चमोली जिला

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विकास की धारा में गुम होती पिंडर नदी
Posted on 19 Sep, 2012 01:35 PM उत्तराखंड में पिंडर नदी लोगों के जीवन और संस्कृति से गहरे जुड़ी हुई है। लेकिन अब इसके वजूद पर खतरा मंडरा रहा है। विकास के नाम पर इस क्षेत्र के जल, जंगल और जमीन को बर्बाद किया जा रहा है। इस नदी की देन और उस पर बनाए जा रहे बांधों से होने वाले नुकसान के बारे में बता रहे हैं अभय मिश्र।

तमाम विरोध को दरकिनार कर केंद्र सरकार देवसारी जलविद्युत परयोजना को हरी झंडी देने की तैयारी कर रही है। इसे बनाने वाली कंपनी सतलुज जल विद्युत निगम ने अपनी तैयारियां पूरी कर ली हैं। इसके बाद नंदकेशरी गांव से पैठाणी तक बनने वाली सत्रह किलोमीटर लंबी सुरंग में पिंडर बहने लगेगी। इस सुरंग की वजह से बत्तीस गांव सीधे तौर पर प्रभावित होंगे और अप्रत्यक्ष रूप से कितने गांवों पर इसका असर होगा इसका कोई आकलन ही नहीं है। पहाड़ों की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा राजजात को रास्ता बताती है पिंडर नदी। हर बारह साल में होने वाली दो सौ अस्सी किलोमीटर की इस दुर्गम यात्रा को पर्वतीय महाकुंभ भी कहा जाता है। मान जाता है कि शिव पार्वती को विवाह के बाद पिंडर घाटी के रास्ते ही विदा करा कर ले गए थे। आज भी हिमालय क्षेत्र की बेटियां यह कामना करती हैं कि उनकी विदाई के रास्ते में पिंडर के दर्शन हों। पिंडर घाटी की खूबसूरती यहां के लोकगीतों में बसती है जिनमें पिंडर को दूध का झरना कहा गया है। पिंडर को काफी ऊंचाई से देखने पर भी इसकी तलहटी पर पड़े पत्थर साफ नजर आते हैं। अलकनंदा और पिंडर के संगम कर्णप्रयाग से दस किलोमीटर दूर मौजूद पिंडर घाटी ही राजजात का मुख्य मार्ग है। पिंडर की इन्हीं खूबसूरत वादियों में सुनाउ तल्ला गांव भी है।
Pindar river
चिपको, छीनो-झपटो और...
Posted on 20 Jul, 2011 05:00 PM

ग्रामीणों और परियोजनाओं के लिए अलग-अलग और बार-बार बदलते मापदंडों के चलते चिपको की ऐतिहासिक भूम

इस आपदा ने विकास की असलियत बतायी
Posted on 20 Jul, 2011 04:06 PM

सितंबर के तीसरे सप्ताह भर की अखंड बारिश ने पूरे उत्तराखंड को जाम करके रख दिया था। उसने सोर-पिथौरागढ़ से लेकर रामा-सिनाई, बंगाण तथा बद्रीनाथ से हरिद्वार, कपकोट से नैनीताल तक के बीच के क्षेत्र को झिंझोड़ कर रख दिया। लगभग दो सौ लोग तथा नौ सौ पशु मारे गये। एक हजार मकान और फसल से भरे खेत नष्ट हो गये थे। एक गणना के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों सहित गाँवों को जोड़ने वाले नौ सौ मोटर मार्ग भी ध्वस्त हो ग

वन संरक्षण की नीतियों में जनहित को नहीं दी जाती तरजीह
Posted on 14 Jul, 2011 04:37 PM

उत्तराखण्ड का तकरीबन 45 फीसदी भाग वनों से ढँका पड़ा है। अगर उच्च हिमालय की वनस्पतिरहित, सदा हिमाच्छादित चोटियों को छोड़ दिया जाये, तो वन यहाँ के 66 फीसदी क्षेत्रफल को घेरे हैं। भारत में कुल क्षेत्रफल का 33 फीसदी वन क्षेत्र होना पर्याप्त माना गया है। इस दृष्टि से हम एक समृद्ध राज्य हैं। इन वनों के प्रबंधन के लिए उत्तराखण्ड सरकार ने तमाम नीतियाँ बनाई हैं और बेतहाशा बजट खर्च किया है। लेकिन ये नीति

पर्यावरण मंत्रालय चुप क्यों है ?
Posted on 14 Jul, 2011 04:16 PM

उत्तराखंड की समस्याओं पर केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की दृष्टि उतनी कठोर नहीं है, जितनी अन्य राज्यों पर। हरियाणा में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने रेणुका बाँध पर काम रुकवा दिया, क्योंकि वहाँ पेड़ों के कटान का स्थानीय लोग विरोध कर रहे थे। उत्तराखंड में चमोली जिले की पिंडर घाटी में बन रही देवसारी जल विद्युत परियोजना का दो वर्षों से अनवरत विरोध हो रहा है। उसका संज्ञान पर्यावरण मंत्रालय ने न

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून
Posted on 31 Dec, 2009 07:13 PM उत्तरांचल के पहाड़ों में देश के अन्य हिस्सों की तरह सामुदायिक जल प्रबंधन का एक लम्बा इतिहास रहा है। यहां नौला, धारा, मंगरा, ताल, खाल, चाल, बावड़ी, कुंडी इत्यादि जैसे पानी के स्रोत आज भी यहां की भव्य जल परम्परा के परिचायक हैं।
जल योद्धा
Posted on 31 Dec, 2009 05:41 PM

श्री सच्चिदानन्द भारती

उफरैखाल पौड़ी, चमोली और अल्मोड़ा के मध्य में स्थित है, जिसे पहले राठ कहा जाता था, जिसका अर्थ है पिछड़ा इलाका। यहीं एक दूधातोली लोक विकास संस्थान (दूलोविसं) है, जिसे ‘चिपको आंदोलन’ और ‘वन संवर्धन आंदोलन’ के लिए स्थापित किया गया था। इस संस्थान के संस्थापक श्री सच्चिदानन्द भारती (ढ़ौढ़ियाल) ने इस क्षेत्र में वनों को बचाने और बढ़ाने के लिए यहां के लोगों, विशेषकर महिलाओं
उत्तराखण्ड में पानी
Posted on 10 Nov, 2009 03:25 PM

उत्तराखण्ड में पानी का भयानक संकट विगत एक दशक से बना हुआ है। बारिश कम हो रही है। नदियों का जल स्तर लगातार घट रहा है। प्राचीन जल स्रोतो की स्थिति बद से बद्तर हो चुकी है। पहाड़ के नौले, धारे लगभग सूख चुके हैं।

एक आकंड़े के अनुसार उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक नगर अल्मोड़ा में सौ से अधिक नौले हैं। आज अल्मोड़ा पानी के लिए कोसी नदी पर पूरी तरह आश्रित है और कोसी नदी का जल स्तर सूख रहा है। उत्तराखण्ड में नदियों की हालत पल-पल

उत्तराखण्ड में पानी
नेग में मिली हरियाली
Posted on 19 Sep, 2008 06:37 PM आप मानें या न मानें, उत्तराखंड की लड़कियों ने शादी के लिए आए दूल्हों के जूते चुरा कर उनसे नेग लेने के रिवाज को तिलांजलि दे दी हैं। वे अब दूल्हों के जूतें चुराकर रूढ़ि को आगे नहीं बढ़ातीं। बलकि उनसे अपने मैत (मायके) में पौधे लगवाती हैं। इस नई रस्म ने वन संरक्षण के साथ-साथ सामाजिक समरसता और एकता की एक ऐसी परंपरा को गति दी है जिसकी चर्चा अब उत्तराखंड तक सीमित नहीं रह गई है।
चिपको आन्दोलन के पचास साल : एक थीं गौरा देवी (भाग 1)
अगली सुबह रैणी के पुरुष ही नहीं, गोविन्द सिंह रावत, चंडी प्रसाद भट्ट और हयात सिंह भी आ गये। रैणी की महिलाओं का मायका बच गया और प्रतिरोध की सौम्यता और गरिमा भी बनी रही। 27 मार्च 1974 को रैणी में सभा हुई, फिर 31 मार्च को इस बीच बारी-बारी से जंगल की निगरानी की गई। Posted on 02 Nov, 2023 03:35 PM

जनवरी 1974 में जब अस्कोट आराकोट अभियान की रूपरेखा तैयार हुई थी, तो हमारे मन में सबसे ज्यादा कौतूहल चिपको आन्दोलन और उसके कार्यकर्ताओं के बारे में जानने का था। 1973 के मध्य से जब अल्मोड़ा में विश्वविद्यालय स्थापना, पानी के संकट तथा जागेश्वर मूर्ति चोरी सम्बन्धी आन्दोलन चल रहे थे, गोपेश्वर, मंडल और फाटा की दिल्ली-लखनऊ के अखबारों के जरिये पहुँचने वाली खबरें छात्र युवाओं को आन्दोलित करती थीं लेकिन

गौरा देवी अस्कोट अभियन 84 के दौरान अपने घर में,फोटो साभार- शेखर पाठक
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