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हर दिन हो पर्यावरण दिवस
Posted on 12 Sep, 2011 01:23 PM

सभी देशों की परिस्थिति एक जैसी नही होने के कारण पर्यावरण अपने अस्तित्व को दिन प्रतिदिन खोता जा

बांधों पर तोहमत
Posted on 12 Sep, 2011 12:09 PM

बांध जितने पुराने होते हैं, मीथेन की मात्रा उतनी ही ज्यादा होती जाती है। आंकड़े तो यह भी कह रहे

मैंग्रोव वनों से रुकेंगी सूनामी लहरें
Posted on 10 Sep, 2011 04:22 PM

जापान में सूनामी के बाद पैदा हुए फुकुशिमा संकट ने दुनिया भर में जहां परमाणु संयंत्रों के सुरक्षा इंतजामों पर बहस खड़ी की है, वहीं ऐसे हादसों के खिलाफ प्राकृतिक उपायों को मजबूत करने की मांग भी उठने लगी है। अब यह साफ तौर पर नजर आने लगा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग, पर्यावरण के असंतुलन और जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी हो रही है और ये आपदाएं अब पहले की तुलना में ज्यादा विनाशकारी साब

प्रकृति के रक्षक मैंग्रोव वन
ताकि प्यासे न रह जाएं भारत के शहर
Posted on 10 Sep, 2011 03:37 PM

धरती पर पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन यही वह चीज है, जिसके बारे में हम सबसे कम चिंता करते हैं। ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन होल, कॉर्बन डाइऑक्साइड और घटती हुई हरियाली जैसे विषयों ने पानी को नेपथ्य में धकेल दिया है लेकिन दूसरी तरफ पानी के संकट ने खतरे की घंटी भी बजानी शुरू कर दी है। जैसे-जैसे पृथ्वी पर लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घटती ज

पानी का बढ़ता संकट
खाने की प्लेट में ई-कोलाई बेक्टीरिया
Posted on 10 Sep, 2011 02:58 PM

बेहतर सेहत के लिए भोजन की थाली में सलाद, हरी सब्ज़ियाँ और फलों का होना जरूरी है पर अब यह थाली भी हर तरह से सुरक्षित नहीं रही। पिछले दिनों दुनिया के 16 देशों के लगभग 3100 लोगों को इसी वजह से बीमार होना पड़ा, उनमें से 31 लोगों की मौत भी हो गई। इसके लिए जिम्मेदार था ई-कोलाई नाम का एक खतरनाक बेक्टीरिया, जिसकी भूमिका यहां किसी जासूसी कहानी के खलनायक की तरह रही। कच्ची सब्जियां, जो ई-कोलाई (ईस्चेरिचिय

ई-कोलाई बैक्टीरिया से बढ़ता खतरा
पानी की सियासत
Posted on 10 Sep, 2011 10:53 AM

नदी परियोजना को एक राष्ट्रीय परियोजना स्वीकार जरूर कर लिया, लेकिन इसके बावजूद उसने कुछ नहीं किय

जल, थल और मल
Posted on 08 Sep, 2011 03:35 PM

आज तो केवल एक तिहाई आबादी के पास ही शौचालय की सुविधा है। इनमें से जितना मैला पानी गटर में जाता है, उसे साफ करने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। परिणाम आप किसी भी नदी में देख सकते हैं। जितना बड़ा शहर, उतने ही ज्यादा शौचालय और उतनी ही ज्यादा दूषित नदियां।

अक्सर व्यंग में कहा जाता है और शायद आपने पढ़ा भी हो कि हमारे देश में आज संडास से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। अगर यहां हर व्यक्ति के पास मल त्यागने के लिए संडास हो तो कैसा रहे? लाखों लोग शहर और कस्बों में शौच की जगह तलाशते हैं और मल के साथ उन्हें अपनी गरिमा भी त्यागनी पड़ती है। महिलाएं जो कठिनाई झेलती हैं उसे बतलाना बहुत ही कठिन है। शर्मसार वो भी होते हैं, जिन्हें दूसरों को खुले में शौच जाते हुए देखना पड़ता है, तो कितना अच्छा हो कि हर किसी को एक संडास मिल जाए और ऐसा करने के लिए कई लोगों ने भरसक कोशिश की भी है। जैसे गुजरात में ईश्वरभाई पटेल का बनाया सफाई विद्यालय और बिंदेश्वरी पाठक के सुलभ शौचालय।
भोजन नष्ट करने का परिणाम
Posted on 08 Sep, 2011 09:02 AM

पाप है भोजन की बर्बादी विकसित देश जिस मात्रा में भोजन की बर्बादी करते हैं यदि उसे जरुरतमंदों म

बाढ़-नियंत्रण व राहत पर गंभीर विमर्श जरूरी
Posted on 07 Sep, 2011 02:27 PM

साफ पेयजल उपलब्धि निश्चय ही एक उच्च प्राथमिकता है व इस दृष्टि से ऊंचे हैंडपंप लगाने, समय पर ब्

अलगाववाद रोकने के एजेंडे पर
Posted on 07 Sep, 2011 01:58 PM

भारत-बांग्लादेश जल-सीमा को जोड़ने वाली तीस्ता और फेणी नदियों के जल-बंटवारे से संबंधित विवाद में

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