भारत के गाँवों को लेकर महात्मा गाँधी का एक सपना था, पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर, साफ़, सुंदर, और सपनों की कल्पना जैसा गाँव। महाराष्ट्र राज्य के सांगली ज़िले का कवठे पिरान गाँव शायद ऐसा ही एक गाँव है। इस गाँव की बदली तस्वीर के पीछे महाराष्ट्र सरकार की एक अनूठी परियोजना का हाथ है। गाँवों में बदलाव लाने के लिए राज्य सरकार ने महाराष्ट्र के जाने माने संतों के नाम से संत गाड़गे बाबा स्वच्छता अभियान और संत टुकड़ो जी महाराज स्वच्छता ग्राम नाम की स्पर्धा शुरु की है। निवेदिता पाठक इसी गाँव से एक दिन बिताकर लौटी हैं।
एक अनूठी प्रतियोगिता
इस प्रतियोगिता के तहत गाँव में शराब बंद करना, गाँव में सरकार के पैसे के बिना ही गाँववालों द्वारा गाँव की सड़कों, गटर, शौचालयों आदि का निर्माण करना, उनको पूरी तरह स्वच्छ रखना आदि जैसे नियम हैं। ये प्रतियोगिता तीन चरणों में होती है जिसमें गाँवों को डिवीजन, ज़िला और राज्य स्तर पर हिस्सा लेना होता है। जीतने पर गाँवों को 15 लाख, 5 लाख और 25 लाख का इनाम दिया जाता है। प्रतियोगिता कड़ी होती है क्योंकि इन में बहुत-सी ग्राम पंचायतें हिस्सा लेती हैं।
इस योजना के पीछे मकसद है कि गाँवोंवालों के अंदर प्रतियोगी भावना जगाकर उन्हीं के द्वारा गाँवों के अंदर सुधार लाना। यूँ तो गाँववालों ने प्रतियोगिता में जीत के लिए गाँव को सुधारने का काम करना शुरु किया लेकिन बाद में ये उनके जीवन का हिस्सा बन गया। वैसे इस गाँव के लिए सबसे पहली चुनौती थी गाँववालों को शराब और मटके की लत से बाहर निकालना।
शौंचालयों की सुधरी सूरत
गाँववालों में ये अहसास जागाया गया कि कोई भी व्यक्ति शौच के लिए बाहर नहीं जाएगा। आज गाँव के हर घर में संडास या फ्लश की लैटरीन है। गाँव में एक कड़ा नियम लागू कर दिया गया है कि जो भी व्यक्ति बाहर शौच करता पाया गया उसको सौ रुपये का दंड देना पड़ेगा।
यह गाँव का सैनीटेशन पार्क है जिसमें कई तरह के संडास के मॉडल दिखाए गए है, इन मॉडलों के मुताबिक बननेवाले शौंचालयों की कीमत छह सौ रूपए से लेकर छह हज़ार तक है। गाँववाले अपनी हैसियत के अनुसार मॉडल को चुन सकते हैं।
सराहनीय हैं ऐसी कोशिश
गाँव में पानी के लिए नालियाँ बनी हुई है। शौच के लिए सैप्टिक टैंक बने हुए हैं। गाँव का सारा मल और गंदा पानी (लगभग छह लाख लीटर) जो पहले नदी में जाता था अब उसको बाहर बने तालाब में इकट्ठा किया जाता है । इस पानी को पंप से उठाकर केले और गन्ने की खेतों की सिंचाई की जाती है। जिन गाँव वालों के घरों में सैप्टिक टैंक नहीं होता उन गाँव वालों को हिदायत दी जाती है कि वे कोई इंतजाम करें जिससे उसके घर का पानी वापस ज़मीन में चला जाए।
इसके अलावा ये भरसक कोशिश की जाती है कि अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ रखा जाए। गाँवों में एक स्मृति वन बनाया गया है जिसमें गाँवों में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी याद में एक पेड़ लागाया जाता है और उसकी राख को नदी में बहाने की बजाए उसका खेतों में बिखराव कर दिया जाता है। गाँवों में डेढ़ लाख वृक्ष लगाने की भी योजना है। हर घर के आगे पेड़-पौधे लगाना आवशयक है।
एक रंग, एक ढंग
गाँव में एकता और सद्भावना के लिए गाँव के हर घर को गुलाबी रंग से रंगा गया है। कवठे पिरान में बीस फीसदी मुस्लमान हैं और हर कोई भाईचारे के साथ रहता है। इस गाँव के हर घर की ख़ासियत यह है कि यहाँ के घरों की दीवारें कुछ न कुछ कहती ज़रुर है। हर घर की दिवारों पर जीवन का सच लिखा गया है। कोई घर, आलस्य से मनुष्य को चेताने की बात कहता है तो कोई घर ये बताता है कि रक्तदान बड़ा दान है। किसी घर पर लिखा है कि शिक्षा से ही समृध्दि आती है तो कोई घर पानी की बचत की बात करता है।
गाँवों के लोगों का मानना है कि जब से उन्होंने गाँव को सुधारने की कोशिश की तब से वहाँ कम लोग बीमार पड़ते हैं। गाँव में जहाँ पहले छह डाक्टर थे अब वहाँ तीन डाक्टर ही बचे हैं और गाँववाले उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में उन्हें इनकी भी ज़रुरत नहीं पड़ेगी। गाँव वालों को परिवार नियोजन के बारे में भी जागरुक किया गया है।
स्वावलंबन का मूलमंत्र
भारत के अधिकांश गाँव खेती के लिए बारिश के पानी पर निर्भर हैं, बहुत बार ऐसा होता है कि सूखे के कारण फ़सल ही नहीं होती इसलिए बारिश पर निर्भरता कम करने के लिए गाँववासियों ने बारिश के पानी को जमा करने के लिए उसके संयत्र को लगाना शुरु कर दिया है। गाँव में कोशिश की जाती है कि पानी को बरबाद न किया जाए।
जिन घरों में नालियाँ या बारिश का पानी संरक्षित करने की व्यवस्था नहीं है उसके लिए कोशिश की जाती है कि किसी भी तरह से उस पानी को धरती के अंदर पहँचाया जा सके ताकि पानी का स्तर नीचे न गिरे। कुछ ही महीनों में गाँवों को राज्य की बिजली पर भी निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। गाँवों में अब सौर-ऊर्जा से बिजली का उत्पादन होगा जो उनकी सारी ज़रूरतों को पूरा कर सकेगा।
महिलाओं को जाता है श्रेय
गाँव में कूड़े-कचरे के प्रबंधन के लिए भी यहाँ पर एक योजना है जिसके तहत कूड़े का फिर से इस्तेमाल किया जाता है। कूड़े को तीन भागों में बाँटा जाता है। जैविक कूड़े से खाद बनाई जाती है जिसको ख़ेतों में इस्तेमाल किया जाता है, इसके अलावा घरों में भी कूड़े से खाद बनाने की इकाइयाँ हैं जिसको महिलाएं चलाती हैं। कूड़े में केचुओं को डालकर उसे उत्तम किस्म का बनाया जाता है। ये खाद महिलाओं के लिए जीविका का साधन भी है।
गाँव को इस मुकाम तक पहुँचाने में पूर्व सरपंच भीमराव माणे का बहुत बड़ा हाथ है। उनका मानना है कि किसी भी सफलता के लिए महिलाओं का शामिल करना बहुत आवशयक है। इस गाँव को महाराष्ट्र सरकार के बेहतरीन गाँव का पुरस्कार मिलने का ज़्यादा श्रेय महिलाओं को ही जाता है। गाँव की महिलाओं ने ही शराब के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ी थी। आज न सिर्फ़ गाँव की संरपंच एक महिला है बल्कि गाँव की पंचायत में भी उनकी भागीदारी है।
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