सोनभद्र जनपद की छोटी बड़ी सभी नदियां किसी न किसी मानवीय प्रभाव से प्रभावित है। कुछ नदियां असमय सूख गयी है तो कुछ बड़ी नदियों में कल कारखानों के कचड़े के अपमिश्रण से जल प्रदूषण की सीमाओं को पार कर गया है। नदियों के पौराणिक महत्व तो हैं ही साथ ही आर्थिक, यातायात व व सामाजिक दृष्टि से भी इनके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। अवैध बालू खनन से कहीं नदियों का मूल जल प्रवाह प्रभावित हो रहा है तो कहीं जलीय जीवन को खतरा पैदा हो रहा है।
सोन नदी : अमर कंटक की पहाड़ियों से निकलने वाली सतत प्रवाही सोन नदी को यदि सोनभद्र की जीवन रेखा कहा जाय तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी। भौगोलिक दृष्टि से भी इसका प्रवाह और नदियों से अलग है। इसका प्राचीन नाम स्वर्ण नदी है। लोकोक्ति के अनुसार हिन्दी भाषा विज्ञान में यह नदी नहीं नद है और पुलिंग है। अन्य नदियां स्त्रीलिंग में हैं। मारकण्डेय ऋषि के तप से प्रवाहित होने वाली यह नदी गोठानी के पास रेणु व बिजुल को स्वयं में समाहित कर आगे प्रवाहित होती है। चौरासी परगना कहे जाने वाले इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष हमारी पुरानी सभ्यता के दस्तावेज है। जनपद के यातायात में कभी इस नद का अपना महत्व रहता था। लेकिन आज कल कारखानों के कचड़े से इसका पानी प्रदूषित हो गया है। पन बिजली सयंत्र ओबरा डैम से जब भी पानी छोड़ा जाता है इसके पानी की आमद अचानक बढ़ जाती है। बालू खनन करने वाले सोन नदी पर अस्थाई पुल बनाकर बालू का परिवहन करते रहते हैं। इससे जल प्रवाह तो प्रभावित होता ही है साथ ही जलीय जीवन को भी खतरा पैदा हो जाता है।
रेणुका : इस पहाड़ी नदी का उद्गम जनपद की पहाड़ियों के बीच से है। मान्यता है कि जमदग्नि ऋषि का कभी यहां आश्रम हुआ करता था। जमदग्नि ने सह्त्रार्जुन के यहां अपनी धर्म पत्नी रेणुका के जाने से बेहद नाराज थे। उन्होंने अपने पुत्र परशुराम को आदेश दिया कि अपने परशु से रेणुका के सिर को धड़ से अलग कर दे। पिता की आज्ञा से भगवान परशुराम ने अपनी मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया। मान्यता है कि रेणुका के रूधिर से एक सरिता प्रवाहित हो गई जिसे आज लोग रेणुका के नाम से जानते है। गोठानी के पास यह नदी सोननदी में मिल जाती है।
बिजुल : प्राकृतिक ब्रजाघात से बने गड्ढे से निकलने वाली नदी को बिजुल के नाम से जाना जाता है। यह पहाड़ी नदी है। इसका संगम सोन नदी में होता है।
कनहर : सोने की तरह चमकने वाली रेत के कारण यह नदी आर्थिक दृष्टि से तो उपयोगी है ही साथ ही अपने जल प्रवाह के लिए भी जानी जाती है।
बेलन : जनपद के चतरा ब्लाक के करद गांव से निकली बेलन नदी ही इलाहाबाद में टौंस के नाम से जानी जाती है। बरसात के दिनों में अधिक वर्षा होने पर बाढ़ के पानी से व्यापक तबाही होती है।
कर्मनाशा : मान्यता के अनुसार त्रिशंकु के लार टपकने से निकली इस नदी को लोग शुभ नहीं मानते। कर्मनाशा की हार शीर्षक से साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है। बरसात के समय इसकी बाढ़ से तटवर्ती गांव बुरी तरह प्रभावित रहते है।
रिहन्दडैम : एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील
180 वर्गमील में फैला रिहन्दडैम एशिया की मानव निर्मित सबसे बड़ी कृत्रिम झील माना जाता है। इसमें लगभग एक दर्जन प्राकृतिक नालों व नदियों का समावेश है। ताप विद्युत गृहों एवं अन्य कल कारखानों की मशीनों के शीतलन एवं कालोनियों में पेयजल के लिए रिहन्दडैम के पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन कभी ऐश डैम की राख तो कभी कारखानों के कचड़े से इसका पानी प्रदूषित होता रहता है।
बरसाती नदियां : पांडु, घाघर, गोड़तोड़वा जयमुखी समेत अन्य नदियां बरसात में उफनती है। शेष महीनों में सूखी रहती है।
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