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परम ऊर्जाः चरम विनाश
Posted on 21 Aug, 2010 09:03 AM परमाणु आयोग की योजना इस अत्यंत जहरीले कचरे को कांच में बदल कर एक ह
सोलर सूनामी का पहला ज्वार
Posted on 19 Aug, 2010 08:21 AM एक और दो अगस्त को सूरज से उठकर सीधे अपनी तरफ बढ़े दो तूफानों का झटका धरती पिछले दो-तीन दिनों में झेल चुकी है। एक वैज्ञानिक के शब्दों में कहें तो इस वक्त भी यह उनके असर से झनझना रही है। सूरज की सतह पर होने वाले विस्फोटों से निकली सामग्री का सीधे धरती की तरफ आना एक विरल घटना है। लेकिन इस बार तो लगातार दो विस्फोटों से निकले आवेशित कण हजारों मील प्रति सेकंड की रफ्तार से इसी तरफ दौड़ पड़े थे। बताते हैं कि ऐसे एक भी विस्फोट से निकली ऊर्जा को अगर किसी तरह काबू में कर लिया जाए तो इससे धरती की सारी ऊर्जा जरूरतें दसियों लाख साल तक पूरी की जा सकती हैं। इतनी ज्यादा ऊर्जा अचानक अपने ग्रह की तरफ आ जाना कोई मामूली बात तो थी नहीं।

एक के पीछे एक चले आ रहे इन दोनों सौर तूफानों
ग्लोबल वॉर्मिंग की बंद गली, और एक रास्ता
Posted on 19 Aug, 2010 08:09 AM ग्लोबल वॉर्मिंग के बारे में आम लोगों का रवैया संशयवादी हो सकता है लेकिन साइंटिस्टों में इस समस्या को लेकर कोई दुविधा नहीं है। वे हमेशा मानते रहे हैं कि इंसान की पैदा की हुई यह समस्या वास्तविक है और अगर इसकी अनदेखी की गई तो इससे इंसान के वजूद को ही खतरा हो सकता है।

लेकिन, यदि इस समस्या से निपटना है तो जरूरी सवाल यह है कि हम इस बारे में करें तो क्या करें। इस बारे में सबसे आम सुझाव यह है कि दुनिया को हर दिन वातावरण में झोंकी जाने वाली ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में भारी-भरकम कटौती करनी चाहिए। कहा जा रहा है कि इस सदी के मध्य तक कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के ग्लोबल इमिशन में 50 फीसदी की कमी लानी चाहिए। लेकिन, इस मत के समर्थक भी मानते हैं कि यह टारगेट हासिल कर पाना आसान नहीं है, और इस मामले में वे सही हैं। बल्कि असल में वे
मनरेगा के बाकी अर्थ
Posted on 18 Aug, 2010 08:48 AM
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) रोजगारपरक होने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और धरोहर सहेजने का प्रतीक भी बन सकती है। दुनिया की सबसे बड़ी सर्वसमावेशी विकास वाली इस महत्वाकांक्षी परियोजना को सहेजने और इसके विस्तार की जरूरत है, ताकि दूर-दराज के इलाकों का भी समग्र विकास किया जा सके। पर तसवीर तभी बदलेगी, जब केंद्र सरकार इसकी निगरानी के लिए मुकम्मल नीति बनाए। यह योजना ह
वार फॉर वाटर 31 राज्यों में शुरू होगा
Posted on 09 Aug, 2010 01:45 PM
नई दिल्ली, झांसी में कहीं कुल जनसंख्या के हिसाब से पानी कम है तो कानपुर के एक हिस्से में पानी को क्रोमियम दूषित कर रहा है। उन्नाव का एक इलाका फ्लोराइड के जहर से जूझ रहा है तो गाजियाबाद में पानी को कीटनाशक प्रदूषित कर रहे हैं।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र और जल
Posted on 31 Jul, 2010 10:47 AM कौटिल्य के अर्थशास्त्र में दर्ज सूचनाओं की पुष्टि शिलालेखों और पुरातात्विक अवशेषों से होती है। चाणक्य के नाम से विख्यात कौटिल्य भारत के प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य (321-297 ई.पू.) के मंत्री और गुरु थे। राजनीति और प्रशासन पर प्रामाणिक ग्रंथ माने गए अर्थशास्त्र की तुलना सदियों बाद के मेकियावली
ढलवां पहाड़ी या जमीन पर गिरने वाले पानी को दूर स्थित कुओं तक लाकर उनका संग्रह और उपयोग करना प्राचीन काल में जल-तकनीक संबंधी सबसे महत्त्वपूर्ण खोजों में एक था। इसकी शुरुआत ई.पू. 1000 के करीब आर्मेनिया में हुई, पर ई.पू. 300 तक यह विधि भारत में भी प्रयुक्त होने लगी थी।
दक्षिण भारतः शिलालेखों पर सबूत
Posted on 30 Jul, 2010 10:05 AM सरकारी प्रयासों से सिंचाई के लिए नहरों के अलावा कुएं और तालाब भी बनवाए जाते थे। महाभारत में युधिष्ठिर को शासन के सिद्धांतों के बारे में सलाह देते हुए नारद ने विशाल जलप्लावित झीलें खुदवाने पर जोर दिया है ताकि खेती के लिए वर्षा पर निर्भर न होना पड़े। प्राचीन भारतीय शासकों ने सार्वजनिक हित के लिए सिंचाई सुविधाओं के विकास जैसे जो कार्य किए उनके पुरालेखी प्रमाण हाथी गुंफा के शिलालेखों (ई.पू. दूसरी शताब्दी) से मिलते हैं। इनमें कहा गया है कि मगध में नंद वंश के संस्थापक प्रथम नंदराजा महापद्म (ई.पू. 343-321) के काल में राजधानी कलिंग के पास तोसली डिवीजन में एक नहर खोदी गई थी (पूर्व-मध्य भारत का वह क्षेत्र जिसमें अब का उड़ीसा, आंधप्रदेश का उत्तरी हिस्सा और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा जुड़ा था)। नहरों की खुदाई से सरकार पर उनके रखरखाव की जिम्मेदारी स्वाभाविक तौर पर आ गई। आर्य शासकों के काल में नदियों पर निगरानी, भूमि के नाप-जोख (मिस्र की तरह) और मुख्य नहर से फूटने वाली दूसरी नहरों के लिए पानी के बहाव को रोकने वाले कपाटों की निगरानी के लिए बाकायदा अधिकारी
सिंधु घाटीः पानी पर टिकी सभ्यता
Posted on 23 Jul, 2010 12:23 PM
अफगानिस्तान में काम करने वाले फ्रांसीसी पुरातत्वविदों ने रूसी सीमा से लगे बैक्ट्रिया प्रांत में हड़प्पा कालीन नगर के अवशेष पाए। ऐ-खानम क्षेत्र में उन्हें 25-30 किमी. लंबी और 30 मी चौड़ी नहरें मिलीं। इन नहरों का पता पहले नक्शे से लगाया गया और उनका काल निर्धारण पास के कांस्य युग के अवशेषों से किया गया। ये नहरें तीन सहस्त्राब्दी ई.पू.
काश, आज बाबा साहब होते
Posted on 19 Jul, 2010 07:15 PM
सदियां गुजर गईं, पर अपने देश में सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा आज भी चलती जा रही है। आजादी के 62 सालों के बाद भी यह मध्ययुगीन सामंती चलन हमारे कई छोटे-बड़े शहरों और कस्बों से पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। राजगढ़, भिंड, टीकमगढ़, उज्जैन, पन्ना, रीवा, मंदसौर, नीमच, रतलाम, महू, खंडवा, खरगौन, झाबुआ, छतरपुर, नौगांव, निवाड़ी, सिहोर, होशंगाबाद, हरदा, ग्वालियर, सागर, जबलपुर जैसे मध्य प्रदेश के अनेक शहरों
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