एन. रघुरामन

एन. रघुरामन
सकारात्मक सोचना शुरू करें और देखें कि सबकुछ कैसे ठीक होता है
Posted on 06 Dec, 2015 01:55 PM

अगले दिन यह जानकर कि वे आखिर वर्षा वन खरीद सकते हैं, बच्चे दौड़ते हुए कक्षा में आए। 10 हेक

stupidsid.com : छात्रों की मदद को वेबसाइट
Posted on 30 Jul, 2014 10:35 AM
'स्टूपिडसिड डॉट कॉम' छात्रों के बीच खूब चर्चित वेबसाइट है। कभी-कभी तो एक दिन में 50 हजार से भी ज्यादा लोग इस वेबसाइट पर आते हैं। इंजीनियरिंग व यूनिवर्सिटियों में एडमिशन की इच्छा रखने वाले छात्रों के बीच यह वेबसाइट एक गाइड के तौर पर प्रतिष्ठित हो गई है। इंजीनियरिंग कॉलेजों के बारे में इस बेवसाइट पर भरपूर सामग्री है। विज्ञापन आय से ही लगभग 65 लाख रुपए की आय हो जाती है। छात्रों की मदद करके सफल होन
उद्यमी में यह दृष्टि होनी चाहिए कि उसका आइडिया कैसा आकार लेगा
Posted on 12 Jun, 2014 11:14 AM
लोधी गार्डनदिल्ली में एक जगह है लोधी गार्डन। इसे आप एक बड़ा ऑक्सीजन टैंक कह सकते हैं। क्योंकि यहां हर तरह के पेड़ हैं। प्राकृतिक खूबसूरती कोने-कोने में बिखरी है। ढेरों लोग यहां
आज का डाक्यूमेंटेशन कल आपको ख्याति दिला सकता है
Posted on 09 May, 2014 02:45 PM
ट्री इंडिया की टीम के मुताबिक, अभियान से जो ऑब्जर्वेशन सामने आ रहा
चुनौती को हमेशा अवसर में बदला जा सकता है
Posted on 27 Sep, 2013 12:35 PM
विभाग ने इस प्रोजेक्ट के तहत फिरोजपुर के सुधियां और चुरियां गाँवों में स्वयंसहायता समूह बनाए। इन्हें प्रशिक्षण दिया। दुनिया के ज्यादातर जलस्रोत जलकुंभी की समस्या से ग्रस्त हैं। यह बेहद आम समस्या है। लेकिन केरल राज्य ने न सिर्फ इस समस्या पर नियंत्रण का तरीका खोज लिया बल्कि उससे पैसे कमाने का रास्ता भी निकाल लिया है। कैसे? इसका जवाब है कि जलकुंभी को पानी से निकाल कर दो सप्ताह तक सुखाया जाता है। फिर सूखी जलकुंभी के बंडल बनाकर उन्हें उन महिलाओं को दिया जाता है जिन्होंने इस प्रोजेक्ट के तहत प्रशिक्षण हासिल किया है। शरणजीत कौर, राजवंत कौर, गुरमीत कौर। ये सभी पंजाब के चुरियां गांव की रहने वाली हैं। ब्यास और सतलज नदी के संगम पर यह गांव स्थित है। ये तीनों उन 100 महिलाओं में शामिल हैं जो बिना निवेश किए ही उज्जवल भविष्य की तरफ बढ़ रही हैं। इन्होंने अब तक सिर्फ अपने समय का ही निवेश किया है। कुछ महीने घर से दूर रहकर ट्रेनिंग हासिल करने में। कुछ महीने परियोजना को सफल बनाने में। हालांकि इस काम से पैसे अभी नहीं आ रहे हैं लेकिन वे जानती हैं अगले कुछ महीने में काफी आमदनी होने वाली है। यही नहीं वे इसे लेकर भी खुश हैं कि उन्होंने सदियों पुरानी समस्या का हल खोज लिया है। चुरियां गांव के गुरुद्वारे में अक्सर काम करने वालों का समूह इस नई परियोजना और उसके परिणामों पर चर्चा करता दिख जाता है। साथ ही यह भी कि और किस तरह एक-दूसरे की मदद की जा सकती है।
Beas river
कचरे की समस्या बिज़नेस का अवसर भी हो सकती है
Posted on 23 Sep, 2013 03:33 PM

कचरे को इकट्ठा करना और उसे निपटाना सिर्फ प्रशासन की समस्या और उन्हीं की चिंता का विषय नहीं है। यह हमारे लिए बिजने

पूरी दुनिया आपकी क्लाइंट हो सकती है
Posted on 22 Jul, 2013 11:37 AM
फंडा यह है कि... अगर आप कुछ नया कर रहे हैं तो दुनिया आपकी तरफ उम्मीद से देखने लगती है। वह आपसे मदद हासिल करने के लिए तैयार रहती है। जरूरत बस एक मुहिम और उसके प्रति समर्पण की ही होती है।
इक्कीसवीं सदी में जल की बढ़ती महत्ता
Posted on 04 Nov, 2011 10:11 AM

हमारे ग्रह पर मौजूद ज्यादातर शुद्ध जल ध्रुवीय हिम प्रदेशों में जमी हुई अवस्था में है या फिर जमीन की अथाह गहराई मे मौजूद भूमिगत झीलों में जमा है, जहां तक पहुंचना संभव नहीं है। मात्र एक फीसदी शुद्ध जल लोगों को पीने व इस्तेमाल करने के लिए उपलब्ध है। पृथ्वी के ज्यादातर हिस्सों में लोग शुद्ध जल के लिए झीलों, नदियों, जलाशयों और भूमिगत जल स्रोतों पर निर्भर रहते हैं, जिनमें बारिश या हिमपात के जरिए पानी पहुंचता रहता है।

जैसा बीसवीं सदी में तेल को लेकर रहा, उसी तरह अब जल भी ऐसी अनिवार्य सामग्री हो सकती है, जिसके आधार पर इक्कीसवीं सदी करवट लेगी। हालांकि मैं कोई भविष्य वक्ता नहीं हूं जो यह बता सके कि अगली जंग पानी को लेकर होगी या नहीं, लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि जो लोग किसी भी रूप में जल के कारोबार से जुड़ते हैं, उनकी अगले दस साल में चांदी हो सकती है। धरती पर लोगों की आबादी सात अरब तक पहुंचने, लगातार होते शहरीकरण व तीव्र विकास के साथ पानी की मांग में बेतहाशा बढ़ोतरी होने वाली है। वॉशिंगटन स्थित एक पर्यावरण थिंक टैंक निकाय वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट से जुड़ी क्रिस्टी जेनकिंसन कहती हैं कि पिछली सदी में जल का इस्तेमाल जनसंख्या वृद्धि की तुलना में दोगुनी दर से बढ़ा है।

आइडिया वही सफल, जो आदत बन जाए
Posted on 03 Oct, 2014 12:50 PM
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, धरती पर रोज एक व्यक्ति करीब 1.5 किलोग्राम
कन्सट्रक्शन बिजनेस की स्थायी लागत ही उसका भविष्य तय करेगी
Posted on 19 Jun, 2014 03:06 PM
हम सब अपने आसपास लगातार कुछ न कुछ निर्माण होते देखते रहते हैं। इसके बावजूद 2030 तक भारत को जितने इमारतों की जरूरत होगी उनमें 70 फीसदी का निर्माण अभी बाकी ही है। यहां तक कि उनकी अब तक योजना ही नहीं बनी है। दूसरी तरफ विकसित देश हैं। वहां 2050 तक जितनी इमारतें चाहिए उनमें से 80 फीसदी बनकर तैयार हो चुकी हैं। यानी भारत इस मामले में बहुत पीछे है। यहां भविष्य की जरूरतों के हिसाब से घर, ऑफिस व व्यावसायिक
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