पांच कारक दूर होने से यमुना हो जाएगी जीवनदायिनी

नदी के बढ़ते प्रदूषण के लिए दिल्ली, हरियाणा, यूपी हैं जिम्मेदार
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने हरियाणा को लिखा पत्र


जीवनदायिनी यमुना की वर्तमान हालत के लिए दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तीनों राज्य जिम्मेवार हैं। यमुना के किनारे स्थित इन राज्यों के शहरों की औद्योगिक इकाइयों का कचरा लगातार यमुना में गिर रहा है। यमुना में गिर रहे औद्योगिक इकाइयों के कचरे को लेकर सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने भी चिंता जाहिर की है। दैनिक भास्कर द्वारा यमुना के प्रदूषण को लेकर जुटाई गई जानकारियों में पांच महत्वपूर्ण कारण सामने आए हैं। इन वजहों को दूर कर दिया जाए तो यमुना प्रदूषणमुक्त हो जाएगी।

1. दिल्ली का डोमेस्टिक कचरा


दिल्ली की लगभग 1535 अनधिकृत कॉलोनियों ने निकलने वाला सीवेज कचरा बगैर शोधित किये सीधे यमुना में डाला जा रहा है, जिसके जरिए दिल्ली में यमुना का पानी बिल्कुल काला हो गया है। इसके अलावा कुछ औद्योगिक इकाइयों का वेस्ट कचरा भी नदी में डाला जा रहा है। खास बात यह है कि दिल्ली जल बोर्ड दिल्ली में लगभग 830 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रतिदिन) पानी की आपूर्ति का दावा करता है, लेकिन इसके विपरीत महज 330 एमजीडी गंदा पानी ही शोधित कर पाता है। शेष पानी बगैर शोधन के ही नदी में डाल दिया जाता है।

2. फरीदाबाद का दूषित जल


यहां पर लगभग 16 हजार रजिस्टर्ड औद्योगिक इकाइयां और इससे ज्यादा बगैर पंजीकृत औद्योगिक इकाइयां संचालित हो रही हैं। यहां पर लगाए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पूरी तरह से कारगर नहीं है। यहां पर बड़े पैमाने में डाई यूनिटें और केमिकल फैक्ट्रियां हैं। औद्योगिक इकाइयों का वेस्ट कचरा बड़े पैमाने पर नदी में डाला जा रहा है।

3. पानीपत-सोनीपत का कचरा


इनदोनों शहरों में स्थित औद्योगिक इकाइयों से उत्पन्न होने वाले कचरे का काफी हिस्सा बगैर शोधित किए नदी में डाला जा रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वर्ष 2013 में किए गए सर्वे में भी यह जानकारी उजागर हुई है। पानीपत और सोनीपत में काफी संख्या में बड़ी औद्योगिक इकाइयां स्थित हैं।

4. यूपी से गिरने वाला गंदा पानी


यमुना किनारे स्थित उत्तर प्रदेश के शहरों का कचरा काफी हिस्सा बगैर शोधित हुए नदी में डाला जा रहा है। यमुना जीये अभियान के संयोजक मनोज मिश्रा के मुताबिक सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा इत्यादि शहरों का गंदा पानी नदी में डाला जा रहा है। सहारनपुर मेरठ में स्थित शुगर मील के अलावा अन्य औद्योगिक इकाइयों का कचरा नदी में समाहित हो रहा है। इन शहरों का अधिकांश कचरा हिंडन नदी में डाला जा रहा है, जो कि ग्रेटर नोएडा के पास यमुना में मिल जाती है।

5. पानी का बहाव


पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि नदी में पानी का बहाव हो तो नदी का प्रदूषण काफी हद तक दूर हो सकता है। लेकिन यमुना में पानी का बड़े पैमाने पर अकाल है। बरसात के दिनों में नदी में बाढ़ की स्थिति हो जाती है, लेकिन बरसात खत्म होते ही नदी सूख जाती है। अमूमन नदी की यह स्थिति दिल्ली से 230 किलोमीटर ऊपर हथनीकुंड बैराज के पास से शुरू हो जाती है। बैराज के पास नदी का काफी हिस्सा पानी सिंचाई के लिए पड़ोसी राज्यों में चला जाता है।

सीपीसीबी चेयरमैन ने जताई नाराजगी


दैनिकभास्कर द्वारा यमुना के प्रदूषण को लेकर सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से सूचना के अधिकार के तहत मांगे गए जवाब में जानकारी मिली है कि नदी के प्रदूषण को लेकर सीपीसीबी के चेयरमैन सुशील कुमार ने हरियाणा के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर चिंता जताई है। बोर्ड के मुताबिक वर्ष 2013 में पानीपत और सोनीपत में स्थित सीवेज ट्रिटमेंट प्लांट और कॉमन एफ्ल्यूएंट ट्रिटमेंट प्लांट आवश्यकता के अनुरूप काम नहीं कर रहे हैं। इन शहरों से निकलने वाले औद्योगिक और डॉमेस्टिक कचरे को शोधित करने के लिए उच्चकोटि के प्लांट स्थापित किया जाए।

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