शिवालिक पहाड़ से निकलने वाली हिंडन नदी वेस्ट यूपी के एक बड़े हिस्से की हरियाली का कारण थी। अब यह नदी अपना प्राकृतिक अस्तित्व खो चुकी है। इसमें आबादी का गंदा पानी, फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषित पानी बहता है। इसमें आक्सीजन की मात्रा भी बेहद मामूली रह गई है। पर्यावरण विद डा. एस.के. उपाध्याय बताते हैं कि नदी के जल में आक्सीजन का स्तर कम से कम छह मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। मगर, हिंडन में यह स्तर सहारनपुर में 2.1 मिग्रा से 5 मिग्रा, मुजफ्फरनगर में 2.9 से 4.2 मिग्रा और गाजियाबाद में 1.7 से 2.5 मिग्रा है।सहारनपुर। यमुना की सबसे बड़ी सहायक नदी हिंडन अब मर चुकी है। न सिर्फ मर चुकी है, बल्कि सीवेज ट्रंक बन गई है। हिंडन ही नहीं, इसकी सहायक ढमोला, पांवधोई, कृष्णी और काली नदियां भी मर गई हैं।
शिवालिक पहाड़ से निकलने वाली हिंडन नदी वेस्ट यूपी के एक बड़े हिस्से की हरियाली का कारण थी। अब यह नदी अपना प्राकृतिक अस्तित्व खो चुकी है। इसमें आबादी का गंदा पानी, फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषित पानी बहता है। इसमें आक्सीजन की मात्रा भी बेहद मामूली रह गई है। पर्यावरण विद डा. एस.के. उपाध्याय बताते हैं कि नदी के जल में आक्सीजन का स्तर कम से कम छह मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। मगर, हिंडन में यह स्तर सहारनपुर में 2.1 मिग्रा से 5 मिग्रा, मुजफ्फरनगर में 2.9 से 4.2 मिग्रा और गाजियाबाद में 1.7 से 2.5 मिग्रा है।
पिछले साल मेरठ की स्वयंसेवी संस्था जनहित फाउंडेशन ने ब्रिटेन की पर्यावरणविद हीथर लुईस के साथ हिंडन नदी पर शोध पत्र प्रस्तुत किया था। इसमें हिंडन को सीवेज ट्रंक घोषित किया गया। शोध में पाया गया कि हिंडन के पानी में पेस्टीसाइड और घातक रासायनिक तत्व मौजूद हैं। पेपर मिल, शुगर मिल, केमिकल, शराब और रंग फैक्ट्रियों के अपशिष्ट बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे हिंडन में डाले जा रहे हैं। हिंडन की सहायक ढमोला और पांवधोई नदियों का हाल भी ऐसा ही है। ये दोनों सहारनपुर की लाइफलाइन हैं, जो लगातार मर रही हैं। ये नदियां न हों तो सहारनपुर शहर डूब जाए। पांवधोई नदी का उद्गम शकलापुरी गांव में होता है। जमीन से स्वच्छ जल का स्त्रोत यहां आज भी फूट रहा है। मगर शहर में आते आते यह गंदा नाला बन चुकी है। किवंदती है कि हाजी शाह कमाल और बाबा लाल दयाल दास के साझे प्रयासों से गंगा का यहां उद्गम हुआ था। ढमोला नदी तो पूरी तरह से न सिर्फ मर चुकी है, बल्कि इस पर भूमाफिया भी काबिज हो चुके हैं। डा. उपाध्याय बताते हैं कि ढमोला नदी में सांद्रेय कचरे का निर्माण होने से नदी मृत प्राय हो चुकी है। कभी मछुआरों के लिए रोजगार का साधन रही इस नदी में अब मछलियां नहीं, बल्कि मैक्रो आर्गेनिज्म, काइरोनॉमस लार्वा, नेपिडी, ब्लास्टोनेटिडी, फाइसीडी, प्लेनेरोबिडी फेमिली के सूक्ष्म जीव ही मौजूद हैं।
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