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नदियां
उपसंहार
Posted on 06 Feb, 2010 08:58 AMपैरी नदी एवं सोंढूर नदी का पांडुका के 15 किमी दूर गरियाबंद मार्ग पर मालगाँव मुहैरा के पास संगम हुआ है और दोनों नदियों का जलकोष व्यापक हो जाता है। पांडुका से 3 किमी दूर ग्राम कुटेना से सिरकट्टी आश्रम के पास पैरी नदी एवं सोंढूर नदी के तट पर कठोर पत्थरों की चट्टानों को तोड़कर यहाँ एक बन्दरगाह बनाया गया था। सिरकट्टी आश्रम के पास नदी के बाँयीं ओर तट पर जल-परिवहन की नौकाओं को खड़ा करने के लिए समानान्तरछत्तीसगढ़ की कुछ और नदियाँ
Posted on 06 Feb, 2010 08:41 AMमध्यप्रदेश का अमरकंटक किसी समय दक्षिण कोसल में शामिल था। अमरकंटक पर्वत से भारत की सबसे सुन्दर और कुँवारी नदी नर्मदा का उद्गम हुआ है। यह नदी अमरकंटक से एक पतली सी धारा के रूप में प्रवाहित हुई है। इस नदी की दूध धारा और कपिल धारा मिलकर इसे एक तीर्थ का रूप देती हैं। नर्मदा नदी अपने वक्ष-स्थल में सफेद संगमरमर संजोये हुए हैं। जो इसे अनुपम सौन्दर्य प्रदान करने के साथ-साथ अनेक कलाकार मूर्तिकारों के जीवन-यक्या नदियों को जोड़ा जा सकता है?
Posted on 27 Jan, 2010 03:27 PM3 अक्टूबर 2002 को माननीय उच्चतम न्यायालय ने केन्द्रीय सरकार से कहा है कि वह देश की नदियों को दस साल के भीतर जोड़ने के बारे में विचार करे। इस समाचार ने उन सब को चौंका दिया है, जो पानी से जुड़े सवालों के बारे में सोचते रहे हैं। नदियों को जोड़ने के प्रस्ताव के लिए यह दलील दी जाती है कि देश के कुछ भागों में तो पानी की कमी है, और कुछ भाग बाढ़ से पड़ित रहते हैं। इसका हल यही है कि ज्यादा पानी वाली नदी घाशिप्रा तट सभ्यताओं की जननी रहा है
Posted on 27 Jan, 2010 10:19 AMप्राचीन सभ्यताएँ नदी-तटों पर ही पनपीं। शिप्रातट भी इसका अपवाद नहीं है। उज्जैन और महिदपुर में उत्खनन किये गये। महिदपुर उत्खनन से ताम्राश्मीय सभ्यता (2100 ई.पू.) से ई.पू.
उद्धारक शिप्रा उद्धारकों की बाट जोह रही
Posted on 27 Jan, 2010 09:53 AMइस शिप्रा को अपने जीवन के लिए पानी उधार भी लेना पड़ता है। वही शिप्रा जो कभी सबका उद्धार करती थी और जो आशा की किरण भी- अब अपने उद्धार का रास्ता देख रही है। शिप्रा का परिसर रमणीय प्राकृतिक छटा से भरपूर था। यह सरल तरल है सिप्रा। जगह-जगह कमलकुल खिले थे। विचरते थे हंस और बतख। यक्ष और गन्धर्व इसका सेवन करते थे। तटों पर गीत गाती थीं किन्नरियाँ। पक्षी कलरव करते रहते थे। भ्रमरों की गुँजार होती रहती थी।
शिप्रा की पन्द्रह बहनें
Posted on 26 Jan, 2010 09:30 AMअवन्तीखण्ड में उज्जयिनी के परिसर में बहती प्रायः पन्द्रह नदियाँ बतायी गयी हैं। जो शिप्रा से मिलती थीं और जिनका पौराणिक महत्व था। उसमें से कुछ तो साहित्य में भी याद की गयी हैं। ऐसी नदियों में गन्धवती सर्वप्रमुख है। कालिदास के मेघदूत, कथासारित्सागर और जैन साहित्य में इसका स्मरण किया गया है। कालिदास का कहना है कि वर्षा आने तक भी यह बहती रहती थी और इसमें नारियाँ स्नान करती थीं, आज उसके दर्शन नहीं ह
सीवेज ट्रंक बन गईं जीवनदायिनी
Posted on 08 Nov, 2009 03:12 PMशिवालिक पहाड़ से निकलने वाली हिंडन नदी वेस्ट यूपी के एक बड़े हिस्से की हरियाली का कारण थी। अब यह नदी अपना प्राकृतिक अस्तित्व खो चुकी है। इसमें आबादी का गंदा पानी, फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषित पानी बहता है। इसमें आक्सीजन की मात्रा भी बेहद मामूली रह गई है। पर्यावरण विद डा. एस.के.
नदियां क्यों बाढ़ लाती हैं
Posted on 07 Oct, 2009 08:29 AMशहरीकरण के कूड़े ने समस्या को बढ़ाया है। यह कूड़ा नालों से होते हुए नदियों में पहुंचता है, जिससे नदी की जल ग्रहण क्षमता कम होती है। पिछले तीन दशकों में पूरे देश में यह रोग बुरी तरह से लगा कि पारंपरिक तालाब, बावड़ी सुखा कर उस पर रिहायशी कालोनी या व्यावसायिक परिसर बना दिए जाएं। प्राकृतिक रूप से बने तालाब व पहाड़ जल संचयन के सशक्त स्रेत और बाढ़ से बचाव के जरिए हुआ करते थे। प्रकृति के इस जोड़-घटाव
सोनभद्र की नदियां
Posted on 29 Sep, 2009 09:33 AMसोनभद्र जनपद की छोटी बड़ी सभी नदियां किसी न किसी मानवीय प्रभाव से प्रभावित है। कुछ नदियां असमय सूख गयी है तो कुछ बड़ी नदियों में कल कारखानों के कचड़े के अपमिश्रण से जल प्रदूषण की सीमाओं को पार कर गया है। नदियों के पौराणिक महत्व तो हैं ही साथ ही आर्थिक, यातायात व व सामाजिक दृष्टि से भी इनके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। अवैध बालू खनन से कहीं नदियों का मूल जल प्रवाह प्रभावित हो रहा है तो कहीं जलीय