Posted on 19 Mar, 2010 12:49 PM सिंह गरजै, हथिया लरजै।
शब्दार्थ- लरजै-काँपना।
भावार्थ- यदि सिंह राशि के सूर्य में (मघा नक्षत्र में) आकाश में बादल गरजें तो हस्त नक्षत्र में बरसने वाले बादलों को भी कँपकपी आती है, अर्थात् इस नक्षत्र में वर्षा कम होती है।
Posted on 19 Mar, 2010 11:13 AM रोहिनि बरसे मृग तपे, कुछ दिन आद्रा जाय। कहे घाघ सुनु घाघिनी, स्वान भात नहिं खाय।।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि हे घाघिन! यदि रोहिणी नक्षत्र में पानी बरसे और मृगशिरा तपे और आर्द्रा के भी कुछ दिन बीत जाने पर वर्षा हो तो पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाते-खाते ऊब जाएँगे और भात नहीं खाएंगे।
Posted on 19 Mar, 2010 11:00 AM रोहिनि जो बरसै नहीं, बरसै जेठ नित मूर। एक बूँद स्वाती पड़ै, लागै तीनों तूर।।
शब्दार्थ- तूर-अन्न। जेठ-ज्येष्ठा। मूर-मूल।
भावार्थ- यदि रोहिणी नक्षत्र में वर्षा न हो, पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र में पानी बरस जाय तथा यदि स्वाति नक्षत्र में एक बूँद भी पानी पड़ जाये तो तीनों फसलें अच्छी हो जाती हैं।