हर लहर में समायी है लोक जीवन की गंध - डॉ. दीपक आचार्य
ऎतिहासिक गैप सागर झील डूंगरपुर के इतिहास और लोक जीवन की जाने कितनी धड़कनों की साक्षी रही है। पुराने जमाने से इसकी हर लहर नये-नये इतिहास की गवाह है। डूंगरपुर के बाशिन्दों ने गैप सागर के प्रति अगाध आस्था और प्रेम के वशीभूत होकर इसे आबाद रखने के जतन पिछले दशकों में खूब किये हैं और हर कोई चाहता है कि गैप सागर और डूंगरपुरवासियों के बीच किसी प्रकार का गेप पैदा न हो, शाश्वत रिश्ता हमेशा कायम रहकर खूशबू के कतरे फैलाता रहे, चेहरे खिलाता रहे। माटी की सौंधी गंध के बीच रमना और दिली सुकून पाना हर कोई चाहता है।
पर्वतों के शहर डूंगरपुर में पहाड़ियों और पर्यटन-स्थलों से घिरे हरियाली भरे नैसर्गिक रमणीय परिवेश के बीच ठण्ढी बयारों से हर किसी को सुकून देती गैप सागर झील डूंगरपुर के सौन्दर्य की प्रतीक रही है जहाँ कमल के खिले हुए फूल और देशी-विदेशी जल पक्षियों की उन्मुक्त जल क्रीड़ा के मनोहारी नज़ारे हर किसी को मुग्ध करते रहे हैं। हालांकि कुछ वर्षों से लगातार अतिक्रमणों, गंदगी और प्रदूषण की समस्या ने इस झील के अस्तित्व पर खतरा जरूर मण्डरा दिया है।
इसी से जुड़ी समस्याओं से झील को मुक्ति दिलाने को लेकर शहर भर के लोगों में खासा उत्साह कुछ-कुछ साल में उभर आता है। कुछ समय पहले यहां के जागरुक खिलाड़ियों ने झील की साफ-सफाई और इसके स्वरूप की बहाली का बीड़ा उठाया और शुरू कर दिया अभियान। बाद में कई संगठन, लोक सेवक और शहरी बाशिन्दे इसमें जुड़ते चले गये। इसी प्रकार के प्रयास गाहे-बगाहे होते रहे हैं। ये अभियान बताते हैं कि डूंगरपुर के लोगों का गैपसागर से कितना गहरा जुड़ाव रहा है। कहते हैं कि किसी जमाने में स्वर्णाभूषणों से लक-दक नागर ब्राह्मण जाति की महिलाएं इसके तट पर नहाती तो कई तोले सोना रोजाना यहां घिसता था।
अनूठी ऎतिहासिक विरासत है गैप सागर
डूंगरपुर के इतिहास और परंपराओं पर गहन शोधरत इतिहासज्ञ श्री महेश पुरोहित के अनुसार रियासत के 14 वें महारावल गैपा रावल द्वारा बनायी गई गैप सागर झील डूंगरपुरवासियों के लिए अस्मिता और गौरव-बोध की प्रतीक है जिसके प्रति हर किसी को गहरा दिली लगाव रहा है। शिलालेखों और प्रशस्तियों में गोपीनाथ, फारसी तवारीखों में गणेश राजा और जैन ग्रंथों एवं मूर्ति-लेखों में गइपाल देव के नाम से प्रसिद्ध गैपा रावल ने विक्रम संवत 1485 (ईस्वी 1428) में गैप सागर बनाया। इसका प्रमाण यहीं हनुमान मन्दिर के पास सड़क में दब गए नौ पंक्तियों के शिलालेख में मिलता है। इसमें अंकित गाय-बछड़े के चित्र से स्पष्ट है कि इसके निर्माण के वक्त दान की रस्में अदा की गई थी।
गैप सागर झील लोक मन से लेकर इतिहास, साहित्य और अध्यात्म तक में मशहूर रही है वहीं कई-कई जनश्रुतियां इससे जुड़ी रही हैं जिसके कारण इसके प्रति लोक श्रद्धा का भाव सदा से विद्यमान रहा है। प्रकृतिप्रेमी गैपा रावल ने गैप सागर की लहरों का सौन्दर्य निहारने गैप सागर के पाश्र्व में ‘भागा महल’ बनवाया और बाद में इस झील की जलराशि के बीच बादल महल बनवाया। संत मावजी महाराज ने गैप सागर के बारे में भविष्यवाणी की, वहीं वागड़ की मीरा के रूप में प्रसिद्ध भक्तिमती गवरी बाई तक ने गैप सागर को अपने पदों में ‘गैप सागर गंग’ कहकर इसकी प्रशस्ति गायी है।
क्षेत्रफल के लिहाज से देखा जाए तो अपने चारों तरफ चार घाट वाला गैप सागर 279 बीघा 2 बिस्वा (44.5 हैक्टर) है जिसके मुख्य घाट की लम्बाई ही 700 फीट और ऊँचाई 100 फीट है। जलाशयों के वास्तु शास्त्र की पुरातन विधियों पर आधारित गैप सागर के उत्तरी पाश्र्व में तहसील चौराहे से लेकर रामबोला मठ तक 570 फीट लम्बा धोबी घाट है जो जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। बादल महल के नीचे जनाना घाट है जहाँ सन्नारियां अथाह जलराशि के बीच खुद को पाकर अपना सौन्दर्य निखारती थीं जबकि वनेश्वर महादेव मंदिर के सामने छोटा घाट था जो साधु-संतों और महन्त-मठाधीशों के स्नान-ध्यान में प्रयुक्त होता था। मुख्य घाट डूंगरपुर नगरपालिका ने सन् 1993-94 में भराव डालकर 450 फीट का कर दिया, इससे इसका पारम्परिक स्वरूप संकुचित हो गया।
समय-समय पर गैप सागर की मरम्मत का काम होता रहा है। डूंगरपुर के 27वें महारावल शिवसिंह, ईस्वी सन् 1730-1785(वि.सं. 1786-1842) के समय व्यापक स्तर पर इसकी मरम्मत का काम हुआ और उन्होंने तालाब को पर्यटन स्थल बनाने इसकी मुख्य पाल पर छत्रियां बनवाई जिन्हें शिवशाही छत्रियां कहा जाता है। रियासत के तत्कालीन संभ्रांत व्यक्तियों के नाम यहीं ओटली में पारेवा पत्थर की प्रशस्ति अंकित की गई। अब इसके लेख घिस गए हैं। महारावल लक्ष्मणसिंह ने इसके जीर्णोद्धार में रुचि ली और भागा महल के पास की छत्री को दूसरे छोर पर स्थापित करवायी।
इसकी अंतिम बार मरम्मत का काम तत्कालीन नगरपालिकाध्यक्ष श्री कुरीचन्द जैन ने सन् 1952 में करवाया। गैप सागर से लगे बादल महल और विजय राजराजेश्वर मन्दिर के बीच बनी हगार(सुकाल) छत्री भविष्य की संकेतक के रूप में जानी जाती रही। इसके पूरी तरह डूब जाने पर सुकाल और न डूबने पर अकाल की स्थिति मानी जाती थी। विजय राजराजेश्वर मन्दिर महारावल विजयसिंह ने बनवाना शुरू किया था लेकिन इसकी प्रतिष्ठा महारावल लक्ष्मणसिंह ने 1923 ईस्वी में करवाई।
गैप सागर के निर्माण से संबंधित किम्वदन्ती के अनुसार गैप सागर के स्थान पर उन दिनों चौबीसों के खेत थे। इस स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए पाल पर तीन छत्रियाँ बनाई गई जिन्हें ‘चौबीसों की छत्रियाँ’ कहा जाता है। लहलहाती फसलों ने वहां से गुजर रहे डूंगरपुर के साहूकार श्यामलदास दावड़ा के पुत्रों का ध्यान अपनी ओर खींचा और वे लीलवे/गेहूं की उंबियां पाने की जिद करने लगे मगर संध्या हो जाने की वजह से वहां चौकीदार ने इंकार कर दिया। रोते हुए बच्चों ने घर आकर खिन्न मन से यह बात पिता को बतायी। यह सारी घटना सेठ को नागवार गुजरी। उसने इन खेतों का अस्तित्व मिटा देने की ठान ली और इन्हें खरीद कर तालाब बनवाने का काम शुरू किया।
राज-दरबार से जुड़े लोगों ने तत्कालीन महारावल को सारी स्थिति समझाते हुए इस काम को यह कह कर बन्द कराने की गुजारिश की कि ऎसा हो जाने पर सेठ की कीर्ति हो जाएगी। तब बन्द कराने के यत्न शुरू हुए और चालाकी के साथ सेठ को समझाया गया कि तालाब बनने पर मछलियों का शिकार होगा और इसका सारा पाप उसे लगेगा। यह बात सेठ को जंच गई और उसने तालाब का काम बीच में ही छोड़ दिया। इसकी एवज में सेठ को खर्चा एवं माणक चौक में जमीन दे दी गई जहां उसने संवत 1526 में आदिनाथ भगवान का मन्दिर बनवाने का काम शुरू किया जो संवत 1529 में पूर्ण हुआ।
बाद में खुद गैपा रावल ने इस तालाब को पूर्ण करवाया जिसे आज गैप सागर नाम से जाना जाता है। गैप सागर के मुहाने पर गैपा रावल ने महल बनवाया लेकिन बाद में इसमें बैठना त्याग दिया और यह सूना पड़ा रहा, इसे भागा महल कहते हैं जहां इन दिनों जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग का पंप हाउस चल रहा है।
गैप सागर की बनावट ही ऎसी है कि इसमें वर्षा के दौरान पानी जल्द ही भर जाता है। ईस्वी सन् 1875 एवं 1937 में जबर्दस्त वर्षा का दौर चला और भारी वर्षा से तालाब लबालब भर जाने के उपरान्त पानी ऊपर से बहने एवं पाल टूटने की नौबत आयी तब महारावल स्कूल के पास गैफर/गैप पोल दरवाजे के किवाड़ बंद करने पड़े और हाथी लगाकर किवाड़ों का दबाव बनाए रखा गया तब पानी उदयविहार बाग से होकर आगे बह चला और शहर सुरक्षित बच गया।
संत मावजी चले थे गैपसागर पर
वागड़ की भक्ति धाराओं और त्रिकालदर्शी संत मावजी महाराज की चमत्कारपूर्ण गाथाओं में भी गैप सागर का जिक्र होता रहा है। जनश्रुति के मुताबिक डूंगरपुर रियासत के तत्कालीन महारावल शिवसिंह को नाथ सम्प्रदाय के अपने गुरु महाराज पर अन्यतम आस्था थी। इन्हीं दिनों मावजी महाराज के चमत्कारों को सुन शिवसिंह ने परीक्षा लेनी चाही और मावजी महाराज को कहलवाया कि इतने ही सिद्ध हों तो गैप सागर में पानी पर चलकर दिखलाएं। मावजी ने राजा के मन में कुलबुला रही आशंकाओं को समझ कर कह दिया कि ‘मैं तो क्या इस पर गधे चलेंगे।’ और ऎसा ही हुआ। अगले वर्ष गैप सागर पूरा सूख गया और गधे चलने लगे। बाद में छप्पनिया अकाल में और बाद में कई बार गैप सागर को सूख जाने का अभिशाप लगा रहा।
गैप सागर को सदानीरा बनाए रखने के प्रयास पहले भी होते रहे हैं। तत्कालीन महारावल विजयसिंह ने खुमाण सागर से गैप सागर तक नहर बनाने का काम हाथ में लिया मगर नौलखा तक नहर खुद जाने के बाद पता चला कि खुमाण सागर अपेक्षाकृत निचले हिस्से में है तब यह काम रोक दिया गया। बाद में इसे डिमिया बांध से भरे जाने की योजना बनी मगर कुछ न हो पाया।
डूंगरपुर के जलाशयों के बीच इस कदर अन्तर्सम्बन्ध रहा है कि सचमुच आश्चर्य होता है। घाटी का तालाब भर जाने पर गैप सागर और झैर का तालाब भर जाने पर उदयवाव भर जाती है।
गैप सागर डूंगरपुर के बाशिन्दों की जिन्दगी का हिस्सा है जहां हर धर्म और सम्प्रदाय की रस्मों को पूरा किया जाता रहा है।
डूंगरपुर के बाशिन्दों ने ‘गिप सरोवर गंगा सो नीर’ की पुरातन धारणाओं की बहाली के लिए इसे गन्दा पोखर होने से रोकने की जज्बा जुटाया है। गैप सागर के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इसे पूरी तरह प्रदूषण एवं गंदगी से मुक्त कराने, जलक्षेत्र को अतिक्रमणों से मुक्त रखने और तालाब को गहरा कराने की जी तोड़ कोशिशें जरूरी हैं।
यहीं पास में व्यावसायिक केन्द्रों एवं दुकानदारों के लिए सुविधाओं के अभाव के कारण लोग गैप सागर के किनारों को प्रदूषित करते रहे हैं। इसके अलावा आस-पास की तमाम गंदगी इसमें डाली जाती रही है। इसे प्रतिबन्धित करने और लोगो की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सुविधालय बनाने को लेकर व्यापक कार्ययोजना सोची गई है। जिला प्रशासन को यह सुझाव भी दिया गया है कि डिमिया बांध से पानी लेकर इसमें नहर के जरिये डाला जाकर गैप सागर को सदैव भरा रखा जा सकता है।
आवश्यकता महसूस की जा रही है कि डूंगरपुर की गौरव गैप सागर झील के अस्तित्व को पूरे यौवन के साथ बरकरार रखने बहुआयामी प्रयास हों। शहरवासियों में जगी चेतना से कोई नवीन आयाम स्थापित होंगे, ऎसी आशा की जा रही है।
साभार / स्त्रोत - डॉ. दीपक आचार्य/ Monday 16 Feb,
साभार – प्रेसनोट डॉट कॉम
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