राजस्थान

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भारत का जल संसाधन
Posted on 25 Feb, 2009 10:05 AM

संपादक- मिथिलेश वामनकर/ विजय मित्रा

Rainwater harvesting natural method
सौर ऊर्जा से खारा पानी बनेगा मीठा
Posted on 23 Feb, 2009 06:12 PM


जोधपुर. बाड़मेर जिले के पचपदरा के पास स्थित पिछड़े व पेयजल संकट झेल रहे गांव रूपजी राजा बेरी के रहवासियों को अब खारे की जगह मीठा जल मिलेगा। जल प्रबंधन के लिए विश्व की नई तकनीक जल पिरामिड का इस गांव में उपयोग किया गया है। इसके माध्यम से सौर ऊर्जा का उपयोग कर खारे को मीठे जल में बदला जाएगा।

 

बावड़ियों ने सुलझाई पानी की समस्या
Posted on 23 Feb, 2009 09:42 AM
-विपिन दिसावर
‘बिन पानी सब सून’ यह कहावत शहरों के साथ-साथ गांवों और कस्बों और यहां तक कि जंगलों में भी लागू होती है। खासतौर पर संरक्षित वन क्षेत्रों में तो बिना पानी के वहां के आकर्षण को जीवंत रखना संभव ही नहीं है। ऐसे में बेहतर जल प्रबंधन का प्रयास ही कामयाब हो सकता है।

प्रत्येक स्तर पर हो जल संरक्षण
Posted on 21 Feb, 2009 07:03 AM
-रवि शंकर, भारतीय पक्ष

श्रीमती सविता गोखले (सचिव, अर्थकेयर फाउंडेशन) पर्यावरण प्रेमियों में एक जाना-माना नाम है। एक सफल व्यवसायी होने के बाद भी श्रीमती गोखले ने पानी की समस्या हेतु काम करना प्रारंभ किया। वे अर्थ केयर फाउंडेशन की कर्ताधर्ता हैं।
राज, समाज और पानी : पांच
Posted on 18 Feb, 2009 01:38 PM

 

अनुपम मिश्र


जमीन पर इस आदर्श के अमल की बात बाद में। अभी तो थोड़ा ऊपर उठ आसमान छूकर देखें। बादल यहाँ सबसे कम आते हैं। पर बादलों के नाम यहाँ सबसे ज्यादा मिलते हैं। खड़ी बोली, और फिर संस्कृत से बरसे बादलों के नाम तो हैं ही पर यहाँ की बोली में तो जैसे इन नामों की घटा ही छा जाती है, झड़ी ही लग जाती है। और फिर आपके सामने कोई 40 नाम बादलों के, पर्यायवाची नहीं, 40 पक्के नामों की सूची भी बन सकती है। रुकिए, बड़ी सावधानी से बनाई गई इस सूची में कहीं भी, कभी भी कोई ग्वाला, चरवाहा चाहे जब दो चार नाम और जोड़ दे यह भी हो सकता है।

भाषा की और उसके साथ-साथ इस समाज की वर्षा संबंधित अनुभव-सम्पन्नता इन चालीस, बयालीस नामों में चुक नहीं जाती। वह इन बादलों के प्रकार, आकार, चाल-ढाल, स्वभाव, ईमानदारी, बेईमानी - सभी आधारों पर और आगे के वर्गीकरण करते चलता है। इनमें छितराए हुए बादलों के झुंड में से कुछ अलग-थलग पड़ गया एक छोटा-सा बादल भी

Anupam Mishra
राज, समाज और पानी : तीन
Posted on 18 Feb, 2009 01:11 PM

 

अनुपम मिश्र


आज आपके सामने मैं इस विशाल मरुभूमि में फैले रेत के विशाल साम्राज्य की एक चुटकी भर रेत शायद रख पाऊँ। पर मुझे उम्मीद है कि इस ज़रा-सी रेत के एक-एक कण में अपने समाज की शिक्षा, उसकी शिक्षण-प्रशिक्षण परंपराओं, उसके लिए बनाए गए सुंदर अलिखित पाठ्यक्रम, इसे लागू करने वाले विशाल संगठन की, कभी भी असफल न होने वाले उसके परिणामों की झलक, चमक और ऊष्मा आपको मिलेगी।

आज जहाँ रेत का विस्तार है, वहाँ कुछ लाख साल पहले समुद्र था। खारे पानी की विशाल जलराशि। लहरों पर लहरें। धरती का, भूमि का एक बिघा टुकड़ा भी यहाँ नहीं था, उस समय। यह विशाल समुद्र कैसे लाखों बरस पहले सूखना शुरू हुआ, फिर कैसे हजारों बरस तक सूखता ही चला गया और फिर यह कैसे सुंदर, सुनहरा मरूप्रदेश बन गया, धरती धोरां री बन गया-

Anupam Mishra
फ़रहाद कॉण्ट्रेक्टर
Posted on 15 Feb, 2009 02:32 AM

एक कर्मठ शिष्य, एक “जल-दूत” हैं


एक पुस्तक किस प्रकार किसी व्यक्ति का समूचा जीवन, उसकी सोच, उसकी कार्यक्षमता और जीवन के प्रति अवधारणा को बदल सकती है, उसका साक्षात उदाहरण हैं गुजरात के फ़रहाद कॉण्ट्रेक्टर, जिन्हें उनकी विशिष्ट समाजसेवा के लिये “संस्कृति अवार्ड” प्राप्त हुआ है और जिनकी कर्मस्थली है सतत सूखे से प्रभावित राजस्थान की मरुभूमि। फ़रहाद जब भी कुछ कहना शुरु करते हैं, वे उस पुस्तक का उल्लेख करते हैं, सबसे पहले उल्लेख करते हैं, अपने कथन के अन्त भी उसी पुस्तक के उद्धरण देते हैं। बीच-बीच में वे पुस्तक के बारे में बताते चलते हैं, कि किस प्रकार कोई पुस्तक किसी को इतना प्रभावित कर सकती है।

well
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