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पुरबा में पछुँवा बहै
Posted on 18 Mar, 2010 03:33 PM
पुरबा में पछुँवा बहै। हँसि के नारि पुरुष से कहै।
ऊ बरसे ई करै भतार। घाघ कहै यह सगुन बिचार।।


भावार्थ- यदि पुरवा नक्षत्र में पछुवा बहे और कोई स्त्री परपुरुष से हँस-हँसकर बात करे तो सगुन विचार कर घाघ कवि कहते हैं कि पानी अवश्य बरसेगा और वह स्त्री उस पुरुष से अनुचित सम्बन्ध बनायेगी।

पूरब के बादर पश्चिम जायँ
Posted on 18 Mar, 2010 03:06 PM
पूरब के बादर पश्चिम जायँ, पतली पकावै मोटी खाय।
पछुवाँ बादर पुरुब को जाय, मोटी पकावै पतरी खाय।।


शब्दार्थ- पतरी-पतली।
नौमी माह अँधेरिया
Posted on 18 Mar, 2010 03:00 PM
नौमी माह अँधेरिया, मूल रिच्छ को भेद।
तौ भादौं नौमी दिवस, जल बरसै बिन खेद।।


शब्दार्थ- रिच्छ – नक्षत्र।

भावार्थ- यदि माघ कृष्ण नवमी को मूल नक्षत्र हो तो भाद्र कृष्ण नवमी को वर्षा अवश्य होगी।

धुर आसाढ़ी बिज्जु की
Posted on 18 Mar, 2010 02:56 PM
धुर आसाढ़ी बिज्जु की, चमक निरन्तर होय।
सोमाँ सुकराँ सुरगुराँ, तो भारी जल होय।।


शब्दार्थ- सुकराँ-शुक्र।

भावार्थ- यदि आषाढ़ कृष्ण पक्ष में सोमवार, शुक्रवार और वृहस्पतिवार को थोड़ी-थोड़ी देर में लगातार बिजली चमके तो वर्षा अधिक होगी।

धनुष पड़ै बंगाली
Posted on 18 Mar, 2010 02:51 PM
धनुष पड़ै बंगाली। मेह साँझ या संकाली।

शब्दार्थ- बंगाली-पूर्व दिशा, संकाली-सुबह।

भावार्थ- यदि प्रातःकाल पूर्व में इन्द्रधनुष दिखाई पड़े तो प्रातःकाल या सायंकाल वर्षा निश्चित होगी।

धनि वह राजा धनि वह देस
Posted on 18 Mar, 2010 02:45 PM
धनि वह राजा धनि वह देस, जहवाँ बरसै अगहन सेस।
पूस में दूना माघ सवाई, फागुन बरसै घरौ से जाई।।


भावार्थ- वहा राजा और वह देस धन्य है जहाँ अगहन रहते पानी बरसे और यदि पौष महीने में वर्षा हो तो कहना ही क्या। इस बरसात से अनाज दूना पैदा होगा और माघ में वर्षा हो तो सवाया होगा लेकिन यदि यही वर्षा फागुन में हुई तो घर का अनाज भी चला जायेगा।

दिन को बद्दर रात निबद्दर
Posted on 18 Mar, 2010 02:29 PM
दिन को बद्दर रात निबद्दर, बह पुरवैया झब्बर झब्बर।
घाघ कहैं कछु होनी होई, कुआँ के पानी धोबी धोई।


भावार्थ- यदि दिन में बादल हों और रात में आकाश साफ हो और धीर-धीरे पुरवा हवा बह रही हो तो वर्षा इतनी कम होगी कि धोबी को कपड़े धोने के लिए भी कुएं से पानी निकालना पड़ेगा।

दूर गुड़ुसा दूर पानी
Posted on 18 Mar, 2010 02:10 PM
दूर गुड़ुसा दूर पानी।
नीयर गुड़ुसा नीयर पानी।


भावार्थ- जब गंदे कीचड़ में रहने वाला गुड़ुसा (रेंवा) नामक कीड़ा कीचड़ से निकल कर दूर बोले तो वर्षा होने में देरी है। यदि वह कीड़ा कीचड़ के अंदर या ऊपर से बोले तो समझो वर्षा होने वाली है।

दिन में गरमी रात में ओस
Posted on 18 Mar, 2010 01:34 PM
दिन में गरमी रात में ओस
कहैं घाघ बरखा सौ कोस।


भावार्थ- यदि दिन में गर्मी और रात्रि में ओस गिरे तो समझना चाहिए कि वर्षा होने में समय लगेगा।

तपा जेठ में जो चुइ जाय
Posted on 18 Mar, 2010 01:04 PM
तपा जेठ में जो चुइ जाय,
सभी नखत हलके परि जायँ।


शब्दार्थ- चुइ-टपक जाय। हलके – मंद/धीमा।

भावार्थ- ज्येष्ठ की मृगशिरा के अंतिम दस दिनों को दसतपा कहते हैं। इस दसतपे में यदि वर्षा की एक भी बूँद गिर गई तो समझो कि वर्षा के सभी नक्षत्रों में पानी हलका बरसेगा।

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