जबलपुर कभी ‘नो फेन्स सिटी’ था

अंग्रेज सिपाहियों के जबलपुर आते समय उन्हें दी जाने वाली जरूरी हिदायतों में से एक हुआ करती थी कि यह ‘नो फेन्स सिटी’ यानि पंखा रहित शहर है। दरअसल तब शहर को ठंडा बनाए रखने का काम शहर के 52-56 तालाब और असंख्य कुएँ, बावड़ियाँ करती थीं। इनमें से सिर्फ 22-24 तालाब ही 386 हैक्टेयर में फैले थे। सन् 1829 में कर्नल स्लीमॅन ने अलंकरण और उपयोगिता के लिए अंग्रेजी राज के पूर्व, सम्पन्न और उदार व्यक्तियों द्वारा किए गए सार्वजनिक निर्माण कार्यों का एक लेखा-जोखा तैयार करवाया था। तब जबलपुर जिले की संख्या पांच लाख थी और निजी आय लाभ कमाने की बजाय समाज के ऐसे लोगों द्वारा लोकहित में 2286 तालाब, 209 ऐसी बावड़ियाँ जिनमें ऊपर के जगत से लगाकर नीचे पानी के तल तक सीढ़ियाँ बनी थीं, 1560 पक्के बँधे हुए कुएँ, 389 हिन्दू मंदिर और 92 मस्जिदें बनवाए गए थे। तब इनकी अनुमानित लागत 8,66,640 पौंड आँकी गई थी। इनके अतिरिक्त दो-तिहाई गाँव और नगर बड़, पीपल आम और इमली के मिश्रित कुंजों से सुशोभित थे जिनकी अनुमानित लागत 12000 पौंड थी। शहर के पारिस्थितिकी तंत्र का अविभाज्य अंग होने वाले ये तालाब धीरे-धीरे सूखते, पुरते गए और तापक्रम बढ़ता गया। कहते हैं कि शहर के तापक्रम में कोई खास अंतर नहीं आया है लेकिन जलस्रोतों के सूखने, मिटने से नमी खत्म और गर्मी तीखी हो गई है। नतीजे में शहर गर्माता जा रहा है।

कहते हैं कि अकाल मुक्त रहने का वरदान देने वाले जाबालि ऋषि के कारण शहर का नाम पहले जाबालिपुरम् और फिर जबलपुर पड़ा था। गुप्तेश्वर मंदिर के पास उनकी समाधि आज भी मौजूद है। जबलपुर को जाजल्लपुर यानि कल्चुरी राजा जाजल्लदेव द्वारा बसाया गया भी माना जाता है। रायपुर के संग्रहालय में इस बारे में शिलालेख होने का भी कहा जाता है। किसी युद्ध में त्रिपुरी के राजा यशकर्ण से जाजल्लदेव ने मदद माँगी थी और बदले में उन्हें एक गाँव दे दिया था। शहर का 7 हैक्टेयर में फैला हनुमान ताल, जिसके पास बड़ी फेरमाई का मंदिर यानि देवल तथा एक बावड़ी भी है, इन्हीं जाजल्लदेव ने बनवाया था। इस तालाब के पास वल्लभ सम्प्रदाय का गोपालजी का मंदिर भी है। एक और राय है कि अरबी के ‘जाबालि’ यानि पहाड़ के कारण शहर का नाम जबलपुर पड़ा।

तालाबों का ताना-बाना


इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि 9वीं से 12-13वीं शताब्दी के बीच के कलचुरी राजाओं और 14 से 17वीं शताब्दी के बीच के गोंड राजाओं ने तालाब, बावड़ियाँ और कुएँ खुदवाने में विशेष रुचि ली थी। जबलपुर के पाटन के पास राखी गाँव में 12वीं शताब्दी के एक तालाब के अवशेष हैं जिसके चारों ओर सीढ़ियाँ और चबूतरे बने हैं। पाटन के ही सिहौदा गाँव में 15वीं शताब्दी का एक तालाब है। इसी इलाके के गंगई, सकहा और भिड़की गाँवों की बावड़ियाँ करीब दो सौ वर्ष पुरानी गोंड काल की हैं। यहीं के तमोरिया गाँव में भी लगभग सौ वर्ष पुरानी चाबी के आकार की बावड़ी मौजूद है। बालाघाट जिले के लांझी में भी गोंडों के जमाने की ही एक बावड़ी औरे नटवारा में गोंड कालीन तालाब भी है।

गोंड साम्राज्य और खासकर 1548 से 1564 के बीच के रानी दुर्गावती के जमाने के जबलपुर में कई तालाब खोदे गए और कई प्राकृतिक तालाबों का पुननिर्माण करवाया गया। इनमें 100 एकड़ का तालाब था- रानीताल। इसके लिए दुर्गावती ने आंध्रप्रदेश से कारीगरों को बुलवाकर पत्थर कटवाए और सीढ़ियाँ तथा किनारे पटवाए थे। दुर्गावती की एक सहचरी थी रामचेरी। रानी ने उसके नाम से भी एक तालाब का निर्माण करवाया था। रानीताल पर काम करने वाले मजदूर लौटते हुए इस तालाब में भी दो-चार कुदालें मार देते और इस तरह आज का 3.70 हैक्टेयर का चेरीताल बना।

कहते हैं कि कटंगा पहाड़ी से लेकर नर्मदा के तिलवारा घाट तक का इलाका छुई मिट्टी का है इसलिए इस पूरे इलाके का पानी मीठा और स्वास्थ्यवर्धक है। इसके अलावा शहर का पश्चिमी हिस्सा निचाई और सिविल लाइंस की तरफ का पूर्वी हिस्सा ऊँचाई पर है। इन्ही कारणों से पूर्वी हिस्से में तालाब कम ही बनाए गए। 1917 में राबर्टसन् कॉलेज बना था और तभी उसके पास 76 हैक्टेयर की जबलपुर लेक का निर्माण हुआ था।

गोंड रानी दुर्गावती के जमाने में तालाबों की श्रृंखालाएँ बनी थीं। देवताल, ठाकुरताल और गढ़ा के हितकारिणी हाईस्कूल के पीछे 3.50 हेक्टेयर का बघाताल ऐसी ही एक श्रृंखला थी। गोंड इतिहास में देवताल का नाम विष्णुताल था और राधावल्लभ सम्प्रदाय के ‘भाव-सिन्धु’ में भी इसका यही नाम दिया गया है। वल्लभ संप्रदाय के संस्थापक वल्लभाचार्य के पुत्र गुसाई विट्ठलनाथ सन् 1563 में गढ़ा आए थे तो उन्होंने विष्णुताल पर डेरा डाला था। बाद में गढ़ा की पद्मावती नामक कन्या से उनका विवाह भी हुआ था। देवताल का पानी स्वास्थ्यवर्धकर होने और वहाँ की आबोहवा ठीक होने के कारण एक जमाने में राजरोग माने जाने वाले टीबी के मरीज वहाँ आकर रहते थे। ठीक हो जाने पर ये लोग अक्सर मंदिर का निर्माण भी करवाते थे। देवताल के पास आज भी मौजूद 14-15 मंदिर इसकी पुष्टि करते हैं। रानीताल, चेरीताल और मढ़ोताल की श्रृंखला भी इसी तरह की थी। कहते हैं कि देवताल की तरह संग्रामसागर और गढ़ा के पास बनी एक बावड़ी का पानी भी चर्म रोग तथा दूसरी बीमारियों को ठीकर कर देता था।

रानी दुर्गावती के अमात्य थे, बिहार के महेश ठाकुर। दरभंगा का राजघराना इन्हीं के वारिसों का है। जबलपुर का ठाकुरताल महेश ठाकुर के नाम पर ही बनवाया गया था। तिरहुतियाताल महेश ठाकुर और उनके भाई दामोदर ठाकुर की याद दिलाता है। ये दोनों उत्तर बिहार के तिरहुत जिले से आए थे और अपनी विद्वता के कारण दुर्गावती के दरबार में बहुत सम्मानीय माने जाते थे।

9.56 हैक्टेयर में फैला था- आधारताल। इसे दुर्गावती के मंत्री आधारसिंह कायस्थ की स्मृति में बनवाया गया था। कृषि की रीढ़ पानी की जगह इस तालाब में आजकल देश का एक बड़ा कृषि विश्वविद्यालय और उससे लगी और कॉलोनी दिखती है। इसी तरह गोंड राजा हिरदेशाह ने गढ़ा के पास गंगासागर नाम का विशाल तालाब बनवाया था, जो 18.70 हैक्टेयर में फैला था।

अलफ खाँ की तलैया और 2.50 हैक्टेयर में फैली गोहलपुर की बेनीसिंह की तलैया उनके नाम से बनी थी, जिनका अंग्रेजों के पहले इस इलाके में बहुत आतंक था। बालगंगाधर तिलक के जबलपुर आने पर उनरी आमसभा अलफ खाँ की तलैया में ही हुई थी और उस ऐतिहासिक घटना की याद में उसे तिलक भूमि तलैया नाम दे दिया गया था। सेठ गोविन्ददास के परदादा सेवाराम ने जैसलमेर से यहाँ आकर अपनी व्यापारिक गतिविधियाँ ही शुरू नहीं की थीं बल्कि उन्होंने एक तालाब भी बनवाया था, जिसे सेवाराम की तलैया के नाम से जाना जाता है। कदम तलैया गुरंदी बाजार के पास स्थित थी और 1934-35 में इसमें प्रसिद्ध ‘जहूर थियेटर’ बना था। अवस्थी ताल शिक्षा और समाज सेवा के लिए बनी संस्था ‘हितकारिणी सभा’ के सदस्य स्वर्गीय सरजूप्रसाद अवस्थी के परिवार से संबद्ध था।

तालाबों के इस ताने-बाने में गौतमजी की मढ़िया के पास 5 हैक्टेयर का गुलौआताल, मेडिकल कॉलेज मार्ग पर बजरंग मठ से लगा हुआ 8.60 हैक्टेयर का सूपाताल, देवताल के पीछे की पहाड़ियों पर कोलाताल, गंगासागर के पास गुड़हाताल, शाही नाके से गढ़ा जाने के मार्ग पर सुरजला, मनमोहन नगर और आयआयटी. के पास के इसी नाम के गाँव में 25 हैक्टेयर का माढ़ोताल, शाही नाका के पास स्थित कन्या शाला से लगा हुआ मछरहाई, भूलन रेल्वे चौकी के पास का 5.10 हैक्टेयर में फैला बसहाताल, मेडिकल कॉलेज के अस्पताल के पीछे का 65 हैक्टेयर का बाल सागर और मेडिकल कॉलेज के थोड़े आगे का सगड़ाताल शामिल हैं। इसी तरह तेवरगाँव का बलसागर, भेड़ाघाट मार्ग के गाँव आमाहिनोती का हिनौताताल, लम्हेटाघाट रोड पर चौकी ताल, एनटीपीसी. के समीप जबलपुर-पाटन मार्ग पर स्थित सूखा ग्राम का पक्के तटबंध वाला सूखाताल, देवताल और रजनीश धाम के पास का महाराज सागर, भेड़ाघाट रोड के कूड़नगाँव का कूड़नताल, आधारताल के पीछे गाँव के ही नाम का 24 हैक्टेयर का आमाखेराताल, हाथीताल, श्मशानघाट का बाबाताल, गोरखपुर में छोटी लाइन से लगा हुआ ककरैयाताल, सदर क्षेत्र के छावनी अस्पताल के पास का खंबताल जिसमें लकड़ी का एक स्तंभ लगा है और विद्युत मंडल के गणेश मंदिर के पीछे स्थित गणेश ताल भी हैं। इनके अलावा गढ़ा रेल्वे केबिन के बगल की सांईंतलैया गौतमजी की मढ़िया से गढ़ा बाजार मार्ग पर स्थित नौआतलैया, त्रिपुरी चौक के पास 3.70 हैक्टेयर की सूरजतलैया, शाही नाका से गढ़ा रोड पर पक्के तटबंध वाली फुलहारी तलैया, गढ़ा के पुराने थाने से श्रीकृष्ण मंदिर जाने वाले मार्ग पर जिंदल तलैया, भान तलैया, जूड़ी तलैया और श्रीनाथ की तलैया हैं। इसी तरह से 2.40 हैक्टेयर का ककराहीताल, 2.50 हैक्टेयर का ननवाराताल और 4.10 हैक्टेयर की छोटी उखरी भी है। लेकिन शहर की पेयजल, निस्तार और मछली तक की जरूरतों को पूरा करने और मौसम को खुशनामा बनाए रखने वाले इन तालाबों की आज क्या हालत है?

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Post By: tridmin
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