बांधों की सुरक्षा, उनके रख-रखाव और प्रबंधन में खासी लापरवाही के चलते पिछले कुछ वर्षों में जान-माल का खासा नुकसान हुआ है। विभिन्न राज्य प्रशासन और केंद्र सरकार बांध की सुरक्षा से जुड़े सवालों पर कायदे-कानून बनाने में कामयाब नहीं रहीं हैं। देश का जल संसाधन मंत्रालय भी बांधों से हुए नुकसान पर गंभीरता से कोई फैसले नहीं लेता। आधे-अधूरे तरीके से 1975 में केंद्र ने बांध सुरक्षा कानून बनाया था।
बांधों के रख-रखाव में प्रबंधन और कर्मचारियों की लापरवाही के चलते हादसों की तादाद लगातार बढ़ी है। इसी महीने हिमाचल में लारजी पन-बिजलीघर परियोजन की ऑपरेशन के दौरान हुई गड़बड़ियों के कारण हैदराबाद में इंजीनियरिंग पढ़ रहे 24 छात्र बह गए।अप्रैल में इसी तरह बिना किसी पूर्व सूचना या तेज हूटर के सिक्किम के तीस्ता-वी डैम से पानी छोड़े जाने से बच्ची बह गई। इसी तरह जनवरी में मनाली के पास पिरनी में एलेओ पनबिजली घर अपने शुरू होने के पहले ही परीक्षण में ही टूट गया।
बांधों की सुरक्षा, उनके रख-रखाव और प्रबंधन में खासी लापरवाही के चलते पिछले कुछ वर्षों में जान-माल का खासा नुकसान हुआ है। विभिन्न राज्य प्रशासन और केंद्र सरकार बांध की सुरक्षा से जुड़े सवालों पर कायदे-कानून बनाने में कामयाब नहीं रहीं हैं।
देश का जल संसाधन मंत्रालय भी बांधों से हुए नुकसान पर गंभीरता से कोई फैसले नहीं लेता। आधे-अधूरे तरीके से 1975 में केंद्र ने बांध सुरक्षा कानून बनाया था। राज्यों में सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के विभागों से जुड़े मंत्रियों ने अपने पहले सम्मेलन में इस संबंध में प्रस्ताव भी पास किए थे।
30 अगस्त, 2010 में संसद में बांध सुरक्षा पर मसौदा विधेयक पेश हुआ था। संसदीय समिति के जिम्मे किया गया जिसने चार जून 2011 को अपनी रपट जमा की।
केंद्र ने 2005 में आपदा प्रबंधन पर कानून बनाया। इसमें शासन के विभिन्न स्तरों पर आपदा प्रबंधन अधिकारियों की व्यवस्था हुई और हर स्तर पर पूरी योजना बनाने की व्यवस्था हुई।
सीएजी (महानियंत्रक लेखा परीक्षक) ने पिछले साल अप्रैल में आपदा प्रबंधन कानून की समीक्षा करके यह देखा कि आपदा के संबंध में विभिन्न स्तरों पर नाजुक खामियां हैं। रपट में बताया गया है कि सिर्फ आठ राज्यों ने 192 बांधों पर आपात कार्य योजना बनाई जबकि सितंबर 2011 तक देश में चार हजार सात सौ अट्ठाइस बांध थे।
कैग ने अपनी टिप्पणी में लिखा कि आपात कार्य योजना तैयार करने में परियोजना अधिकारियों ने कोताही बरती। जबकी 96 फीसद बड़े बांधों से एक बड़े क्षेत्र और संपत्ति को नुकसान पहुंचने का अंदेशा है।
जल संसाधन मंत्रालय ने मार्च 2011 में आपदा प्रबंधन योजना बनाई थी। कैग की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, केवल 14 राज्यों ने जुलाई 2012 तक यह योजना बनाई थी।
बांध सुरक्षा कानून क्या है स्थिति
1. बांध सुरक्षा प्रणाली पर तो नीति-निर्माताओं के बीच चर्चा होती रही, लेकिन केंद्रीय स्तर पर बांध सुरक्षा कानून नहीं बना।
2. संसद में एक विधेयक का मसविदा 30 अगस्त 2010 को पेश किया गया। इस पर पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटी में बहस भी हुई, इसने चार जून 2011 को अपनी रपट दी।
3. कमिटी ने बताया कि बांध में किसी टूट-फूट या पानी छोड़े जाने से होने वाली विपदा के लिए विधेयक में किसी हर्जाने के लिए किसी मालिक या किसी जिम्मेदार को जिम्मेदार नहीं ठहराता।
4. कमिटी ने माना कि बांध में कभी किसी तरह की टूट-फूट या गड़बड़ी पर जिम्मेदार नियत न करने से विधेयक कतई प्रभावशाली नहीं होगा।
5. कमिटी ने चाहा कि बांध प्रबंधन में ऑपरेशन के दौरान किसी गड़बड़ी के चलते हुए आई विपदा की स्थिति में प्रभावित लोगों को समुचित मुआवजा दिया जाना चाहिए।
6. कमिटी ने सजग किया कि बांध के ऑपरेशन में किसी गड़बड़ी के चलते आपदा आ सकती है। इस लिहाज से विधेयक को दुरुस्त किया जाए।
7. कमिटी ने एक निष्पक्ष नियामक एजेंसी गठित करने के लिए कानून बनाने की बात कही जो बांध सुरक्षा उपायों पर कानूनों के तहत अमल कराए।
केंद्र ने 2005 में आपदा प्रबंधन कानून तो बनाया लेकिन किसी गंभीर भूल-चूक के चलते होने वाले हादसों के लिए संस्थागत और लेखागत व्यवस्थाएं नहीं बनाई।
भारत में सितंबर 2011 तक 4728 जलाशय और बांध हैं। सेंट्रल वाटर कमीशन बाढ़ संबंधी भविष्यवाणी सिर्फ 28 जलाशय और बांधों पर देता है। बाकी पर पानी का स्तर मापने की भी व्यवस्था नहीं है।
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