बरसाती गीत (भाग 2)

मेवाजी मनावां हम तो आज
मन का तो मंगल जी गावियां
म्हारा राज.... ।।टेक।।

आबां पे चमके है चम-चम बीज
काली ने पिली जी बादलियां
म्हारा राज....... ।।1।।

बरसा हुई है घनघोर
नदी ने नाला जी भरिया
म्हारा राज........।।2।।


बागा में नाचे है ढाढर मोर
मोरनी की मन में जी भावियां
म्हारा राज........।।3।।

मेवाजी मनावां हम तो आज
मन का तो मंगल जी गावियां
म्हारा राज........ ।।4।।

हम मेघराजा को मंगल गीत गाकर मनायेंगे। बिजली चमक रही है। काली-पीली बादलियाँ हो रही हैं। घनघोर बारिश हो रही है, नदी नाले सब भर गये हैं। यह सब देखकर मोर अपने पंख फैलाकर नाच रहा है, मोरनी यह देखकर अपनी सुध-बुध खो रही है, भावविभोर हो रही है।

ऐजी में तो हरक-हरक मंगल गावां जी
राजा इन्द्र ने मनावां......मैं तो ।।टेक।।

पेलों बदोवा गजानन्द जी ने देवां
ऐसजी में तो मेवाजी ने बेग बुलावां जी
राजा इन्द्र ने बदावां.....मैं तो ।।1।।

दूसरे बदोवा काली बादली ने देवो
ऐजी जिनने रिमझिम पाणी बरसाया जी
राजा इंद्र ने बदावां......मैं तो ।।2।।

तीसरो बदोवा म्हारा सातीड़ा ने देवो
ऐजी जिनने शिपरा मैयां चुनड़ ओड़ाई जी
राजा इन्द्र ने बदांवा.....मैं तो ।।3।।

चौथो बदोवा बई बेनना के देवो
ऐसी जिनने मंगल गावी मेघ बुलाया जी
राजा इन्द्र ने बादांवा......मैं तो ।।4।।

महिलायें राजा इन्द्र को मंगल गीत गा-गाकर बधाइयाँ दे रही हैं, जिन्होंने इतना पानी बरसाया। गजानन्द जी और काली बादलियों को बधाइयाँ दे रही हैं, जिन्होंने इतना पानी लाकर बरसाया। सभी सखी-सहेलियों को भी बधाइयाँ दे रही हैं, जिन्होंने शिप्रा माँ को चुनरी चढ़ाई है।

काली पीली बादली जी, म्हारो लेर्यो भींज्यो जाय
भायेला म्हारो लेर्यो भीज्यो जाय
चातुर थारो भायेलो जी, पचरंग्यो निचोयो जाय........
भायेला, पंचरग्यो निचोयो जाय

टीकी दई मेला चड़ी जी कई, बिच काजल की रेख
सायब को सारो नई जी कई लिख्यो बिदाता लेख
भायेला म्हारो लेर्यो भिंज्यो जाय, भायेला म्हारो लेर्यो.....
चतुर थारा भायेला, पंचरग्यो निचोयो राज

वी गया रामचंद वी गया, वी गया कोस पचास
सिर बदनामी दई गया, घड़ीयेनी बैठा पास
भायेला म्हारो लेर्यो भिंज्यो जाय
भंवर थारा भायेला जी पंचरंग्यो निचोयो जाय......

आवण जावण करी गया, करी गया कोल करार
गीणता-गीणता धंसी गई, आंगलियारी रेख
भायेला म्हारो लेर्यो भिंज्यो जाय
भंवर थारा भायला पंचरग्यो निचोयो जाय

काली-काली बदली चढ़ी है। पानी की फुहार आ गई है मेरा लुगड़ा गीला हो गया है। मेरा पिया चतुर है उसका साफा गीला हुआ तो उसे निचोड़ रहा है। माथे पर बिन्दी, आँखों में काजल लगाया, महल में गई लेकिन पिया नहीं मिले, वह तो बहुत दूर चले गये हैं। मेरे सिर पत्नी होने का नाम दे गये हैं, मेरे पास एक पल भी नहीं बैठे। मुझसे वादा कर गये थे कि जल्दी आऊँगा लेकिन अँगुली की रेखाएं मेरी गिनती लगाते-लगाते घिस गई हैं, वह अभी तक नहीं आये हैं।

मक्का की मेड़ी पे ऊबी गाम की गोरी
तो हाता में पत्थर ने गोफण की दोरी
मक्का की.......... ।।टेक।।

हांको करी ने वा होर्या उड़ावे
डागले चड़ीने गीत मालवा का गावे
तो ने पो करे छे किरसाणा की छोरी
मक्का की........... ।।1।।

आवे चिरकला ने चोंच लगावे
टुई-टुई करता चुआ घणा आवे
तो चुपके से स्याल आवे हे चोरी-चोरी
मक्का की........... ।।1।।

काली घटा उठी बिजली जो कड़के
रात इंदारी में जीवड़ो जो धड़के
तो सूनी-सूनी रात कटे हे घणी दोरी
मक्का की............. ।।3।।

रिमझिम-रिमझिम मेवलो बरस
पियु बिन जिवड़ो गोरी को तरसे
तो चांद बिना जेसे तरसे चकोरी
मक्का की.............. ।।4।।

लिख-लिख पाती पियुजी पे भेजा
आजा रे भंवर म्हारे दरसन देजा
तो पियु तमसे लागी लगन मन की डोरी
मक्का की......................... ।।5।।

मक्का के फसल की रखवाली करने के लिए खेत में मचान बनाकर सुन्दर सी लड़की पत्थर और गोफन लेकर पहरा दे रही है और चिल्लाकर भी पंछियों को उड़ा रही है। गीत भी गाती जा रही है। उसकी आवाज जैसे ही बन्द होती है, चुपके से चूहे और सियार खेत में घुस आते हैं। अँधेरी रात में बिजली कड़कती है और गोरी का दिल धक-धक करने लग जाता है। ऐसे में रात भी बहुत देरी से निकलती है। धीरे-धीरे पानी बरसने लगा और पति के बगैर उसका दिल और जोरों से धड़कने लगा जैसे चाँद के बगैर चकोर तरसता है। पति को कितनी ही चिट्ठियाँ लिखीं कि मुझसे आकर मिलो, तुमसे प्रीत की डोर जो बँधी है।

हो पियाजी-मोती बेराणा काला खेत में
निबजेगा एक से हजार राज
धन-धन धरती से म्हारो मालवो।।टेक।।

हो पियाजी कंचन सी माटी मन भावणी
हो पियाजी मेवलो बरसे ने होवे बावणी
देखो हरियाणी को सिनगार राज
धन-धन धरती.......... ।।1।।

हो पियाजी मेनत को मोल हाते हात है।
हो पियाजी नवा-नवा बीज नवो खात है
संकर मक्कर ने ओर ज्वार राज
धन-धन धरती............... ।।2।।

हो पियाजी मेनत की बेला बरदावणी
हो पियाजी लूटे किरसाण जेद लावणी
अन धन से भरे भण्डार राज
धन-धन धरती............. ।।3।।

हो पियाजी हरियाली छाई माले माल हे
हो पियाजी पंछीड़ा बोले डाले-डाल हे
खेत ने खला की मनवार राज
धन-धन धरती......... ।।4।।

हो पियाजी नवा-नवा काम की सोचणा
हो पियाजी मेनत करांगा अपण दोई जणा
सांज ने सवेरे लगातार राज
धन-धन धरती......... ।।5।।

पिया! हमारे काले खेतों को देखकर ऐसा लगता है जैसे खेत में मोती बिखरे हैं। मैं धरती माँ को धन्यवाद देती हूँ। खेत की मिट्टी कितनी लुभावनी है। जैसे ही पानी बरसता है। नर्म पड़ जाती है और किसान बोवनी कर देता है। हमारी मेहनत का फल हाथों-हाथ धरती माँ देती हैं। नये-नये बीजों को बोना और शंकर मक्का और जुआर से कितनी हरियाली का श्रृंगार हो गया है। मेहनत एक वरदान है जिससे किसान खुशहाल और मालामाल हो जाता है। ऐसी हरियाली को देखकर पंछी भी खुश होकर बोल रहे हैं। पिया! खेतों को कैसे सँवारना है, नये-नये कामों के बारे में आपने क्या सोचा? हम दोनों मिलकर सुबह-शाम लगातार मेहनत करेंगे।

हरियाली आंगण छाई धरती माता को सिनगार
धरती माता को सिनगार, आता जाता की मनवार
हो हरियाली.......... ।।टेक।।

अब तम लावो झाड़ का रोपा, हर घर नगर-नगर में चोंपा
जिनसे बरसा होय सवाई, धरती माता को सिनगार

हो हरियाली.......... ।।1।।

हवा को चले रोज सन्नाटो, अब तम हरा झाड़ मत काटो
कोई दन होवेगा दुख दाई, धरती माता को सिनगार
हो हरियाली.......... ।।2।।

हर नर सींचण हारा माली, जंगल-जंगल की रखवाली
करजो परबत हो या खाइ, धरती माता के सिनगार
हो हरियाली............ ।।3।।

मेनत करजो अब तम काठी, सोनो उगले मालव माटी
खेत में दूणी फसल उगाई, धरती माता को सिनगार
हो हरियाली ।।4।।

अब तक यो बचन निभाजो, हर नर एक झाड़ लगाजो
जिनसे बरसा होय सवाई, धरती माता को सिनगार
हो हरियाली............... ।।5।।

हरियाली छायी है, ऐसा लगता है कि धरती माता ने अपना श्रृंगार किया है। इतनी वर्षा हुई है कि धरती माँ आने-जाने वालों का स्वागत कर रही है। पेड़ के छोटे-छोटे पौधे लाओ और घर आँगन में लगाओ, जिससे अच्छी बरसात होगी। हरे वृक्षों को नहीं काटना, उससे हम लोग दुःखी हो जायेंगे। हर व्यक्ति पेड़ों को पानी देगा और जंगलो की रखवाली करेगा। मेहनत करोगे तो धरती माँ सोना उगलेगी। फसल भी ज्यादा होगी। आप सब यह वचन जरूर निभाना।

कोयलिया


मारूजी का रोटा देवा जऊं वो कोयलिया
तो मीठी घणी प्यारी लागे थारी बोलिया......मारूजी

सेड़-सेड़ जऊं हूं तो खेत का किनारे
कांख मांय पाणी की गागर म्हारे
तो माथा पे रोटा की धरी है टोपलिया......मारूजी

बइजी का बीरा म्हारी सासूजी का जाया
भाग भरोसे भंमर ऐसा पाया
तो राधा ने पाया जैसे कृष्ण कन्हैया......मारूजी

अइ हे दफोरी बलम होगा भूका
कड़ाका की भूक लागे रोआ सूका
तो रीस माथे चाबी खोव अपनणी उंगलियाँ.......मारूजी

सामन्द छोड़ी ने सेड़े उबा वेगा
देर लागे तो म्हारे वी कंई केगा
तो कदी नी सुणी हे उनकी बाकी टेड़ी
बोलियाँ.....मारूजी

डागले चड़ी ने म्हारी बाट जोवेगा
उना रोटा खावा सारू मूंडो धोवेगा
तो रीस का रिसालू हटिला म्हारा छलिया.........मारूजी

मीठी-मीठी बोली म्हारे मति बिलमावे
देर होवे ते म्हारे जीव घबरावे
तू नी माने तो म्हारा पाछे चली आ.....मारूजी

पति खेत में सामन्द लेकर चलाने गया, दोपहर का वक्त हो चला था। पत्नी अपने पति के लिए खाना लेकर चली तो रास्ते में कोयल की मीठी-मीठी बोली उसके मन भा गई। वह कोयल से कहती है- मैं अपने पति का खाना लेकर जा रही हूँ, बगल में पानी की गगरिया है और सिर पर रोटी की टोपली रखी है। पत्नी कोयल से कहती है- मेरे पति काम छोड़कर खेत के किनारे खड़े होंगे, उनको बहुत जोरों की भूख लगी है, अगर मैं तेरी मीठ बातों में उलझूँगी ते मुझे देर हो जायेगी और देर होगी तो वह नाराज होंगे, मैंने कभी उनकी गुस्से भरी बातें नहीं सुनी हैं। वह हाथ मुँह धोकर तैयार खड़े होंगे। लेकिन मेरे पति बहुत हठीले हैं, मेरे भाग्य इतने अच्छे हैं कि ऐसे पति मुझे मिले हैं। जैसे राधाजी को कृष्ण जी मिले थे, वैसे ही मुझे मेरे पति मिले हैं।

पांणत करो प्यारी पांणत करो प्यारी
सिंचो सब क्यरी निरमल नीर से

1. मबलक पाणी भर्यो कुवा में, केसर वरणी नार
कमर कसी ने काम करां तो, धरती को सिनगार
पांणत करो......

2. चड़स चले पाणी परबारो, आवे पाटे पाट
गऊं चणा की भेली खेती, होय आनन्द का ठाट
पांणत करो..........

3. तम हलधर किरसाण का बेटा, धरती मां का लाल
श्रम शक्ति से करो सादना, मेहनत का महिपाल
पांणत करो........

4. पियत खेत फसल दन दूणी, गऊं चणा की होय
आस पराई छोड़ के, किरसाण सुख की निदरा सोय
पांणत करो.........

5. गरब भरी नजरा से साजन निरखण में समतोल
क्यारे क्यारे फिरे गाम की गोरी घूंगट खोल
पांणत करो.......

पति-पत्नी से कहता है कि- हे प्रिय!पानी बरसने से खूब लबालब कुएँ और बावड़ी भर गये हैं। अपने खेत का काम पूरा करो, सब क्यारी को खोल दो ताकि पानी पूरे खेत में चला जाय। मेहनत करेंगे तो हमारे खेत सोना उगलेंगे, हमें किसी के भरोसे नहीं रहना है। अपना काम खुद कर फसल उगाना है। घूँघट खोल दे और कमर कस ले। मेहनत करो तो हम सुख की नींद सोयेंगे।

छाई है हरियाली खेत में हरियाली
खेत में छाई हरियाली, खेत में छाई हरियाली

काला खेत दिखे है हरियाला
नी हे कोई खाली.......खेत में छाई हरियाली

चारी खुंट मक्का से भरिया
करजो रखवाली......खेत में छाई हरियाली

हर घर खुशी का बहार की बेला
मनहर मतवाली........खेत में छाई हरियाली

सब किरसाण अबीर गुलाल उड़ावे
भर-भर के थाली........खेत में छाई हरियाली

खेतों में चारों तरफ हरियाली छायी है, काले खेत हरे-भरे दिखाई दे रहे हैं। चारों ओर मक्का से भरे खेत हैं। हर घर में खुशियों का माहौल है, हर किसान इतना आनन्दित है कि अबीर-गुलाल से जैसे होली खेल रहा है।

चड़स हांके हे हजारी, पांणत खेत में करां
पांणत खेत में करां, चड़स हांके हे.......।।टेक।।

हर्या भर्या खेत में पांणत करे सुवागण नार
चाखड़ी में चड़स हांके भोला सा भरतार
क्यारे-क्यारे में फिर, धिरे-धिरे पग धरां
भिंजे-भिंजे है चुनड़ म्हारी, पांणत खेत में करां......।।1।।

माथा की चुनड़ भिंजे म्हारी, मेंदी भर्या हात
लाल गुलाबी चुड़ला की , मिटे सुनेरी भांत
चांगट सोना का खरा, में तो हेड़ी ने धरां
पोंची हात से उतारी, पांणत खेत में करां.....।।2।।

पाट उबारा से पाणी आवे सूका खेत सिंचाई
बाजणिया बिछिया में चिकणी माटी भर-भर जाय
हुवा खेत सब हरा, देखो नजर से जरा
साजन जाऊं रे वारी-वारी, पांणत खेत में करां.......।।3।।

गऊं चणा का खेत में, हरियाली को सिनगार
जैसे नार नवेली उबी, मोतीयन मांग भराय
काला खेत की मनवार, फसल चोगणी को भार
धरती मेनत से सिनगारी, पांणत खेत में करां.......।।4।।

कुआँ, तालाब लबालब भरे हैं। मेरे पिया खेत में चड़स (खेत में पानी पहुँचाने का पात्र) के जरिये कुएँ से पानी खींचकर पहुँचा रहे हैं। खेत की बंद क्यारियाँ मैं खोलती जा रही हूँ. ताकि पूरे खेत में पानी-पानी हो जाय। क्यारियाँ खोलते-खोलते मेरे सिर की चूनरी भी गई है, मेरे हाथों की मेहंदी मिट्टी लगने से धुँधली हो गई है। मेरे हाथों में पहने चूड़े (लाख की चूड़ियाँ) भी मिट्टी लगने से खराब हो गए हैं। इससे तो चाँदी के गहने ज्यादा अच्छे हैं। खेतों में इतनी हरियाली दिखाई दे रही है कि जैसे सुहागन महिला माँग भरकर नई नवेली खड़ी है। यह सब मेहनत का फल है।

सायबा टेड़ी-मेड़ी सरवर बाटड़ी, अब तम सुणी लीजो हो
सुन्दर मारूणी का कंथ, कीचड़ घणो पनघट पंथ
पियाजी पणीड़ा जावां तो पगल्या खीसले.....सायबा (टेक)

सायबा तांबा पित्त को माथे बेवड़ों, अब तो झोका लागे ने
पियाजी पाणी झलकाय, चूनड़ भींजी भींजी जाय
सुन्दर गौरी मन मुसकाय, पियाजी पाणीड़ा
जांवा ते पगल्या खिसले
सायबा टेड़ी-मेड़ी सरवर बाटड़ी......

सायबा झोका लागे है पाणी खेंचता, तम तो बंदई दीजो हो,
साजन सरवर की पाल, सुणो म्हारा सासुजी का लाल
सुन्दर गोरी का हाल, पियाजी पाणीड़ा
जावां तो पागल्या खीसले
सायबा टेड़ी-मेड़ी सरवर बाटड़ी.......

अब तम सुणी लीजो हो सुन्दर मारूणी का कंथ कीचड़ घणो
पनघट पंथ, पियाजी पाणीड़ा जावां तो पगल्या खीसले
सायबा टेड़-मेड़ी सरवर बाटड़ी

सायबा सड़क बणइदो इना गाम की, यां तो मेवलो बरसे ने
कीचड़ गोड़े-गोड़े होय, अणवट दिया हमने खोय
यो दुःख जाणे हे सब कोय, पियाजी पाणीड़ा जावां तो पगल्या
खीसले,......सायबा टेड़ी-मेड़ी सरवर बाटड़ी.....

अब तम सुणी लीजो हो सुन्दर मारूणी का कंथ, कीचड़ घणो
पणघट पंथ......पियाजी पाणीड़ा जांवा तो पगल्या खीसले
सायबा टेड़ी-मेड़ी सरवर बाटड़ी.......

पत्नी-पति से कहती है कि-पिया! पानी इतना बरसा है कि मैं जब पानी भरने पनघट पर जाती हूँ तो पगडंडी पर इतना कीचड़ है कि मेरे पैर फिसलते हैं। मेरे सिर पर ताँबे और पीतल का घड़ा रहता है। और कीचड़ की वजह से मुझे झोंके लगते हैं, उस झोंके से घड़ो का पानी छलकता है, पानी से मेरी चुनरी गीली हो जाती है। जब मैं पानी खींचती हूँ तो मुझे वहाँ भी झोंके लगते हैं, क्योंकि कुएँ की पाल भी टूटी हुई है। पिया! मेरी बात ध्यान से सुनना, उस कीचड़ में मेरे पैरों के जेवर भी कितनी बार गुम हो चुके हैं। मेरी सास के लाड़ले, मेरी प्यारी ननद के भाई यहाँ गाँव में सड़क बनवा देना।

आम की झुकी-झुकी डाली
माल में छाई हरियाली

काला खेंत दिखे हरियाला
नी हे कोई खाली....आम की झुकी......

चारी खूंट चणा से भरिया
करजो रखवाली.....आम की झुकी....

अई मेघ बहार की बेला
मनहर मतवाली......आम की झुकी.....

हलधर अबीर गुलाल उड़ावे
भर-भर के थाली.....आम की झुकी...

हरियाला आंचल में गऊं की
गरब भरीवाली....आम की झुकी....

जैसे नार सुवागण आँगण
उबी नखराली...आम की झुकी....

मेघराजा की इतनी मेहरबानी हो गई है कि आम की डाल तक झुक गई है। खेत सब हरे-हरे दिखाई दे रहे हैं। खेत के चारों कोने चने से भरे हैं इसलिए इनकी रखवाली करना है। किसान इतने खुश दिखाई दे रहे हैं, जिस खेत पर नजर डालो ऐसा लगता है कि कोई नखराली सुहागन महिला आँगन में खड़ी है।

Path Alias

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Post By: tridmin
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