पानी-सा प्यार

कैसी दुनिया बना रहे हैं हम? अगली पीढ़ियों के पास कैसे नजारे होंगे, क्या जिंदगियां होंगी? पर्यावरण से जुड़ी लेखकीय चिंताओं ने कई फंतासियों को जन्म दिया है। एंजेला स्लेटर की लिखी- आई लव यू लाइक वॉटर का हिंदी भावानुवाद यहां प्रस्तुत है। एक तस्वीर है ये। आप भी देखिए...

मरुस्थलएक विशाल रेगिस्तान के तट पर शहर बसा है। कभी यहां और भी शहर, कस्बे, बसाहटें हुआ करती थीं। बस, पानी दिन-पर-दिन कम होता गया और लोग जमीन को गहरे जख्म देते रहे। फिर एक रात जमीन ने धंसना शुरू किया है। कई बसाहटें पता नहीं रातोरात कहां समा गई।

ये शहर बचा है, जिसने रेगिस्तान की तपिश से बचने के लिए शाम और रात में जीना सीख लिया है। इस शहर को दुनिया का पता नहीं, खुद को बचाने की जद्दोजहद में प्रयोग करता रहता है।

केटो छोटा था, जब हरा-भरा शहर रेगिस्तान में बदल गया। अब शहर में हरेक घर कांच का पिरामिड है, जिसमें दिन में लोग ममी की तरह रहते हैं। केटो कभी समझ नहीं पाया कि कैसे आसमान बादलों से रीता और जमीन सुनहरी हो गईं। और न ही ये समझ पाया कि इतना कुछ बदल जाने के बाद भी उसके माता-पिता के पास शानदार कांचघर को बनाए रखने के साधन कहां से आते रहे। वो और उसकी दोस्त सोफी अपने परिवार की पहेलियों को समझते-बूझते बड़े हुए।

आज केटो कांच की दीवार के पार उड़ती रेत देख रहा है। उसे एक्वा ह्यूमाना में नौकरी मिल गई है। उसका सपना था ये। सुरक्षा जांचें और जरूरी अनुमोदन मिलना मुश्किल नहीं था। प्रतिष्ठित माता-पिता, खासतौर पर जिन्होंने शहर के अस्तित्व के लिए बलिदान दिया हो, लिया भी हो, उनके इकलौते बेटे के लिए कुछ भी मुश्किल कहां था।

मनचाही जगह पाने पर जो उसे खोना पड़ रहा है, वो है सोफी का साथ। एक्वा ह्यूमाना से सोफी को नफरत है।

सोफी की सोच को ही तो वो हराना चाहता है। पर जैसी जिद्दन है वो, हर काम जल्दी करना होगा।

केटों खत लिख रहा है

प्रिय सोफी,
जानता हूं, तुम्हें लगता है कि मैं अपने परिवार की विरासत में खुश हूं और जो तुमने अपनी आत्मा की चीखों का जिक्र किया है, मैं उनसे अनजान हूं। मेरा विश्वास करो, मेरे अंदर भी कुछ जगा दिया है तुमने। इस धरती पर हुए हर अत्याचार के लिए तुम जिम्मेदार नहीं हो। खुद को दोष मत दो। हर दर्द की जगह तुम्हारे दिल में नहीं होनी चाहिए। मुझे अंदाजा है तुम क्या करने वाली हो। मेरा विश्वास करके कुछ दिन रुक सको, तो रुक जाओ। मैं सब ठीक कर दूंगा। मुझे तुम्हारी बहुत परवाह है।

मैं तुम्हें पानी की तरह प्यार करता हूं...

केटो
सोफी को खत एक हफ्ते बाद मिला। उसने दोहराया, पानी की तरह प्यार करता हूं... जो है ही नहीं, उसकी तरह प्यार? पानी खो गया है और प्यार भी।

पानी तो वो लाकर रहेगी।

एक योजना है उसके पास। वो हाथ जोड़े बैठी बड़बड़ा रही थी। तभी उसकी बहन बेनी कमरे में आई। छोटा-सा, दो कमरों का घर है उनका। केटों को शायद यहां घुटन होती हो। खैर वो बीते वक्त की बात हो जाएगी।

बेनी ने उसकी तरफ एक हरे सेब जैसा कुछ उछाला।

‘ओह, बेनी। तुम फिर बाजार गई थी। तुम्हारा ये ताजा कुछ खाने का जुनून कब खत्म होगा। ये वो फल नहीं, जो हम बचपन में खाते थे। ये लैब में बने हैं।’

‘जो भी हो, है तो ताजे के रूप वाला। दो दिन बात फिर जाऊंगी, सुना है स्टोर में पालक आने वाली है।’

‘बेनी, तुम इतना महंगा शौक क्यों पाले हुए हो?’

‘और किसी शौक की जगह जो नहीं बची,’ कहते-कहते दोनों बहनें खिलखिला पड़ीं।

‘चलो, तुम तैयार हो जाओं, मैं नाश्ता बनाती हूं। कहती हुई बेनी अपने प्रिय स्थान किचन में चली गई।

नाश्ता! बिन पानी का नाश्ता-खाना... कैसी जिंदगी जी रहे हैं हम? क्या गुनाह हुआ था हमसे।

नहाने के नाम पर सूखा-स्नान ड्राई वॉश। मां कैसे आवाजें देकर बाथरूम का दरवाजा ठोकती थीं- ‘सोफी, पानी से मत खेलो जुकाम हो जाएगा।’

पानी... वो बूंदों का अहसास।

अब तो कपड़े ड्राई वॉश होते हैं। टी-शर्ट कितनी चुभती है इतनी कड़क होने पर। वो तो पानी में नर्म होती थी। फिर आफ्टर वॉश वाले तरल कितनी महक भर देते थे कपड़ों में। सब पानी की मेहरबानी थी। वो ताजगी, वो खुश्बू...। फिर कभी नहीं मिलेगी?

मिलेगी, वो लेकर आएगी। काश, केटो और दूसरे लोग समझ पाते। खैर उसने तो शहर के मुखिया से कहा ही है कि वो अगले हफ्ते की शाम को अपने शीशमकान के सामने वाले रेतीले मैदान में आ जाएं।

सोफी की पकड़ अपने हाथ में रखी कटार पर सख्त हो गई। एक आखिरी बार फिर केटो जेहन में कौंधा।

केटो अपनी नौकरी के पहले दिन एक्वा ह्यूमाना का दौरा कर रहा था। कई मैदानों बड़े इस ठंडे कांचघर में कांच की जिंदा कब्रें हैं। इनमें शहर के दुश्मन, बदमाशी करते पाए गए गुनहगार बंद हैं। ऐसे घायल शहरी भी यहीं लाए जाते हैं, जिनका इलाज अब मुमकिन न हो।

कई नलियां गुजर रही हैं इन बंद लोगों के शरीर से। सब शरीर का पानी चूसने के लिए, ताकि दूसरों के काम आ सके। कुछ लोग खुद को यहां कुर्बान भी कर सकते हैं। इससे उनके परिवारों की पूरी देखभाल करने का जिम्मा शहर के प्रशासन का हो जाता है। यही किया था केटो के माता-पिता ने, उसकी शानदार पढ़ाई और बेहतर जिंदगी के लिए।

आंखों में पीड़ा लिए सैकड़ों जिंदा धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रहे हैं। उनकी असहाय सूरतों की तरफ देख पाना भी केटो के लिए मुश्किल था। मन भीग रहा था, पर पानी आंखों से भी अब नहीं आता था कि दर्द की मरोड़ें ही कुछ सीज जाएं।

एक कांच की कब्र की तरफ केटो यकायक दौड़ पड़ा। ‘बेनी-बेनी’- वो पुकारना चाहता था। ‘ये यहां कैसे आ गई?’ पास से गुजर रहे एक अन्य तकनीशियन ने बताया- ‘स्टोर से सामान लेकर लौट रही थीं, तब किसी ने महंगे खान-पान के लिए इस पर हमला किया। अभी जान बाकी है, पर बचेगी नहीं। इसीलिए तो पानी निकाल....’

केटो और सुन नहीं पाया। अब उसे जल्दी से जल्दी कंट्रोल टावर पर पहुंचना है। एक्वा ह्यूमाना में भारी मात्रा में मौजूद ठंडी रेगिस्तानी हवा यहां मौत का माहौल बनाए रखती है। और क्लोरोट्रायफ्लोरोएथिलीन मददगार साबित हो सकती है। इतने विशाल कांचघर में धमाका बादलों के फटने वाला प्रभाव पैदा कर सकता है। बारिश आ सकती है।

‘या शायद ऐसा न हो। पर क्या फर्क पड़ता है। हम सब वैसे भी कौन-सी खुशियां मना रहे हैं।’ फिर एक नर्म-सा ख्याल आ गया- ‘सोफी तो जिएगी।’
सोफी।

मैदान के बीचोबीच खड़ी है। हाथ में खंजर है। मुखिया ने कहा- ‘एक बार और सोच लो। ये बलिदान अंधविश्वास की बातें हैं। तुमने कहा, सो मैं आया। बलिदान एक्वा ह्यूमाना में दो। तुम मर गई, तो किसी काम नहीं आओगी।’

सोफी की आत्मा की आवाज अब हर आवाज से ऊंची हो चुकी थी।

खंजर चला।

उसी समय एक धमाका हुआ।
‘सोफी’... मानों रेत फुसफुसाई।
खून रेत पर फैल रहा था।
बादल रूप बदलने लगे थे। एक बूंद सोफी के चेहरे पर गिरी।
‘केटो...!’ सोफी बुदबदाई।
मैं तुम्हें पानी की तरह...

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