पनबिजली विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् आरएल जस्टा से अश्वनी वर्मा की बातचीत
अंधाधुंध परियोजनाओं से क्या नुकसान हो सकते हैं?
किन्नौर जिला भूकम्प की नजर से अतिसंवेदनशील जोन पांच में आता है। यहां के पहाड़ खुरदरे और रेतीले हैं। सुरंगों के निर्माण में अंधाधुंध विस्फोटकों से पहाड़ खोखले हो रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग का असर यहां प्रत्यक्ष देखने को मिल रहा है। इससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं। असामयिक बारिश और बर्फबारी हो रही है। जहां बहुत कम बारिश होती थी वहां बारिश बहुत हो रही है। नदियों और सहायक नदियों में पानी घट रहा है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए किन्नौर जिले में प्रस्तावित बिजली परियोजनाओं पर तुरंत प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
परियोजनाओं के बारे में कुछ बताएं?
हिमाचल में पहले अठारह हजार मेगावाट बिजली परियोजना लगाने की क्षमता की बात होती थी। फिर कहा गया कि इक्कीस हजार मेगावाट तक बिजली दोहन की क्षमता है। कुछ लालची लोगों ने इस क्षमता को तेईस हजार और आजकल सत्ताईस हजार मेगावाट की क्षमता का प्रचार करना शुरू कर दिया, जो कि पर्यावरण की दृष्टि से घातक होगा। ये परियोजनाएं ग्लेशियर और स्नोलाइन के पास तक पहुंच कर उन्हें नष्ट करेंगी और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देंगी।
कुछ परियोजनाएं तो वन्य जीवों को भी नुकसान पहुंचाएंगी। एक परियोजना से दूसरी परियोजना के बीच की निश्चित दूरी कम हो जाएगा। शत प्रतिशत विद्युत दोहन करने के बजाए नार्वे और स्वीडन की तर्ज पर कुल विद्युत दोहन क्षमता का बीस प्रतिशत पर्यावरण को बचाए रखने के लिए सदैव सुरक्षित रखना होगा।
सतलुज के कैचमेंट क्षेत्र के तटों को मजबूती देने के लिए पांच साल तक विद्युत परियोजनाओं के काम को किन्नौर में रोक देना चाहिए और इसके बदले बारी-बारी से दूसरे तालों में बिजली परियोजनाएं बनानी चाहिए। जब नदियों में पानी सुख जाएगा तो घाटियों में हरियाली नहीं रहेगी और वीरान घाटियों में कोई पर्यटक नहीं आएगा। चिलगोजा पहले ही किन्नौर में कम होता जा रहा है। इस पर और खतरा मंडराएगा। ऊंचे क्षेत्रों में मिलने वाली दुर्लभ जड़ी बुटियां और चिल्लगोजा, जो इस कबाइली क्षेत्र की धरोहर है, लुप्त हो जाएंगी।
उत्तराखंड की तबाही से क्या सबक लेना चाहिए?
जिस तरह उत्तराखंड में उत्तरकाशी से गंगोत्री तक को इको संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जा रहा है, ठीक उसी तर्ज पर किन्नौर जिले को भी घोषित किया जाना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो हो सकता है कि अंधाधुंध परियोजनाओं को लगाने पर लगाम लगाई जा सके। इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
अगर सरकार इस तरफ ध्यान नहीं देगी तो यह आने वाले वक्त के लिए खतरे की घंटी होगी।
अंधाधुंध परियोजनाओं से क्या नुकसान हो सकते हैं?
किन्नौर जिला भूकम्प की नजर से अतिसंवेदनशील जोन पांच में आता है। यहां के पहाड़ खुरदरे और रेतीले हैं। सुरंगों के निर्माण में अंधाधुंध विस्फोटकों से पहाड़ खोखले हो रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग का असर यहां प्रत्यक्ष देखने को मिल रहा है। इससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं। असामयिक बारिश और बर्फबारी हो रही है। जहां बहुत कम बारिश होती थी वहां बारिश बहुत हो रही है। नदियों और सहायक नदियों में पानी घट रहा है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए किन्नौर जिले में प्रस्तावित बिजली परियोजनाओं पर तुरंत प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
परियोजनाओं के बारे में कुछ बताएं?
हिमाचल में पहले अठारह हजार मेगावाट बिजली परियोजना लगाने की क्षमता की बात होती थी। फिर कहा गया कि इक्कीस हजार मेगावाट तक बिजली दोहन की क्षमता है। कुछ लालची लोगों ने इस क्षमता को तेईस हजार और आजकल सत्ताईस हजार मेगावाट की क्षमता का प्रचार करना शुरू कर दिया, जो कि पर्यावरण की दृष्टि से घातक होगा। ये परियोजनाएं ग्लेशियर और स्नोलाइन के पास तक पहुंच कर उन्हें नष्ट करेंगी और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देंगी।
कुछ परियोजनाएं तो वन्य जीवों को भी नुकसान पहुंचाएंगी। एक परियोजना से दूसरी परियोजना के बीच की निश्चित दूरी कम हो जाएगा। शत प्रतिशत विद्युत दोहन करने के बजाए नार्वे और स्वीडन की तर्ज पर कुल विद्युत दोहन क्षमता का बीस प्रतिशत पर्यावरण को बचाए रखने के लिए सदैव सुरक्षित रखना होगा।
सतलुज के कैचमेंट क्षेत्र के तटों को मजबूती देने के लिए पांच साल तक विद्युत परियोजनाओं के काम को किन्नौर में रोक देना चाहिए और इसके बदले बारी-बारी से दूसरे तालों में बिजली परियोजनाएं बनानी चाहिए। जब नदियों में पानी सुख जाएगा तो घाटियों में हरियाली नहीं रहेगी और वीरान घाटियों में कोई पर्यटक नहीं आएगा। चिलगोजा पहले ही किन्नौर में कम होता जा रहा है। इस पर और खतरा मंडराएगा। ऊंचे क्षेत्रों में मिलने वाली दुर्लभ जड़ी बुटियां और चिल्लगोजा, जो इस कबाइली क्षेत्र की धरोहर है, लुप्त हो जाएंगी।
उत्तराखंड की तबाही से क्या सबक लेना चाहिए?
जिस तरह उत्तराखंड में उत्तरकाशी से गंगोत्री तक को इको संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जा रहा है, ठीक उसी तर्ज पर किन्नौर जिले को भी घोषित किया जाना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो हो सकता है कि अंधाधुंध परियोजनाओं को लगाने पर लगाम लगाई जा सके। इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
अगर सरकार इस तरफ ध्यान नहीं देगी तो यह आने वाले वक्त के लिए खतरे की घंटी होगी।
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