रविन्द्र गिन्नौरे

रविन्द्र गिन्नौरे
खतरे में पड़ी जैवविविधता
Posted on 17 Mar, 2018 06:27 PM

जैवविविधता की दृष्टि से भारत विश्व के समृद्धतम राष्ट्रों में प्रमुख है। भारत की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति होन

पेड़-पौधों को बिसराता समाज
Posted on 13 Jul, 2010 01:04 PM
शहरों में रोशनीयुक्त प्लास्टिक के बड़े-बड़े वृक्ष देखकर अजीब से मितलाहट होती है। अगर शहरी बाग-बगीचों में प्राकृतिक वृक्षों एवं पौधों के लिए ही स्थान नहीं है तो इनके होने का क्या फायदा? आवश्यकता इस बात की है कि शहरों को एक बार पुनः वृक्षों से आच्छादित करने के प्रयास पूरी ईमानदारी से प्रारंभ किए जाएं तभी हम जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को धीमा कर सकते हैं। अधिकांश शहरवासियों का अब पेड़ों से कोई वास्ता नहीं रह गया है। पेड़-पौधों से जुड़े धार्मिक, सांस्कृतिक, रीति-रिवाजों के लिए अब हमारे पास समय नहीं है। दादी मां के नुस्खों को शहरियों ने तिलांजलि दे दी है। पेड़-पौधे पर शहरी जीवन की निर्भरता नहीं रही। धीरे-धीरे यह लगने लगा है कि पेड़-पौधे बेकार हैं। दरअसल पेड़-पौधों की उपयोगिता भरे ज्ञान को हम भूल गए हैं। यही कारण है कि शहरी बंगलों में विदेशी फूलों के पौधे लगाए जाते हैं और सुंदर दिखने वाली पत्तियों को बड़े जतन से सहेजा जाता है।

पश्चिमी संस्कृति की चलती बयार से हमारा पेड़-पौधों से रिश्ता टूट सा गया। घर-आंगन में तुलसी चौरा की अनिवार्यता अब कहीं नहीं दिखती। पूजा-अर्चना के लिए फूल एवं फूलमाला की अब कोई जरुरत नहीं रही। जैसे-जैसे परिवार टूटते गए, वैसे-वैसे घर छोटा होता चला गया। पेड़- पौधों की महत्ता बताने वाले, धार्मिक, सांस्कृतिक पर्व को मनाने वाले दादा-दादी, नाना-नानी का परम्परागत ज्ञान बेकार हो चला।
भारतीय गायों के अस्तित्व का प्रश्न
Posted on 25 Dec, 2010 12:55 PM
अधिक दूध की मांग के आगे नतमस्तक होते हुए भारतीय पशु वैज्ञानिकों ने बजाए भारतीय गायों के संवर्धन के विदेशी गायों व नस्लों को आयात कर एक आसान रास्ता अपना लिया। परंतु इसके दीर्धकालिक प्रभाव बहुत ही हानिकारक हो सकते हैं। आज ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। क्या यह हमारे लिए शर्म का विषय नहीं है? का. सं.
जैव विविधता पर टूटता कहर
Posted on 25 Jun, 2010 02:55 PM
धरती में पाई जाने वाली ”जैव विविधता” अनमोल सम्पदा है। इस सम्पदा के बारे में अधिकांश लोग परिचित नहीं हैं। जैव विविधता में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य समाया हुआ है। वहीं जैव विविधता को संरक्षित कर हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाए हुए हैं। जैव विविधता का आर्थिक महत्व भी है, जो आज हो रहे जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक विकास के कारण खत्म हो रही है।

जैव विविधता वर्ष 2010


जैविक विविधता से आशय जगत में विविध प्रकार के लोगों के साथ, इस जीव परिमंडल में भी भौगोलिक रचना के अनुसार अलग-अलग नैसर्गिक भूरचना, वर्षा, तापमान एवं जलवायु के कारण जैव विविधता, वनस्पति एवं प्राणी सृष्टि में प्राप्य है। मानवता के लिए अनिवार्य वर्ष 2010 को दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण
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