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गंगा नदी का बरसों पुराना, धार्मिक पहलू है जो करोड़ों भारतीयों की आस्था के मूल में शताब्दियों से रचा-बसा है। इन भ
जल संकट पर जल संसाधन विभाग के कामों की दिशा, प्राथमिकता और बजट आवंटन को देखने से लगता है
पिछले कुछ सालों में जल संकट में, बढ़ता प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे जुड़ गए हैं। विभिन्न मंचों पर हो रही बहस में इन मुद्दों को अच्छा खासा महत्व भी मिलने लगा है। कुछ लोग सतही जल के प्रदूषण पर की जाने वाली बहस को और आगे ले जाते हैं और कहते हैं कि पानी, खासकर जमीन के नीचे के पानी में, प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। नए-नए इलाकों में उसका विस्तार हो रहा है और पानी की रासायनिक जांच से, उसमें नए-नए किस्म के रसायनों के मौजूद होने के प्रमाण सामने आ रहे हैं।
हम सब को आंकड़े और पानी से जुड़े विशेषज्ञ तथा अर्थशास्त्री बता रहे हैं कि जल संकट विश्वव्यापी है। अनुमान है कि पूरी दुनिया में लगभग 1.2 अरब लोगों को पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं मिलता और लगभग 2.6 अरब लोग सेनिटेशन सुविधा से महरूम हैं। विकासशील देशों में लगभग 80 प्रतिशत लोगों की बीमारियों का सीधा संबंध अपर्याप्त साफ पानी और सेनिटेशन की कमी से जुड़ा है। इसके कारण हर साल लगभग 18 लाख बच्चों की अकाल मृत्यु हो जाती है। इस विश्वव्यापी जल संकट की तह में पानी के प्रबंध की खामियों सहित अनेक कारण हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ‘वैश्विक भ्रष्टाचार रिपोर्ट 2008’ के अनुसार सारी दुनिया में पानी से जुड़ी सेवाओं में भ्रष्टाचार के कारण लगभग 10 से 30 प्रतिशत तक राशि की हेराफेरी होती है। इस गति से भ्रष्टाचार बढ़ने के कारण अगले 10 साल में पानी का कनेक्शन मिलने में लगभग 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी संभव है।