यंत भरा रखने में मदद करता है. यही अंतर्धाराएं भूमिगत जलस्तर का पैमाना होती हैं और कुएं आदि से सिंचाई एवं पेयजल की व्यवस्था का आधार भी. दक्षिणी राजस्थान की धरती पर यहां-वहां जमा हो रहा मार्बल पाउडर इस प्राकृतिक जल तंत्र को नष्ट कर रहा है और इसके प्रभाव भी साफ नज़र आने लगे हैं, लेकिन इंसान का लालच है कि बर्बादी की कगार पर आकर भी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा. इस लालच को सरकारी शह भी मिली हुई है, क्योंकि उसके बिना संरक्षित अरावली क्षेत्र को इस तरह लूटना संभव नहीं होता.

अरावली की पहाड़ियां देश के दो प्रमुख जल निकास प्रबंधों को अलग करती हैं. अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की तऱफ पानी ले जाने वाली नदियों के बीच अरावली दीवार की तरह खड़ी है. इसके पूर्व की तऱफ का पानी बंगाल की खाड़ी और पश्चिम का पानी अरब सागर में जाता है. इसी वजह से इसे ग्रेट इंडिया डिवाइडर कहा जाता है. इस पूरी प्राकृतिक व्यवस्था से पर्यावरण संतुलन बना रहता है और यदि यह संतुलन बिगड़ता है तो स़िर्फ राजस्थान नहीं, बल्कि समूचे उत्तर भारत में पर्यावरण की ख़तरनाक समस्याएं पैदा होती हैं. इस संतुलन के बिगड़ने से ही वर्षा का औसत घट रहा है और भूमिगत जलस्तर भी. अरावली के साथ हो रहे विनाशकारी दोहन के कारण राजस्थान के अलावा गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली पर सीधा असर पड़ने के हालात बन रहे हैं. इन राज्यों की तऱफ भी रेगिस्तान का फैलाव शुरू हो सकता है. इसकी शुरुआत धूल भरी आंधियों, भीषण गर्मी और बारिश की कमी जैसे संकेतों के रूप में हो चुकी है. दरअसल अरावली की पहाड़ियां ही गंगा के मैदान में धूल भरी आंधियों और रेत के फैलाव को रोकती हैं. अरावली के कमज़ोर होने पर रेगिस्तान की इस विभीषिका को रोकना मुश्किल होगा. अरावली में पैदा हुए दर्रों के रास्ते से जो रेत उड़कर राजस्थान के पूर्वी भागों से होते हुए आगरा तक पहुंच रही है, वह आने वाले भयावह कल का इशारा कर रही है. वनों की कमी, भूमि कटाव और अंधाधुंध खनन के कारण अरावली अब मरुस्थल को दक्षिण पूर्व की ओर बढ़ने से रोकने के लिए प्राकृतिक अवरोध के रूप में समर्थ नहीं रही. यहां पहाड़ों को काटकर उन्हें चट्टानी रेगिस्तान में तब्दील किया जा रहा है. रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने वाली अरावली पर्वत श्रंखला की सबसे ज़्यादा संवेदनशील, सबसे पहली एवं सबसे मोटी दीवार को जिस बेरहमी और वीभत्स तरीक़े से मिटाया जा रहा है, वह अपनी मां को नोच-नोचकर खा जाने से भी गंभीर अपराध है.
 

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