भारत

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बैरी हुए बदरवा
Posted on 07 Sep, 2011 01:10 PM

जब बुनियादी आंकड़े भी न हों तो विज्ञान भला किस आधार पर पूर्वानुमान लगाए। मॉनसून पर निर्भरता को

सुनिये! कुदरत क्या कह रही है?
Posted on 07 Sep, 2011 11:40 AM

ज्यों-ज्यों बर्फ का पिघलना जारी रहेगा, इस क्षेत्र में गर्मी और बढ़ती जाएगी। इससे समुद्र का तापम

समंदर में तेजी से खत्म हो रही हैं मछलियाँ
Posted on 07 Sep, 2011 10:19 AM

व्यापारी इन तमाम भुगतानों के बाद जब समंदर में जहाज लेकर उतरता है तो यही सोच रखता है कि जितनी ज्

वनाधिकार कानून और महिलाएं
Posted on 07 Sep, 2011 09:32 AM

पर्यावरण मंत्रालय वन भूमि को अपने नियंत्रण में रखने के लिए वृक्षारोपण और उद्योगों के नाम पर विभ

किशनगंगा परियोजना पर सुनवाई होगी अंतर्राष्ट्रीय पंचाट में
Posted on 06 Sep, 2011 05:27 PM

नई दिल्ली । जम्मू कश्मीर में निर्माणाधीन किशनगगंगा बिजली परियोजना को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जारी विवाद पर सुनवाई अब अंतर्राष्ट्रीय पंचाट में होगी। इस मामले में सुनवाई के लिए पाकिस्तान ने अपने विशेषज्ञों के नाम हाल ही में तय किए हैं। इसके बाद भारत ने जेनेवा स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के एक जज न्यायमूर्ति पीटर तोमका और स्विस अंतर्राष्ट्रीय विधि विशेषज्ञ लूसियस कैफ्लिश को किशनगंगा परियोज

किशनगंगा परियोजना
मानसून के दिनों में घर को बनाएं रेन प्रूफ
Posted on 06 Sep, 2011 05:13 PM

आमतौर पर कई जगहों में ऐसा देखा जाता है कि लगातार बारिश होने के कारण, पूरी देखरेख के बावजूद, छतो

पिघलते ग्लेशियर सूखती नदियां
Posted on 06 Sep, 2011 04:38 PM

भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और चीन की यांगची नदी में जल का स्तर पिछले कई वर्षों से 'ठहराव पर है। ले

ना बाबा ना!
Posted on 06 Sep, 2011 10:22 AM

एक साधारण औसत आकार के परमाणु बिजलीघर को ठिकाने लगाने का औसत खर्च 330 करोड़ डालर के आसपास बैठता

चौमासा के बारहमासी फल
Posted on 06 Sep, 2011 09:38 AM

हमारे पंचांग का सबसे अनूठा समय है चौमासा। कुल जितना पानी बरसता है हमारे यहां, उसका 70-90 प्रतिशत चौमासे में ही गिर जाता है। जिस देश में ज्यादातर लोग जमीन जोतते हैं, उसमें चौमासे की उपज से ही साल-भर का काम चलता है। केवल किसानों का ही नहीं, कारीगरों और व्यापारियों का और उनसे वसूले कर पर चलने वाले राजाओं का, राज्यों का भी।

बीत चला है अब चौमासा। आते समय उसकी चिंता नहीं की जिनने, वे उसके बीतने पर क्या सोच पाएंगे? फिर भी इसे विलंब न मानें। चौमासा तो फिर आएगा। तो आने वाले चौमासे की चिंता अब जरा आठ माह पहले ही कर लें। इसी पर टिका है हमारे पूरे समाज का, पूरे देश का भविष्य। जमीन और बादल का यह संबंध हमारे नए लोगों ने, नए योजनाकारों ने नहीं समझा है। पर इस संबंध को समझे बिना हमारा भविष्य, हमारी जमीन, हमारा आकाश निरापद नहीं हो पाएगा और जब आपदाएं बरसेंगी तो आज की नई अर्थ व्यवस्थाओं के रंग-बिरंगे छाते हमें बचा नहीं पाएंगे। भागवत पुराण हमें बतलाता है: भगवान विष्णु राजा बलि को दिए वचन का पालन करते हुए चार महीने के लिए सुतल में उनके द्वार पर चले जाते हैं।
केंचुआ खाद
Posted on 03 Sep, 2011 01:30 PM हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि भूमि में पाये जाने वाले केंचुए मनुष्य के लिए बहुपयोगी होते हैं। मनुष्य के लिए इनका महत्व सर्वप्रथम सन् 1881 में विश्व विख्यात जीव वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने अपने 40 वर्षों के अध्ययन के बाद बताया। इसके बाद हुए अध्ययनों से केंचुओं की उपयोगिता उससे भी अधिक साबित हो चुकी है जितनी कि डार्विन ने कभी कल्पना की थी। भूमि में पाये जाने वाले केंचुए खेत में पडे़ हुए पेड़-पौधों
केंचुए गोबर को खाद के रूप में परिवर्तित करते
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