शुकदेव प्रसाद
शुकदेव प्रसाद
भारतीय वाङ्मय में प्रकृति संरक्षण की आवश्यकता
Posted on 15 Mar, 2016 01:47 PM‘‘गंगा हमारे लिये मात्र नदी नहीं है, अपितु भारतीय संस्कृति की संवाहिनी भी है। गंगा अन्तःसलिला है, उसका वास हमारे हृदय में है। वह पुण्यतोया है, अतः पाप हारिणी भी। ऐसा शास्त्रोक्त मत है। पर आज मूल्य विहीन जीवनशैली में इतना अभूतपूर्व परिवर्तन हो गया है कि राजा भगीरथ के पुरखों का कलुष धोने वाली, मुक्तिदायिनी गंगा शहरों का मल और फैक्टरियों की गन्दगी ढोते-ढोते स्वयं इस कदर दूषित हो गई है कि आज
कमाल की चीज है भारी पानी
Posted on 11 Jan, 2016 01:56 PMबात सुनने में अटपटी लगती है न? पानी तो पानी, भारी और हल्का पानी कैसा? पर बात सच है। पानी कई तरह का होता है।
आसन्न वैश्विक जल संकट
Posted on 24 Dec, 2015 12:01 PMविश्व जल दशक: 2005-2015
संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2005 से 2015 तक की अवधि को ‘अन्तरराष्ट्रीय जल दशक’ घोषित किया है और अपने ‘सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों’ में सम्मिलित करते हुए स्वच्छ पेयजल और बुनियादी साफ-सफाई प्राप्त करने के अधिकार को ‘मानवाधिकार’ की मान्यता प्रदान की है। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत आलेख में विश्वव्यापी जल संकट की विशद विवेचना की गई है।’