भारत

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वन-खेती
Posted on 12 Feb, 2010 10:52 AM सामाजिक वानिकी का स्वरूप बिगाड़ने का मुख्य कारण है इमारत निर्माण और रेयान और कागज उद्योग के लिए जरूरी लुगदी वाली लकड़ी का शहरी बाजारों में मिलना मुश्किल हो जाना। सरकार ने वन-खेती को जो बढ़ावा दिया और आर्थिक सुविधाओं का जो आश्वासन दिया, उससे बड़े किसानों की पौ बारह हो गई। छोटी अवधि की खेती के बजाय लंबे समय के पेड़ों के खेती करने पर कम मजदूरों से भी काम चल जा
सामाजिक वानिकी
Posted on 12 Feb, 2010 10:12 AM राष्ट्रीय कृषि आयोग ने 1976 में ईंधन, चारा लकड़ी और छोटे-मोटे वन उत्पादों की पूर्ति करने वाले पेड़ लगाने के कार्यक्रम के लिए सामाजिक वानिकी शब्द उछाला था। लगभग दस वर्ष बाद आज सरकार की यह योजना सबसे ज्यादा विवादास्पद बन गई है ।
भूमिगत जल
Posted on 10 Feb, 2010 09:19 AM जिस देश को आज से 20 साल के बाद पानी के भयंकर संकट का सामना करना पड़ेगा, उसके लिए भूमिगत पानी का सही उपयोग करना बहुत ही महत्वपूर्ण है पर इस मामले में भी देश की भूमिगत जल संपदा और उसके उपयोग से संबधित पूरे आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। फिर भी कुछ अनुमान इस प्रकार है: बताया जाता है कि 300 मीटर गहराई में लगभग 3 अरब 70 क.हे.मी.
पानी की मांग
Posted on 09 Feb, 2010 12:27 PM पानी की मुख्य मांग सिंचाई के लिए है। 1974 में देश में जितना पानी इस्तेमाल हुआ, इसका 92 प्रतिशत सिंचाई में गया। बचे 8 प्रतिशत से घरेलू और औद्योगिक जरूरतें पूरी की गईं। देहातों में या तो पानी है नहीं, या पानी उनकी पहुंच में नहीं है, इसलिए कम से कम पानी से उन्हें काम चलाना पड़ता है। अगर मान लें कि सन् 2025 तक घरेलू और औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुसार पूरा और पर्याप्त प्रबंध होता है, तो कुल पानी का 73 प्
देश की जलकुंडली
Posted on 09 Feb, 2010 12:21 PM हालत दिन-ब-दिन ज्यादा-से-ज्यादा बिगड़ती जा रही है, फिर भी हम अपने जल संसाधनों के उपयोग इतनी लापरवाही से कर रहे हैं मानो वे कभी खत्म ही नहीं होने वाले हैं। दामोदर घाटी प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष श्री सुधीर सेन इसे नेतृत्व का संसाधनों के बारे में ‘अज्ञान’ कहते हैं।
जल
Posted on 09 Feb, 2010 12:11 PM जल संपदा के मामले में कुछेक संपन्नतम देशों में गिने जाने के बाद भी हमारे यहां जल संकट बढ़ता जा रहा है। आज गांवों की बात तो छोड़िए, बड़े शहर और राज्यों की राजधानियां तक इससे जूझ रही हैं। अब यह संकट केवल गर्मी के दिनों तक सीमित नहीं है। पानी की कमी अब ठंड में भी सिर उठा लेती है। दिसंबर 86 में जोधपुर शहर में रेलगाड़ी से पानी पहुंचाया गया है।

देश की भूमिगत जल संपदा प्रति वर्ष होने वाली वर्षा से दस गुना ज्यादा है। लेकिन सन् 70 से हर वर्ष करीब एक लाख 70 हजार पंप लगते जाने से कई इलाकों में जल स्तर घटता जा रहा है।

वैदिक वाङ्मय में नदी-भौतिक रूप या प्रतीकात्मक
Posted on 08 Feb, 2010 12:38 PM ऋग्वेद और अथर्ववेद में अनेक नदियों का उल्लेख है। दोनों में ‘सप्त सिंधवः’ अर्थात साथ नदियों का अनेक बार उल्लेख है। अथर्ववेद में तो कहा गया है कि सात नदियाँ हिमालय से निकलती हैं और सिंधु में मिलती है। इन्हें सिंधु की पत्नी और सिंधु की रानी भी कहा गया है। इन सात नदियों में पाँच तो पंजाब की ही है- शुतुद्री, विपाशा, इरावती, चन्द्रभागा तथा बितस्ता, जिन्हें आज क्रमशः सतलज, व्यास, रावी, चिनाब और झेलम कहा
चरागाह
Posted on 05 Feb, 2010 01:11 PM पशुधन के मामले में हमारा देश सचमुच बहुत धनी है। मस्तचाल से चलने वाली भैंसों से लेकर हर क्षण छलांग भरने वाले हिरनों तक के जानवरों के आकार-प्रकार अनगिनत हैं और उनकी संख्या भी करोड़ो में है। कुल धरती के रकबे के हिसाब से दुनिया में चालीसवें नम्बर पर आने वाले हमारे देश में कुल दुनिया की 50 प्रतिशत से ज्यादा भैंसें, 15 प्रतिशत गाय-बैल, 15 प्रतिशत बकरी और 4 प्रतिशत भेड़ हैं। देश के जीवन में इन पशुओं की ब
भूमि
Posted on 05 Feb, 2010 01:09 PM कवि जिस माटी के गुण गाते थकते नहीं थे, आज वह माटी ही थक चली है। सुजला, सुफला, शस्य श्यामला धरती बंजर बनती जा रही है।
चारागाहों की खस्ता हालत
Posted on 30 Jan, 2010 02:40 PM

चारे के उत्पादन अथवा चारागाहों की सुरक्षा की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है। अधिकांश चारागाह आज पूर्णतया उपेक्षित बंजर भूमि के क्षेत्र बनकर रह गए हैं।

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