समुदाय सहभागिता आधारित जल स्रोतों का अध्ययन

जल स्रोतों के अध्ययन हेतु आवश्यकता इस बात की है, कि ग्राम स्तर पर जल स्रोत के प्रकार, उनकी उपलब्धता एवं गुणवत्ता के बारे में जानकारी इकट्ठी की जाए तथा उस आधार पर जल प्रबन्धन व्यवस्था तैयार की जाए। जल संसाधनों के अध्ययन का सबसे अच्छा तरीका सहभागी ग्रामीण समीक्षा (पी.आर.ए.) विधि है, जिसके द्वारा ग्रामीण खुद अपने क्षेत्र विशेष की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, तथा उसके विश्लेषण के आधार पर भविष्य के लिए योजनाएं भी बना सकते हैं।

वैसे तो सहभागी ग्रामीण समीक्षा कई विधियाँ हैं, परन्तु जल स्रोतों एवं उनकी गुणवत्ता के अध्ययन हेतु मुख्यतः पाँच प्रकार की विधियाँ उपयोग में लाई जा सकती हैं।

क्र.

पी.आर.ए. की सुविधा

उद्देश्य/जानकारी

1.

अवस्था चित्रण

गांव के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध संसाधनों की स्थिति

2.

संसाधन मानचित्रण

गाँव में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों (जल, जमीन एवं उनकी गुणवत्ता) की वर्तमान स्थिति

3.

मौसमी चित्रण (माहवार)

जल की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के संदर्भ में संकटकालीन समय/ माह की पहचान जिसके दौरान मानवीय हस्तक्षेप की अत्यन्त जरुरत हो

4.

टाइम-ट्रेन्ड (समय अनुसार चित्रण)

सामुदायिक संसाधनों की स्थिति एवं प्रबन्धन व्यवस्थाओं में एक निश्चित समयाविधि में परिवर्तन

5.

चपाती चित्रण

ग्रामीणों के लिए विभिन्न जल स्रोतों का महत्व एवं उन तक पहुँच



अवस्था चित्रण



अवस्था चित्रण हेतु ग्रमीणों के साथ गाँव का भ्रमण किया जाता है, जिसके दौरान गाँव के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित जल स्रोतों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। अवस्था चित्रण का एक उदाहरण चित्र 1 में दिया जाता है।

अवस्था चित्रण के दौरान जल स्रोतों के प्रकार, संख्या, आवास से दूरी, जल की मात्रा एवं गुणवत्ता तथा ग्रामीणों के मध्य जल उपयोग एवं आवंटन प्रणाली के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जाती है। इन सब जानकारी के आधार पर उपचार कार्य भी तय किये जा सकते हैं।

संसाधन मानचित्र



मानचित्र की सहायता से किसी भी स्थान विशेष की विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। किसी स्थान विशेष के संसाधनों का शब्दों में वर्णन करना कठिन होता है, परन्तु मानचित्र की सहायता से इसे बड़ी आसानी से समझाया जा सकता है। अतः मानचित्र का हमारे व्यवहारिक जीवन में बहुत बड़ा योगदान है। किसी भी गाँव की सीमा कहाँ तक है, इस बात की जानकारी भी हमें मानचित्र से ही मिलती है।

गाँव का संसाधन मानचित्रण ग्रामीणों द्वारा ही बनाया जाना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम अभी ग्रामवासी मिलकर जमीन या कागज पर गाँव का सीमांकन करते है। पहाड़ी क्षेत्रों में गाँव की सीमांकन करना बहुत आसान है। इस क्षेत्र में प्रत्येक गाँव की सीमा प्रायः नदी, नाले, पहाड़ी, जंगल आदि ही बनाते हैं। गाँव का मानचित्रण बनाते समय दिशाओं का ध्यान रखना भी अति आवश्यक है। सूर्य किस ओर से उदय होता है, उसके अनुसार दिशा निर्धारित की जा सकती है। तदपश्चात् ग्रामीणों द्वारा सीमा के अन्तर्गत आने वाली उपलब्ध जल स्रोत जिसमें मुख्यतः नदी, नाले, कुँआ, बावड़ी, नौला, खात्री, नल, हैण्ड पम्प इत्यादि को मानचित्र पर चिन्हित करना चाहिए। साथ ही प्रत्येक स्रोत का जल ग्रहण क्षेत्र निर्धारण पर चिन्हित किया जाना चाहिए। इसी प्रकार वर्तमान भूमि उपयोग (वन, कृषि भूमि, परती भूमि आदि) का इस मानचित्र में प्रदर्शित करना चाहिए। संसाधन मानचित्र के उदाहरण को चित्र 2 (क) एवं (ख) में दिखाया गया है।

संसाधन मानचित्र के आधार पर गाँव की वर्तमान स्थिति और कमियों का विश्लेषण किया जा सकता है। गाँव में उपलब्ध जल स्रोतों के स्थान के स्थान व प्रकृति के बारे में भी जानकारी मिलती है। ग्रामवासी मानचित्र के आधार पर विभिन्न स्रोतों के उपयोग के बारे में जानकारी देते हैं।

मौसमी चित्रण



इस विधि के के द्वारा वर्ष भर के विभिन्न मौसम परिवर्तन की वजह से वर्षा जल की उपलब्धता, जल स्रोतों से जल की मात्रा एवं गुणवत्ता पर प्रभाव, जल स्रोतों पर निर्भरता, तथा जल जनित बिमारियाँ जैसे विषयों पर जानकारी प्राप्त की जाती है तथा उन पर चर्चा भी होती है। मौसमी चित्रण का एक उदाहरण चित्र 3 में दिया गया है।

उपरोक्त जानकारी के आधार पर विभिन्न मौसम मे समस्याओं को पहचान कर प्रायोजन अनुसार कदम लिए जा सकते हैं।

टाइम-ट्रेंड (समय अनुसार मौसमी)



टाइम-ट्रैन्ड में पिछले 40-50 में जल स्रोत सम्बन्धित हुए बदलाव (प्रकार, उपलब्धता, गुणवत्ता, प्रबन्धन व्यवस्था इत्यादि) के बारे में विस्तृत चर्चा की जाती है। विशेषकर, बदलाव के कारण एवं उसके प्रभाव पर ग्रामीणों के साथ गहन चर्चा होनी चाहिए। इस विधि के दौरान गाँव के बुजुर्ग लोगों की उपस्थिति अनिवार्य है। टाइम-ट्रेन्ड का एक उदाहण चित्र 4 में दिखाया गया है।

टाइम-ट्रेन्ड विधि से ग्रामीणों के बीच जल स्रोत सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं (वनस्पतिक आवरण, मिट्टी कटाव, कृषि पद्धति पर्यावरण स्वच्छता, इत्यादि) के बारे में समझ बनती है।

चपाती चित्रण


पर्वतीय क्षेत्र में ग्रामवासी विभिन्न आवासीय क्षेत्र में बसते हैं। प्रत्येक आवासीय क्षेत्र हेतु अलग-अलग जल स्रोत निर्धारित होते हैं। चपाती चित्रण प्रत्येक आवासीय क्षेत्र के लिए अलग-अलग बनाना चाहिए।

इस विधि में एक आवासीय क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा सर्वप्रथम अपने आवासीय क्षेत्र को जमीन या कागज में दर्शाया जाता है। इसके बाद उनके द्वारा जल स्रोतों की सूची बनायी जाती है। तत्पश्चात् ग्रामीण आपस में चर्चा करके इन जल स्रोतों को अपने महत्व के अनुसार विभिन्न आकार के चपाती समान गोले द्वारा प्रदर्शित करते हैं इसके बाद जल स्रोतों पर उनकी पहुँच के अनुसार इन चपानियों को जमीन/कागज पर आवासीय क्षेत्र से दूर या पास रखा जाता है।

जल स्रोतों (चपातियों) के आकार का बड़ा या छोटा होना तथा आवासीय क्षेत्र से पास या दूर होने के कारणों पर ग्रामीणों द्वारा विश्लेषण किया जाना चाहिए। विश्लेषण के आधार पर ग्रामीण जल प्रबन्धन व्यवस्था हेतु उचित कार्यवाही भी तय कर सकते हैं।

उपरोक्त विधियों का प्रयोग के दौरान निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता हैः

• कमजोर वर्ग के अनदेखा न करें

• सभी की बात सुनने एवं समझने की कोशिश करें

• व्यक्तिगत मान्यताओं को न थोपें

• जो अप्रत्यक्ष है उसे ध्यान दें

• सभी को भाग लेने को प्रोत्साहित करें

• सही व्यवहार करें

• जल्दबाजी न करें, चर्चा को प्रेरित करें

• उचित समय व उचित स्थान का चुनाव करें

• बुजुर्गों की मदद अवश्य करें

• लोगों को आपस में चर्चा करने दे और किसी निष्कर्ष पर पहुँचने दें

• हर पी.आर.ए. के अंत में समीक्षा करें तथा प्राप्त जानकारी को वापस सभी गाँववालों के बीच रखें

सहभागी ग्रामीण समीक्षा की विभिन्न विधियों द्वारा ग्रामीणों को अपने जल स्रोत सम्बन्धित ज्ञान को बाँटने, समझने एवं बढ़ाने में मदद मिलती है। इसके अनुसार वे अपनी जल प्रबन्धन व्यवस्था बनाकर उस पर अमल भी कर सकते हैं एवं उसकी समीक्षा करने में भी सुविधा होती है।

पी.आर.ए. करते समय सावधानियाँ



• कमजोर वर्ग को अनदेखा न करें

• सभी की बात सुनने एवं समझने की कोशिश करें

• अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं को न थोपें

• जो अप्रत्यक्ष है उसे ध्यान दें

• सभी को भाग लेने को प्रोत्साहित करें

• जल्दबाजी न करें

• उचित समय व उचित स्थान का चुनाव करें

• बुजुर्गों की मदद अवश्य करें

• लोगों को आपस मे चर्चा करने दें और किसी नतीजे पर पहुँचने दे। चर्चा को प्रेरित करें

• हर विधि के अन्तिम रूप की समीक्षा करें तथा अंत में जो जानकारी मिलती है उसे वापस सभी गाँव वालों के बीच रखें

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Post By: tridmin
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