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जल प्रदूषण
Posted on 10 Jun, 2014 09:52 AM

ग्रामीण इलाकों में पानी की गुणवत्ता खराब करने या प्रदूषण फैलाने में खेती में लगने वाले हानिकारक रसायनों का योगदान है। ये रसायन पानी में घुलकर जमीन के नीचे स्थित एक्वीफरों में या सतही जल भंडरों में मिल जाते हैं। रासायनिक फर्टीलाइजरों, इन्सेक्टिसाइड्स और पेस्टीसाइड्स इत्यादि का सर्वाधिक इस्तेमाल सिंचित क्षेत्रों में ही होता है; इसलिए उन इलाकों की फसलों में इन हानिकारक रसायनों की उपस्थिति दर्ज होने लगी हैं यह बदलाव सेहत के लिए गंभीर खतरा बन रहा है।

पानी की गुणवत्ता और जल प्रदूषण का सरोकार रसायनशास्त्री या पर्यावरणविद सहित समाज के सभी संबंधित वर्गों के लिए समान रूप से उपयोगी है। हाल के सालों में तेजी से हो रहे बदलावों के कारण पानी की गुणवत्ता और जल प्रदूषण की समझ का प्रश्न, उसकी आपूर्ति से अधिक महत्वपूर्ण बनता जा रहा है। इसीलिए सभी देश प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में पानी की गुणवत्ता के मानक तय करते हैं, उन पर विद्वानों से बहस कराते हैं और लगातार अनुसंधान कर उन्हें परिमार्जित करते हैं।

मानकों में अंतर होने के बावजूद, यह प्रक्रिया भारत सहित सारी दुनिया में चलती है। भारत सरकार ने भी पेयजल, खेती, उद्योगों में काम आने वाले पानी की गुणवत्ता के मानक निर्धारित किए हैं। इन मानकों का पालन कराना और सही मानकों वाला पानी उपलब्ध कराना, आज के युग की सबसे बड़ी चुनौती और दायित्व है।
जल प्रदूषण
संभावनाओं के क्षितिज और क्षितिज पर कानून के बादल
Posted on 09 Jun, 2014 12:32 PM
हाशिए पर बैठे समाज और कुछ सामान्य लोगों की बात कहने के पहले प
save water
मेरा पानी तेरा पानी
Posted on 09 Jun, 2014 10:51 AM
आजादी मिलने के बाद भारत का संविधान लिखा गया। सन 1987 में देश
Kaveri
प्यास है बड़ी
Posted on 08 Jun, 2014 01:27 PM

जेठ की तपती दोपहरी में दो-चार मटके जगह-जगह रख दिए जाते है, जिन पर टाट या लाल रंग का कपड़ा बंधा

प्याऊ
निर्मल धारा
Posted on 08 Jun, 2014 12:20 PM

गंगा दशहरा पर विशेष


नदी महज बहते पानी का लंबा प्रवाह भर नहीं बल्कि यह हमारे जीवन से गहरी जुड़ी हैं। केंद्र में आई नई सरकार ने गंगा सहित देश की कई प्रमुख नदियों की स्वच्छता के लिए सार्थक पहल की बात कही है। हालांकि पूर्व में भी इस तरह की कुछ कोशिशें हुई हैं पर उनका हासिल सिफर रहा है। इसी मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार अरुण तिवारी और ओम प्रकाश की स्टोरी

कहना न होगा कि नदी की निर्मलता और अविरलता सिर्फ पानी, पर्यावरण, ग्रामीण विकास और ऊर्जा मंत्रालय का विषय नहीं है; यह उद्योग, नगर विकास, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, रोजगार, पर्यटन, गैर परंपरागत ऊर्जा और संस्कृति मंत्रालय के बीच भी आपसी समन्वय की मांग करता है। नदी की निर्मल कथा टुकड़े-टुकड़े में लिखी तो जा सकती है, सोची नहीं जा सकती। कोई नदी एक अलग टुकड़ा नहीं होती। नदी सिर्फ पानी भी नहीं होती। नदी एक पूरी समग्र और जीवंत प्रणाली होती है। अतः इसकी निर्मलता लौटाने का संकल्प करने वालों की सोच में समग्रता और दिल में जीवंतता का होना जरूरी है। नदी हजारों वर्षों की भौगोलिक उथल-पुथल का परिणाम होती है। अतः नदियों को उनका मूल प्रवाह और गुणवत्ता लौटाना भी बरस-दो बरस का काम नहीं हो सकता। हां, संकल्प निर्मल हो, सोच समग्र हो, कार्ययोजना ईमानदार और सुस्पष्ट हो, शातत्य सुनिश्चित हो, तो कोई भी पीढ़ी अपने जीवनकाल में किसी एक नदी को मृत्युशय्या से उठाकर उसके पैरों पर चला सकती है। इसकी गारंटी है। दर असल ऐसे प्रयासों को धन से पहले धुन की जरूरत होती है। नदी को प्रोजेक्ट बाद में, वह कोशिश पहले चाहिए, जो पेट जाए को मां के बिना बेचैन कर दे।
जलविहीनता ही है रसविहीनता
Posted on 08 Jun, 2014 12:16 PM नदी तट पर साक्षी बने रहना कठिन है। संगीत सभा में बैठकर अकंपित बने
आपका वाटर फुटप्रिंट
Posted on 08 Jun, 2014 11:20 AM ...जितना आप सोचते हैं उससे कहीं अधिक है...
अजर-अमर जहर
Posted on 08 Jun, 2014 10:58 AM कछुए जैली फिश का शिकार करते हैं। समुद्र में तैरती पॉलीथिन को अक्सर वे जैली फिश समझकर खा लेते हैं और परिणाम... केवल कछुओं का नहीं, यह हश्र तो हर समुद्री जीव का है। कभी न मिटने वाले प्लास्टिक पर समय रहते रोक न लगाई गई, तो इंसानी जीवन भी खतरे में आ जाएगा....
आपका कुछ खो गया है?
Posted on 07 Jun, 2014 04:41 PM जीवन में जो कुदरती हुआ करता था, वह पीछे छूट चुका है और कृत्रिमता ने उसकी जगह ले ली है। स्वाद, सुख, सेहत और सहजता की दौलत छिन गई है...
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