सन् 1890 का भीषण अकाल पूरे गोंडवाने में आज भी याद किया जाता है। उस दौर में यहाँ असंख्य तालाब बनाए गए थे जिनमें मजदूरी की तरह खिचड़ी बाँटी जाती थी। छिंदवाड़ा की सौंसर तहसील में तब का बना एक तालाब आज भी काम कर रहा है। बालाघाट में भी ऐसे कई तालाब मौजूद हैं। उस दौर में एक अंग्रेज इंजीनियर सर सॅफ कॉटन थे जिन्हें पानी की बड़ी परियोजनाएँ बनाने में महारत हासिल थी। इस वजह से ही उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी गई थी। उन्होंने दक्षिण भारत से लगाकर पंजाब तक देश की शुरूआती बड़ी सिंचाई परियोजनाएँ बनवाई थीं। इस इलाके में भी सर कॉटन ने दो बड़े काम किए थे-एक 1911 में वैनगंगा नदी पर 57 लाख रुपयों की लागत से एक लाख एकड़ सिंचाई करने के लिए बालाघाट के पास ‘ढूटी-डायवर्सन’ बनाया था जिसके दरवाजे इंग्लैंड के मेन्चेस्टर से मँगवाए गए थे। दूसरा था छत्तीसगढ़ में 1923 में बना ‘मॉडम सिल्ली’ बाँध। ‘ढूटी डायवर्सन’ जब पहली बार बना तो तेज बहाव के कारण टूट गया था। बाद में 1921 में इसे फिर से बनाया गया। आजादी के बाद भी ‘नर्मदा घाटी विकास परियोजना’ के अंतर्गत अंजनिया के पास बना मटियारि बाँध हवेली क्षेत्र में सिंचाई बढ़ाने के लिए बनाया गया था। लेकिन मटियारि, नैनपुर की थाबर और मंडला की भीमगढ़ परियोजनाओं के बीच की निचली जमीनें होने के कारण इस इलाके पर दलदलीकरण बढ़ने का खतरा खड़ा हो गया है। इस क्षेत्र में कहते हैं कि पानी की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ती जा रही है। और गोलाछापर, धतूरा आदि गाँवों में दलदलीकरण होने की खबरें भी आने लगी हैं। पानी ऐसे बढ़ाया जाता रहा तो धरती के लवण ऊपर आ जायेंगे तथा जमीनें बर्बाद होने लगेंगी।
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