संकट में खेती का मित्र मेढक


मेढ़क एक ऐसा जन्तु है जो प्रतिदिन अपने वजन के बराबर नुकसानदेह कीटों को खा जाता है। यह खेती और मनुष्य का बड़ा अच्छा मित्र है।

रासायनिक कीटनाशकों की वजह से बड़ी संख्या में मेढक मरे हैं। अमीर देशों के बड़े-बड़े होटलों में चटोरों की प्लेटें सजाने के लिए भारत और बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर मेढ़कों को पकड़ा जाता है और उनकी टांगों का निर्यात किया जाता है। आज से बीस साल पहले के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष दस करोड़ मेढ़कों को निर्यात के लिए मारा जाता था। पकड़ने से लेकर टांग कटाई वाली फैक्ट्री तक ले जाने के क्रम में अनगिनत मेढ़क मरते हैं जिनकी संख्या का कोई हिसाब नहीं है।

मेढ़कों की जो दो प्रजातियां प्रमुख रूप से पकड़ी जाती हैं वे हैं-राना टिग्रीना और केक्साडेक्टाइला। मनुष्य एवं पर्यावरण के मददगार मेढकों के विनाश से चिन्तित होकर इंडियन कौंसिल और एग्रीकल्चरल रिसर्च ने 'बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी' को तीन वर्षीय अध्ययन कार्य सौंपा था। अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकला कि व्यापारिक उद्देश्यों से मेढ़कों के पकड़ने पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए। मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में मेढ़कों के पकड़ने पर प्रतिबन्ध लगाने की बात चली थी। लेकिन 1983 में जब मामला इंडियन वाइल्ड लाइफ बोर्ड और पर्यावरण विभाग के पास आया तो उसने वाणिज्य मंत्रालय की इच्छा के अनुरूल हथियार डाल दिये और प्रतिबन्ध नहीं लग सका। राना टिग्रीना प्रजाति को वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा-4 में रखा गया जिसको पकड़ने के लिए लाइसेन्स की जरूरत होती है। परिणाम केवल इतना ही हुआ कि 15 अप्रैल से लेकर 15 अगस्त तक जब प्रजनन काल होता है उस समय के लिए पकड़ने पर कानूनी रोक लगी। लेकिन मेढ़कों का विनाश जारी है।

खेती को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़े कुछ दिनों के बाद प्रतिरोधी क्षमता भी विकसित कर लेते हैं और रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग के बावजूद नष्ट नहीं होते। इसके बजाय नीम की खल्ली, नीम का तेल और नीम की पत्ती ऐसे प्राकृतिक कीटनाशक हैं जो मनुष्य तथा खेती को नुकसान पहुंचाने वाले 128 प्रकार के कीटों को नष्ट करते हैं, उनकी वृद्धि और प्रजनन को बाधित करते हैं लेकिन खेती तथा मनुष्य की मदद करने वाले कीड़े-मकोड़ों तथा जीव-जन्तुओं को नुकसान नहीं पहुंचाते। इसके अलावा तम्बाकू भी एक प्राकृतिक कीटनाशक है।

दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के बायोसाइंस विभाग के शोधकर्ताओं ने हानिकारिक कीटों के नियंत्रण की अनूठी विधियां निकाली हैं। इन शोधकर्ताओं के मार्गदर्शक प्रो. हीराधर कहते हैं कि कीटों एवं पादपों के बीच करोड़ों वर्षो का अन्तर्संम्बन्ध रहा है। पादपों ने अपने अन्दर सुरक्षात्मक रसायनों को कीटों से अपनी रक्षा के लिए विकसित किया है। उनके अनुसार इस प्रकार के पौधों और वनस्पतियों की सूची बनानी चाहिए, जो कीट नियंत्रण की क्षमता रखते हैं। इन पौधों में नीम का स्थान सर्वोच्च है। उसके अन्दर पर्याप्त मात्रा में 'टेट्राटपेंन्वायड्स' नामक रसायन रहता है जो नुकसानदेह कीटों के अस्तित्व और विकास के लिए बाधक होता है।

दूसरा पौधा लेमन ग्रास है। इसकी जांच से भी पता चला है कि जहां इसे सुखाकर इसके पाउडर को छिड़का जाता है वहां हानिकारक कीट नहीं पहुंचते। यह हानिकारक कीटों की प्रजनन-प्रक्रिया को भी बाधित करता है। कई प्रकार की वनस्पतियां मच्छरों के लार्वा को नष्ट करने में उपयोगी साबित हुई हैं। इनका अगर व्यापक तौर पर उपयोग किया जाए तो ये नुकसानदेह रासायनिक कीटनाशकों के सुरक्षित और सस्ते विकल्प बन जाएंगे।

(लेख के संपादित अंश 'युवा संवाद' से साभार)
 
Path Alias

/articles/sankata-maen-khaetai-kaa-maitara-maedhaka

Post By: admin
×