भोपाल जिला

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नली और पानी का खेल
Posted on 28 Feb, 2011 10:02 AM

पानी से भरे एक गिलास में प्लास्टिक या कांच की एक नली डालिए। आप देखेंगे कि नली में पानी की सतह गिलास के पानी की सतह से ऊपर उठ जाएगी। ऐसा क्यों होता है, जानते हैं इस बार की विज्ञान प्रोयगशाला में।

मध्य प्रदेश में जंगल
Posted on 26 Feb, 2011 04:34 PM

मध्यप्रदेश अपनी विविधता के लिये जाना-पहचाना जाता है। विकास और सामाजिक परिवर्तन के प्रयासों के संदर्भ में भी जितने प्रयोग और परीक्षण इस प्रदेश में हुए हैं; संभवत: इसी कारण इसे विकास की प्रयोगशाला कहा जाने लगा है। मध्यप्रदेश में राजस्व और वनभूमि के संदर्भ में भी विवाद ने नित नये रूप लिये हैं और अफसोस की बात यह है कि यह विवाद सुलझने के बजाय उलझता जा रहा है। इस विषय को विवादित होने के कारण नजरअंदाज

मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य
Posted on 26 Feb, 2011 03:36 PM

स्वास्थ्य भौतिक, सामाजिक एवं मानसिक रूप से पूर्ण कुशलता की अवस्था है। मात्र रोग की अनुपस्थिति ही स्वास्थ्य नहीं है। वर्ष 1979 में अल्मा् आटा के अंतराष्ट्रीय सम्मेलन ने स्वास्थ्य नीतियों के विकास में एक अहम् भूमिका निभाई है। इसी सम्मेलन में सभी लोगों तक स्वास्थ्य पहुंचाने की बात रखते हुये स्वास्थ्य को नई परिभाषा दी गई। यहीं से वर्ष 2000 तक 'सभी के लिए स्वास्थ्य उपलब्धता' पर पहल प्रारंभ की गई। आज

मध्यप्रदेश में स्वच्छता
Posted on 26 Feb, 2011 02:16 PM


• मध्यप्रदेश में समग्र स्वच्छता अभियान के अन्तर्गत 3311313 शौचालयों (गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों के लिए) का निर्माण किया जाना था पर बने केवल 669320 यानी 20.21 प्रतिशत।
• लक्ष्य यह था कि 56583 स्कूलों में स्वच्छ शौचालयों की व्यवस्था की जायेगी पर अब तक 20974 स्कूलों में यह व्यवस्था नहीं हो पाई।

सातवीं विकास संवाद मीडिया लेखन और शोध फैलोशिप के लिए आवेदन आमंत्रित
Posted on 21 Jan, 2011 11:40 AM

05 फरवरी होगी अंतिम तिथि


भोपाल। वर्ष 2011 के लिए सातवीं विकास संवाद मीडिया लेखन और शोध फैलोशिप की घोषणा कर दी गई है। इस साल प्रदेश के छह पत्रकारों को सामाजिक मुद्दों पर लेखन और शोध करने के लिए फैलोशिप दी जाएगी। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 05 फरवरी है।
बादल की एक यात्रा
Posted on 03 Jan, 2011 11:27 AM एक था बादल। छोटा-सा बादल। एकदम सूखा और रूई के फाहे सा कोमल। उसे लगता - यदि मैं पानी से लबालब भर जाऊँ, तो कितना मजा आए! फिर मैं धरती पर बरसूँगा, मेरे पानी से वृक्ष ऊगेंगे, पौधे हरे-भरे होंगे, सारी धरती पर हरियाली छा जाएगी... खेत अनाज की बालियों से लहलहाएँगे... ये सभी देखने में कितना अच्छा लगेगा! लेकिन इतना पानी मैं लाऊँगा कहाँ से?
छुटकी की मनरेगा पर जागरूकता
Posted on 03 Dec, 2010 10:24 AM

छुटकी (छोटी लड़की) समर्थन की एक ऐसी पहल है जिसके माध्यम से कठिन मुद्दों को बड़े ही सरलतम तरीके से पेश किया गया है। छुटकी श्रोताओं को नरेगा के संबंध में क्या और कैसे जैसी जानकारियां बड़े ही कॉमिक अंदाज में बता रही है। इन आसान और कॉमिक तरीको को जानने के लिये आप यह पुस्तक पढ़ सकते हैं।

NAREGA
जीवनदायिनी नर्मदा के ‘दिल’ के साथ खिलवाड़
Posted on 22 Oct, 2010 12:20 PM
नदियों तक पानी पहुंचाने वाले 50 फीसदी तटीय क्षेत्र खत्म, एक अध्यन में खुलासा

भोपाल प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी खतरे में है। इसकी वजह है नर्मदा के तटीय क्षेत्रों का तेजी से खत्म होना। इन तटीय क्षेत्रों से ही पानी नर्मदा नदी में पहुंचता है, लेकिन एक ताजा अध्ययन के अनुसार प्रदेश में नर्मदा के 50 फीसदी तटीय क्षेत्र नष्ट हो चुके हैं। ऐसा इन तटीय क्षेत्रों पर अतिक्रमण की वजह से हुआ है।

भोपालः मृत्यु की नदी की कुछ बूंदें
Posted on 14 Oct, 2010 12:28 PM फैसला और न्याय में सचमुच कितना फासला होता है, इसे बताया है 25 बरस बाद भोपाल गैस कांड के ताजे फैसले ने। दुनिया के सबसे बड़े, सबसे भयानक औद्योगिक कांड के ठीक एक महीने बाद लखनऊ में हुई राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस में एक वैज्ञानिक ने इस विषय पर अपना पर्चा पढ़ते हुए बहुत ही उत्साह से कहा थाः ”गुलाब प्रेमियों को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता होगी कि भोपाल में गुलाब के पौधों पर जहरीली गैस मिक का कोई असर नहीं पड़ा है। “ भर आता है मन ऐसे ‘शोध’ देखकर, पर यह एक कड़वी सचाई है। भोपाल कांड के बाद हमारे समाज में, नेतृत्व में, वैज्ञानिकों में, अधिकारियों में ऐसे सैकड़ों गुलाब हैं, जिन पर न तो जहरीली मिक गैस का और न उससे मारे गए हजारों लोगों का कोई असर हुआ है। वे तब भी खिले थे और आज 25 बरस बाद भी खिले हुए हैं।
भोपाल के भव्य भारत भवन में ठहरे फिल्म निर्माता श्री चित्रे की नींद उचटी थी बाहर के कुछ शोरगुल से। पूस की रात करीब तीन बजे थे। कड़कड़ाती सर्दी। कमरे की खिड़कियां बंद थीं। चित्रे और उनकी पत्नी रोहिणी ने खिड़की खोलकर इस शोरगुल का कारण जानना चाहा। खिड़की खोलते ही तीखी गैस का झोंका आया। उन्होंने आंखों में जलन महसूस की और उनका दम घुटने लगा।
खाद्य सुरक्षा से ज्यादा जरूरी जल सुरक्षा
Posted on 26 Jun, 2010 09:35 AM


भास्कर फाउंडेशन द्वारा आयोजित पानी पर राष्ट्रीय सेमिनार

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