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प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य बनाने की जरूरत है
Posted on 15 May, 2014 01:45 PM हिमालय दिवस, 9 सितंबर 2011 को दिल्ली के आईआईसी में अगाथा संगमा (ग्रामीण विकास राज्य मंत्री, भारत सरकार) के दिए गए वक्तव्य पर आधारित आलेख यहां प्रस्तुत है।
भारतीय मानस का भूगोल
Posted on 15 May, 2014 10:12 AM

भारत में भौगोलिक चेतना और जलवायु चेतना अनादि काल से सांस्कृतिक चेतना का मूल अंग थी। कैलाश-मानसर

नदी जोड़ परियोजना : एक परिचय, भाग-2
Posted on 14 May, 2014 03:53 PM
जलमार्गों की श्रृंखला के तालमेल एवं पानी उठाने वाली व्यवस्था
drinking water
“नदियां जोड़ने वालों सत्याग्रह करते पानी की ‘कूक’ सुनो”
Posted on 13 May, 2014 04:14 PM

जब समाज और सेवा दो अलग-अलग शब्दों की तरह टूटते हैं तो बीच-बीच खाली जगह से सोशल वर्करों की घुसपैठ होती है। इन्हीं सोशल वर्करों में से तरक्की करके कुछ लोग एनजीओज बनते हैं, फिर इन एनजी.ओज को समाज की बजाए कंप्यूटर की वेबसाइट में ढूंढना पड़ता है।

बूंदों को देखो तो लगता है कि जैसे वे पानी के बीज हों। वर्षा धरती में पानी ही तो बोती है। पहले झले के पानी की एक-एक बूंद को पीकर धरती की गोद हरियाने लगती है। जैसे हरेक बूंद से एक अंकुर फूट रहा हो, जैसे धरती फिर से जी उठी हो। बरसात आते ही वह फूलों, फलों, औषधियों और अन्न को उपजाने के लिए आतुर दिखाई देती है।

कोई धरती से पूछे कि उसे सबसे अधिक किसकी याद आती है तो वह निश्चित ही कहेगी कि पानी की। वह पानी से ऊपर उठकर ही तो धरती बनी है। वह पानी को कभी नहीं भूलती। वह तो पानी की यादों में डूबी हुई है। ग्रीष्म ऋतु में झुलसती हुई धरती को देखो तो लगता है कि वह जल के विरह में तप रही है। उससे धीरे-धीरे दूर होता जल और उसकी गरम सांसें एक दिन बदली बनकर उसी पर छाने लगती हैं और झुलसी हुई धरती के श्रृंगार के लिए मेघ पानी लेकर दौड़े चले आते हैं।
राजरोगियों की खतरनाक रजामंदी
Posted on 13 May, 2014 04:01 PM
दूरी छोटा-सा शब्द है, लेकिन जब राज और समाज के बीच की दूरी बढ़ जाती है तो समाज का कष्ट कितना बढ़ जाता है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है। अच्छे लोग भी जब राज के नजदीक पहुंचते हैं तो उनको विकास का रोग लगा जाता है, भूमंडलीकरण का रोग लग जाता है, उनको लगता है सारी नदियां जोड़ दें, सारे पहाड़ों को समतल कर दें- बुलडोजर चला कर, उनमें खेती कर लेंगे। मात्र यही ख्याल प्रकृति के विरुद्ध है। मैं बार-बार कह रहा हूं कि यह प्रभू का काम है, सुरेश प्रभु सहित देश के प्रभु बनने के चक्कर में इसे नेता लोग न करें तो अच्छा है।

नदियां प्रकृति ही जोड़ती है। गंगा कहीं से निकली, यमुना कहीं से निकली। अगर ऊपर हेलिकॉप्टर से देखें तो एक ही पर्वत की चोटी से ठीक नीचे दो बिंदु से दिखेंगे। वहां उनमें गंगोत्री और यमुनोत्री में बहुत दूरी नहीं है। प्रकृति उन्हें वहीं जोड़ देती। लेकिन सब जगह अलग-अलग सिंचाई करके दोनों कहां मिलें, यह प्रकृति ने तय किया था। तब वहां संगम बना। उसके बाद डेल्टा की भी सेवा करनी है नदी को।

‘जब दामोदर नदी पर बांध बन रहा था, तब कपिल भट्टाचार्य नाम के इंजीनियर थे। वे किसी वैचारिक संगठन से नहीं जुड़े थे। लेकिन वे नदी से जुड़े हुए आदमी थे। उन्होंने अपने विभाग से अनुरोध किया कि दामोदर नदी घाटी योजना को रोक लें।
saaf mathe ka samaj
राजधानी की हवा
Posted on 13 May, 2014 09:18 AM

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में साफ पेयजल की उपलब्धता को संविधान के अनुच्छेद इक्कीस में

जल संसाधन : समृद्धि हेतु उपयोग करें भविष्य के लिए बचाएं
Posted on 11 May, 2014 12:26 PM
भारतीय नदियों में जल का स्रोत मुख्यतः वर्षा जल तथा कुछ भाग ब
आज का डाक्यूमेंटेशन कल आपको ख्याति दिला सकता है
Posted on 09 May, 2014 02:45 PM ट्री इंडिया की टीम के मुताबिक, अभियान से जो ऑब्जर्वेशन सामने आ रहा
पारिस्थितिकी तंत्र एवं पर्यावरण प्रदूषण
Posted on 09 May, 2014 01:46 PM आधुनिक युग में विकास के नाम पर मानव प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर तुल
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