धरती-आकाश दोनों नाराज

ऐसा लग रहा है कि धरती और आकाश के बीच एक-दूसरे से ज्यादा बरबादी कर डालने की होड़ चल रही हो। गोया कुदरत ने नेपाल और भारत पर कुछ ज्यादा ही निर्ममता दिखाने का निश्चय कर लिया हो। कई इलाकों में हुआ वज्रपात दर्जनों लोगों के सिर पर मौत बनकर टूट पड़ा। शायद इंसान को चीटियों की भाँति मसलकर प्रकृति यह भलीभाँति समझा देना चाहती है कि उस पर अंकुश डालने की हैसियत का मुगालता आदमी कतई न पाले...धरती से मिले जख्म अभी हरे ही हैं और उन्हें सूखने की मोहलत भी नहीं मिली कि मंगलवार की सुबह इस बार आकाश ने आँधी-तूफान और वज्रपात की शक्ल में मौत बरसा दिया। ऐसा लग रहा है कि धरती और आकाश के बीच एक -दूसरे से ज्यादा बरबादी कर डालने की होड़ चल रही हो। गोया कुदरत ने नेपाल और भारत पर कुछ ज्यादा ही निर्ममता दिखाने का निश्चय कर लिया हो।

असलियत तो यह है कि नेपाल और भारत में आए भूकम्प के जख्म की गहराई का अभी तक ठीक से थाह ही नहीं लग पाया है। दिन बीतने के साथ-साथ मरने वालों की तादाद में लगातार इजाफा होता जा रहा है। सुरक्षा दस्ते और राहत कर्मी अब तक सैकड़ों गाँवों तक नहीं पहुँच पाए हैं। सम्भव है कि जैसे-जैसे लोगों की पहुँच दूर-दराज के दुर्गम गाँवों तक होगी, मरने वालों और पीड़ितों का आँकड़ा लगातार बढ़ता जाएगा। यह ऐसा दौर है कि बौखलाई प्रकृति के भयावह रूप ने पूरी इंसानियत को अन्दर तक डरा दिया है।

कुछ दिन पहले बेमौसम बरसात और ओला वृष्टि ने देश भर के किसानों की खेती बरबाद कर दी तो पड़ोसी देश में आए भूकम्प ने नेपाल समेत यूपी और बिहार में मौत की चादर बिछा दी। लाखों आशियाने जमींदोज हो गए। बरबादी का मंजर हर तरफ पसरा हुआ है और लोग भूकम्प की दशहत से बाहर भी नहीं निकल पाए हैं कि आसमान ने मौत बरसानी शुरू कर दी। मंगलवार की सुबह कई इलाकों में हुआ वज्रपात दर्जनों लोगों के सिर पर मौत बनकर टूट पड़ा।

शायद इंसान को चीटियों की भाँति मसलकर प्रकृति यह भलीभाँति समझा देना चाहती है कि उस पर अंकुश डालने की हैसियत का मुगालता आदमी कतई न पाले। बेहतर यही है कि कुदरत के साथ आदमी दोस्ती करके रहने की आदत डाले। जिस तरह आदमी प्रकृति के वास्तविक स्वरूप को बिगाड़ने का खिलवाड़ कर रहा है और प्राकृतिक सम्पदा के बेलगाम दोहन से उजाड़ पैदा कर रहा है, उसका दुष्परिणाम भी अन्तत: उसको ही भोगना पड़ेगा।

पहाड़ों के सीने को चाक करती बारूदी सुरंगों से विस्फोट, खनन करती बड़ी-बड़ी मशीनें, लगातार जंगलों की कटाई आदि के रूप में आखिर कब तक लोभी इंसान की इस निर्ममता को कुदरत बर्दाश्त करेगी। खुद के लाभ के लिए प्रकृति का दोहन, नदियों के स्वरूप से खिलवाड़, अपने स्वार्थ के लिए कंक्रीट के जंगल बनाते लोगों पर प्रकृति कब तक रहम बरसाएगी।

दरअसल, यह केलव प्राकृतिक आपदा मानकर बैठ जाने का समय नहीं है। भविष्य में इससे भी ज्यादा भयावह स्थितियों का सामना न करना पड़े, इसके लिए अभी से तैयार हो जाने की जरूरत है। प्रकृति के ऐसे प्रलयंकर रूप को देखने और झेलने के बाद भी अगर हम नहीं चेतेंगे तो फिर हम बच भी नहीं पाएँगे।

आसमान से जमीन पर उतरी मौत ने उत्तर प्रदेश को काफी नुकसान पहुँचाया है। दर्जनों लोग असमय मौत के शिकार हो गए। कामना कीजिए कि प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाना अब तो बन्द करे और हम भी अब तक की गलतियों से सबक लेकर यह संकल्प लें कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ बन्द करेंगे।

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