हिमाचल प्रदेश

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कार्यक्रम - भारत की जल संस्कृति
Posted on 04 Mar, 2017 11:30 AM
तारीख - 18 और 19 मई 2017
स्थान - गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज, सजौली, शिमला- 171006


भारत की जल संस्कृतिभारत की जल संस्कृतिजल हमारे जीवन का सबसे अनिवार्य तत्व है। पृथ्वी के सन्तुलन को बनाए रखने में भी इसका सर्वाधिक योगदान है। जीवन का उद्भव और विकास जल में ही हुआ है। हमारी सभ्यताएँ और संस्कृतियाँ नदियों के किनारे ही जन्मी और विकसित हुई हैं। भारत में सभी जल संसाधनों को पवित्र माना जाता है। जल की गुणवत्ता के कारण ही धार्मिक ग्रन्थों जैसे- वेद, पुराण और उपनिषद में इसके संरक्षण के लिये ‘जल नीति’ वर्णन मिलता है। योजनाबद्ध तरीके से जल के उपयोग और प्रबन्धन का तरीका बताया जाता है जिससे इसे संरक्षित किया जा सके और सही उपयोग हो। नदियाँ हमारी संस्कृति, सभ्यता, संगीत, कला, साहित्य, और वास्तुकला की केन्द्रीय भूमिका में शामिल रही हैं।

पंजीकरण शुल्क (प्रति व्यक्ति)
1. भारतीय नागरिक- 2500 रुपए
2. विद्यार्थी- 1000 रुपए
3. विदेशी नागिरक- 150 अमेरिकी डॉलर
4. स्थानीय शिमलावासी- 1500 रुपए
जलवायु परिवर्तन को कम करती जैविक कृषि
Posted on 10 Feb, 2017 03:26 PM
वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग पूरे विश्व के लिये एक चिन्ता का विषय बन गया है जोकि कृषि पैदावार और उत्पादन पर गम्भीर प्रभाव डाल रहा है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन फसल पैदावार, कीट-पतंगों के विस्तार और कृषि उत्पादन की आर्थिक लागत को प्रभावित कर सकता है। मौसम की चरम सीमा में फसलों को नुकसान हो रहा है और किसानों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही
हिमस्तूप ने किया जल संकट का समाधान
Posted on 24 Jan, 2017 10:43 AM
हिमस्तूपसोनम वांगचुक का मानना है कि विज्ञान तभी फायदेमन्द है, जब इस
बंजर भूमि की प्यास बुझाते ‘कुल’
Posted on 24 Jan, 2017 10:35 AM
हिमाचल प्रदेश की अनूठी जल प्रणाली ‘कुल’ ऊँचे पहाड़ों से घिरे स्पीति क्षेत्र की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी खेती करने में मददगार साबित हुई है। लेकिन विकास की अन्धाधुन्ध रफ्तार के कारण यह सदियों पुरानी सिंचाई व्यवस्था अब विनाश के कगार पर है
सतलुज नदी की पर्यावरणीय स्थिति
Posted on 29 Oct, 2016 04:44 PM
एक ओर नदियों में पानी का कम होना और दूसरी ओर पानी का प्रदूषि
sutlej river
पालमपुर : नौले धारे बचाने की अनूठी मुहिम
Posted on 20 Oct, 2016 12:14 PM

स्थानीय निकाय, प्रशासन और स्थानीय लोगों के इस साझा प्रयास ने पालमपुर में कामयाबी की नई कहानी लिखी है। जलवायु परिवर्तन, खेती की पद्धति में आये बदलाव, पानी के अकूत दोहन व अन्य कारणों से देश में पानी के स्रोत सूख रहे हैं लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ पानी की माँग में इजाफा हो रहा है। ऐसे संगीन हालात से निपटने के लिये पालमपुर की इस कहानी को जमीन पर उतारना किफायती और फायदेमन्द सौदा हो सकता है।

लगभग 55, 673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हिमाचल प्रदेश अपनी खुबसूरती के लिये विश्व भर में मशहूर है। यह राज्य हिमालय की गोद में बसा हुआ है। इसके उत्तर में धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला जम्मू-कश्मीर, पश्चिम में पंजाब, दक्षिण पश्चिम में हरियाणा, दक्षिण पूर्व में उत्तराखण्ड और पूर्व में तिब्बत है। हिमाचल प्रदेश की आबादी लगभग 68,64,602 है। इसी राज्य में है पालमपुर। यह राज्य की कांगड़ा घाटी में स्थित है।

पालमपुर का नाम स्थानीय शब्द ‘पालुम’ से आया है जिसका मतलब होता है-पर्याप्त पानी। पालमपुर को पूर्वोत्तर भारत की चाय राजधानी भी कहा जाता है। पालमपुर का अस्तित्व वर्ष 1849 में आया था।

कुछ दशक पहले तक पालमपुर अपने नाम को चरितार्थ करता रहा था लेकिन बाद में जलवायु परिवर्तन के चलते धीरे-धीरे इस क्षेत्र का चरित्र बदलने लगा।
हिमाचल प्रदेश के पारम्परिक पेयजल स्रोत
Posted on 13 Sep, 2016 12:31 PM
हिमाचल प्रदेश में पेयजल स्रोतों को बड़ी मेहनत से बनाने की परम्परा रही है। पहाड़ों से नदियाँ भले ही निकलती हों, किन्तु उनका पानी तो दूर घाटी में बहता है। पहाड़ पर बसी बस्तियाँ-गाँव तो आस-पास उपलब्ध पहाड़ से निकलने वाले जलस्रोतों पर ही निर्भर रहे हैं।
औद्योगिक प्रदूषण की चपेट में नदियाँ
Posted on 11 Sep, 2016 10:39 AM
प्रदेश के विकास के लिये औद्योगिकीकरण को बहुत जरूरी और रोजगार
फोटोग्राफी पर 5 दिवसीय वर्कशॉप
Posted on 20 Aug, 2016 11:12 AM
स्थान - सम्भावना इंस्टीट्यूट, कांगड़ा
तारीख - 1-5 अक्टूबर 2016


समाजिक मुद्दों पर काम कर रहे फोटोग्राफरों, कार्यकर्ताअों और शोधकर्ताअों के लिये सम्भावना इंस्टीट्यूट 1-5 अक्टूबर 2016 तक 5 दिवसीय फोटोग्राफी कार्यशाला (वर्कशॉप) आयोजित करने जा रहा है। कार्यशाला का उद्देश्य सामाजिक मुद्दों की रिपोर्टिंग और दस्तावेजीकरण को नई विजुअल मीडिया द्वारा प्रभावी तरीके से पेश करने की तकनीक सिखाना है ताकि प्रभावित लोगों, आम आदमी, नीति निर्माताओं, राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों तक इसे प्रभावशाली तरीके से पहुँचाया जा सके।

कार्यशाला का फोकस तकनीक/रणनीति और परिप्रेक्ष्य पर होगा। इसमें हिस्सा लेने वालों के लिये कई तरह के लेक्चर, सामूहिक संवाद, मैराथन सत्र होंगे जिसमें प्रतिभागियों और विशेषज्ञों के बीच सीधा संवाद होगा। फोटोग्राफरों पर वीडियो डॉक्यूमेंट्री और फोटोग्राफी अप्रोच कार्यशाला का हिस्सा होंगे।
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