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मैंग्रोव वनों को सम्भावित खतरे
Posted on 13 Sep, 2011 12:24 PM भारत में विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव क्षेत्र सुन्दरवन स्थित है। मैंग्रोव क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप को नियंत्रित करने की आवश्यकता है क्योंकि मानव द्वारा अतिक्रमण के कारण इनके क्षेत्रफल में कमी आ रही है।
मैंग्रोव का महत्व
Posted on 13 Sep, 2011 11:20 AM मनुष्य द्वारा मैंग्रोव वनों का प्रयोग अनेक रूपों में किया जाता है। पारम्परिक रूप से स्थानीय निवासियों द्वारा इनका प्रयोग भोजन, औषधि, टेनिन, ईंधन तथा इमारती लकड़ी के लिये किया जाता रहा है। तटीक इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों के लिये जीवनयापन का साधन इन वनों से प्राप्त होता है तथा ये उनकी पारम्परिक संस्कृति को जीवित रखते हैं। मैंग्रोव वन धरती तथा समुद्र के बीच एक उभय प्रतिरोधी (बफर) की तरह कार्य क
मैंग्रोव पारिस्थितिकी
Posted on 13 Sep, 2011 10:57 AM मैंग्रोव वन विभिन्न प्रकार के जीवों और वनस्पतियों के लिए अद्वितीय पारिस्थितिक पर्यावरण उपलब्ध कराते हैं । यह आवास स्थल वैश्विक कार्बन चक्र में अहम् योगदान देते हैं। बहुत से जीव मैंग्रोव का विविध प्रकार से उपयोग करते हैं, चाहे वहा जीवन के कुछ भाग में हो। उष्णकटिबन्धीय तटों पर जैव विविधता को बनाये रखने में मैंग्रोव क्षेत्रों का महत्वपूर्ण योगदान है। मैंग्रोव पौधों की पत्तियां टूटी शाखाएं, बीज तथा फल
वनस्पति और जीव
Posted on 13 Sep, 2011 09:20 AM मैंग्रोव वन जिन्हें कभी केवल अनुपयोगी दलदल समझा जाता था आज उपयोगी तथा परिस्थितिकीय रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों के रूप में देखे जाते हैं। खारे पानी और दलदली क्षेत्र होने पर भी मैंग्रोव वनों में विभिन्न प्रकार के पौधों और जीव-जन्तुओं की अनेक प्रजातियां पायी जाती हैं। ये क्षेत्र अन्य प्रकार के पौधों के लिये भी भोजन तथा आवास प्रदान करते हैं। अक्सर यह माना जाता है कि मैंग्रोव वन कम आवासीय विविधता वाले
मौसमी कारक
Posted on 13 Sep, 2011 08:54 AM

एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य वर्षा जल द्वारा यह किया जाता है कि समुद्री पानी द्वारा वाष्पीकरण द्वा

मैंग्रोव वनों की जैविक संरचना
Posted on 12 Sep, 2011 03:55 PM अनियमित अवलोकन करने पर यह अकल्पित ही समझा जाएगा कि मैंग्रोव वनस्पतियां उनके आवास (भूमि और सागर के अंतरापृष्ठीय क्षेत्र) में किस प्रकार जीवित रह पाती हैं। सामान्यतः यह देखने में आता है कि यदि किसी पौधे को समुद्र के पानी से सींच दिया जाये तो पानी में उपस्थित नमक उस पौधे के सारे पानी को सोख लेता है और पौधा निर्जलीकरण से मर जाता है। इसके विपरीत मैंग्रोव पौधे लगातार खारे पानी में रह कर भी जीवित रहते
प्रकृति संरक्षण का पर्व
Posted on 12 Sep, 2011 03:17 PM

हर वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव संवत्सर के साथ ही देश में वासन्तिक नवरात्र का पूजा महोत्सव भी धूमधाम से प्रारम्भ हो जाता है। शक्ति पूजन की यह परम्परा नवरात्र के अवसर पर इतना व्यापक रूप धारण कर लेती है कि उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी और पश्चिम में राजस्थान से लेकर पूर्व में गुवाहाटी तक जितने भी ग्राम, नगर और प्रान्त हैं, सब अपनी-अपनी आस्थाओं और पूजा शैलियों के अनुसार लाखों-

वासन्तिक नवरात्र का पूजा महोत्सव
पानी चाहिए तो बचाना होगा हिमालय
Posted on 12 Sep, 2011 02:54 PM

लगातार घट रहा है भूजल का स्तर और नदियों का पानी

 

कृत्रिम बांध की बजाय पूरे हिमालय को प्राकृतिक बांध बनाया जाएः बहुगुणा
Posted on 12 Sep, 2011 02:37 PM

नई दिल्ली, (भाषा)। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि को पेजयल संकट का प्रमुख कारण बताते हुए प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दर लाल बहुगुणा ने कहा कि हिमालय पर कृत्रिम बांध बनाने की बजाए पूरे क्षेत्र का प्राकृतिक बांध के रूप में विकास किया जाए।

बेतरतीब दोहन से संकट में है औषधीय वनस्पतियां
Posted on 12 Sep, 2011 02:27 PM

श्रीनगर (गढ़वाल): विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग चार अरब लोग औषधीय वनस्पतियों पर विश्वास करते हैं और प्रयोग में लाई जाने वाली कुल दवाइयों में से 25 प्रतिशत वनस्पतियों से प्राप्त रसायनों से तैयार की जाती हैं। हिमालय में ऐसी जड़ी-बूटियों की प्रचुरता के मद्देनजर उनके सावधानीपूर्वक दोहन से क्षेत्र के विकास की प्रबल संभावनाएं हैं। पहले ये जड़ी-बूटी केवल स्थानीय स्तर पर

औषधीय वनस्पतियां अब संकट में
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