बांधों पर तोहमत

बांध जितने पुराने होते हैं, मीथेन की मात्रा उतनी ही ज्यादा होती जाती है। आंकड़े तो यह भी कह रहे हैं कि चीन के बांधों से 44 लाख टन मीथेन के मुकाबले भारत के बांध उससे साढ़े सात गुने से ज्यादा मीथेन छोड़ रहे हैं।

लगता तो ऐसा है कि बड़े बांध के विरोधियों को एक और मुद्दा मिल गया है, क्योंकि इधर भारत समेत दुनिया के बड़े बांधों को धरती को गर्माने का जिम्मेदार भी माना जा रहा है। ब्राजील के साइंटिस्टों ने बांधों पर जो रिसर्च की है, उसके मुताबिक इसके पर्याप्त सबूत हैं कि दुनिया के बड़े बांध मिलकर करीब 11.5 करोड़ टन मीथेन वायुमंडल में छोड़ रहे हैं। हमारी परेशानी यह है कि सबसे बड़ी तोहमत भारत के बांधों पर है, क्योंकि वे सालाना तीन करोड़ 35 लाख टन मीथेन छोड़ रहे हैं। ब्राजील दो करोड़ 18 लाख टन के साथ दूसरे नंबर पर है। साइंटिस्टों का यह भी दावा है कि विश्व के 52 हजार बांध और जलाशय मिलकर ग्लोबल वॉर्मिंग पर मानवीय गतिविधियों के कारण पड़ने वाले असर में चार फीसदी का योगदान कर रहे हैं।

इस तरह इंसानी हरकतों से पैदा होने वाली मीथेन में इनका सबसे बड़ा शेयर है। अभी तो कुछ पर्यावरणीय संस्थाओं का कहना है कि ब्राजील की रिसर्च के आंकड़े कुछ ज्यादा ही भयावह तस्वीर रच रहे हैं, हालात इतने खराब नहीं हैं। पर अगर इस शोध को सही मान लिया गया, तो भारत समेत कई विकसित देशों की नींद उड़ सकती है, क्योंकि हाइड्रो पावर पर उनकी निर्भरता भी तेजी से बढ़ रही है। बिजली बनाने में बांध में पानी जमा करके उससे टरबाइनों को चलाना हर तरह से सेफ माना जाता रहा है। लोगों के विस्थापन और कुछ पर्यावरणीय दिक्कतों के अलावा कोई बड़ी अड़चन बड़े बांधों के रास्ते में नहीं रही है। पर साइंटिस्ट अब कह रहे हैं कि बांधों में जमा होने वाली गाद के साथ-साथ बड़ी मात्रा में ऑर्गेनिक मटीरियल भी जमा हो जाते हैं, उनका विघटन मीथेन गैस पैदा करता है।

बांध जितने पुराने होते हैं, मीथेन की मात्रा उतनी ही ज्यादा होती जाती है। आंकड़े तो यह भी कह रहे हैं कि चीन के बांधों से 44 लाख टन मीथेन के मुकाबले भारत के बांध उससे साढ़े सात गुने से ज्यादा मीथेन छोड़ रहे हैं। वजह यह है कि भारत ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है, ज्यादा तापमान मीथेन का उत्सर्जन बढ़ाता है। यह सही है कि ग्रीनहाउस गैसों में मीथेन दूसरी बड़ी प्रदूषक गैस (कार्बन डाइऑक्साइड का शेयर 72 फीसदी, मीथेन का 23 प्रतिशत) है, पर कहीं भारत को पहले उसके धान के खेतों, मवेशियों के कारण और अब बांधों के बहाने एक बड़े प्रदूषक के रूप में घेरने की साजिश तो नहीं हो रही है? अगर ऐसा है, तो सबसे पहले हमें इस साजिश की हवा निकालनी होगी, मीथेन से तो हम बाद में भी निपट सकते हैं।
 

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