भारत

Term Path Alias

/regions/india

दक्षिण भारतः शिलालेखों पर सबूत
Posted on 30 Jul, 2010 10:05 AM सरकारी प्रयासों से सिंचाई के लिए नहरों के अलावा कुएं और तालाब भी बनवाए जाते थे। महाभारत में युधिष्ठिर को शासन के सिद्धांतों के बारे में सलाह देते हुए नारद ने विशाल जलप्लावित झीलें खुदवाने पर जोर दिया है ताकि खेती के लिए वर्षा पर निर्भर न होना पड़े। प्राचीन भारतीय शासकों ने सार्वजनिक हित के लिए सिंचाई सुविधाओं के विकास जैसे जो कार्य किए उनके पुरालेखी प्रमाण हाथी गुंफा के शिलालेखों (ई.पू. दूसरी शताब्दी) से मिलते हैं। इनमें कहा गया है कि मगध में नंद वंश के संस्थापक प्रथम नंदराजा महापद्म (ई.पू. 343-321) के काल में राजधानी कलिंग के पास तोसली डिवीजन में एक नहर खोदी गई थी (पूर्व-मध्य भारत का वह क्षेत्र जिसमें अब का उड़ीसा, आंधप्रदेश का उत्तरी हिस्सा और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा जुड़ा था)। नहरों की खुदाई से सरकार पर उनके रखरखाव की जिम्मेदारी स्वाभाविक तौर पर आ गई। आर्य शासकों के काल में नदियों पर निगरानी, भूमि के नाप-जोख (मिस्र की तरह) और मुख्य नहर से फूटने वाली दूसरी नहरों के लिए पानी के बहाव को रोकने वाले कपाटों की निगरानी के लिए बाकायदा अधिकारी
सिंधु घाटीः पानी पर टिकी सभ्यता
Posted on 23 Jul, 2010 12:23 PM
अफगानिस्तान में काम करने वाले फ्रांसीसी पुरातत्वविदों ने रूसी सीमा से लगे बैक्ट्रिया प्रांत में हड़प्पा कालीन नगर के अवशेष पाए। ऐ-खानम क्षेत्र में उन्हें 25-30 किमी. लंबी और 30 मी चौड़ी नहरें मिलीं। इन नहरों का पता पहले नक्शे से लगाया गया और उनका काल निर्धारण पास के कांस्य युग के अवशेषों से किया गया। ये नहरें तीन सहस्त्राब्दी ई.पू.
काश, आज बाबा साहब होते
Posted on 19 Jul, 2010 07:15 PM
सदियां गुजर गईं, पर अपने देश में सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा आज भी चलती जा रही है। आजादी के 62 सालों के बाद भी यह मध्ययुगीन सामंती चलन हमारे कई छोटे-बड़े शहरों और कस्बों से पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। राजगढ़, भिंड, टीकमगढ़, उज्जैन, पन्ना, रीवा, मंदसौर, नीमच, रतलाम, महू, खंडवा, खरगौन, झाबुआ, छतरपुर, नौगांव, निवाड़ी, सिहोर, होशंगाबाद, हरदा, ग्वालियर, सागर, जबलपुर जैसे मध्य प्रदेश के अनेक शहरों
पानी की छोटी-छोटी कहानियां
Posted on 08 Jul, 2010 07:27 PM
यूं तो मौसम कई होते हैं। परंतु बच्चों से पूछा जाए कि सबसे अच्छा मौसम कौन सा है, तो अधिकांश का कहना होगा-रेनी सीजन, यानी बारिश। चलिए इस बार आपको बरसात से जुड़ी कुछ खास जानकारियां देते हैं।

 

 

वर्षा जल का संरक्षण


आम तौर पर लोग बरसाती पानी का महत्त्व नहीं समझते। इसीलिए भगवान की इस देन की सब उपेक्षा करते हैं और सारा पानी जमीन में या नदियों में चला जाता है। फिर नदियों का

प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा
Posted on 08 Jul, 2010 11:32 AM जब से कृष्ण कथा प्रचलित हुई या जब से सावन-भादों का मुहावरा बना, मौसम का चक्र ठीक वैसा नहीं था जैसा आज होता है। अगर प्रकृति अपने ही कारणों से मौसम के चक्र को बदलती रहती है तो चिंता किस बात की?कहा जाता है कि भारतीय कृषि मॉनसून पर दांव लगाने पर निर्भर है। लग गया तो बढ़िया बरसात होगी। पासा उल्टा पड़ा तो सूखा और अकाल। जमाने से हम इस जुए के नियम-कायदे सीखते रहे हैं। अब तक तो हमने सारे के सारे रट भी लिए हैं। अधिक से अधिक हम अड़तालिस घंटे पहले से भविष्यवाणी करने लगते हैं, लेकिन चौबिस घंटे से पहले की भविष्यवाणी बस उम्मीद पर आधारित होती है और अक्सर निराश ही कर देती है। अपनी सारी जानकारी और अपने सारे विज्ञान को इस जुए में झोंक देने के बावजूद प्रकृति हमसे बड़ी खिलाड़ी सिद्ध हो गई है। उसने इस मॉनसून के नियम-कायदे ही बदल दिए हैं।
घनन-घनन घिर-घिर आए बदरा
Posted on 05 Jul, 2010 04:28 PM

बादलों की पूरी सज-धज के साथ आखिर फिर आ गई बरसात। धरती ने धानी चुनर ओढ़ ली है तो मेघ-मल्हार और कजरी की उत्सवधर्मिता का भी यह आगाज है। उमड़ते-घुमड़ते, गरजते-बरसते बादल वन-उपवन, खेत-खलिहान, पर्वत-मैदान हर कहीं हरियाली की सौगात लेकर आते हैं, तो बाजवक्त डराते भी हैं। बारिश न हो तो जिंदगी न हो और बारिश ज्यादा हो जाए तो भी जिंदगी पर बन आए। इंद्रधनुषी मौसम के असल रंग कितने हैं, क्या समझ पाना इतना आसान है

कृष्ण जब जन्मे तब अंधेरी रात थी, लेकिन आकाश जलभरे बादलों से भरा हुआ था। काले-काले मेघों की पंचायत जुटी थी और काला अंधेरा उनसे मिलकर कृष्ण का सृजन कर रहा था। राधा उनकी वर्षा बनीं और कृष्ण बरस कर रिक्त हो गए। राधा भी बरस कर रिक्त हो गईं। काले मेंघों की उज्ज्वल वर्षा ने बरस-बरस कर पृथ्वी को उर्वर बनाकर रस से भर दिया। यही रस भारतीय साहित्य,
समुद्र किनारे शिक्षा
Posted on 30 Jun, 2010 01:18 PM अक्टूबर में चेन्नई समुद्रतट पर पहुंचे 24,300 टन वजनी सैलानी पोत से उतरे लोग दक्षिण भारत के सुंदर समुद्रतट को निरखने आए कैमरे लादे पर्यटक नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन के अनुभवों को पढ़ने आए 520 अमेरिकी छात्र और उनके अध्यापक थे। एक सेमेस्टर समुद्र पर पढ़ने वाले इन छात्रों को संसार को देखने की एक व्यापक दृष्टि के साथ ही शैक्षणिक क्रेडिट भी मिलेंगे। पोत पर और उससे परे लगने वाली इनकी कक्षाएं अपने आप में न
महासागरों पर मंडराता खतरा
Posted on 30 Jun, 2010 12:57 PM जलवायु में व्यापक बदलाव के खतरों से जूझने के साथ ही हमें हमारे महासागरों को भी प्रदूषण से बचाने की ज़रूरत है। अमेरिका के नेशनल ओसिएनिक एंड एटमस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रिेशन के विशेषज्ञ रिचर्ड फ़ीली और इंटरनेशनल मैरीन कंजर्वेशन ऑर्गेनाइज़ेशन ओसिएनिया के जेफ़ शॉर्ट ने अमेरिकी विदेश विभाग के अंतरराष्ट्रीय सूचना कार्यक्रम ब्यूरो द्वारा आयोजित एक वेबचैट में महासागरों के बढ़ते अम्लीयकरण के खतरों से आगाह कि
कचरा बीनने वालों के जीवन में उम्मीद
Posted on 29 Jun, 2010 01:25 PM
आपका कचरा, उसका कारोबार एक पर्यावरण कार्यकर्ता के प्रयासों से
×