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बांधों से बढ़ गया बाढ़ का संकट
Posted on 03 Sep, 2013 04:10 PM होशंगाबाद जिले की दुधी, मछवासा, ओल, कोरनी आदि सभी नदियां सतपुड़ा से निकली हैं। नाम भी बहुत अच्छे हैं। दुधी यानी दूध जैसा साफ पानी
flood
धन-धन धान्य
Posted on 03 Sep, 2013 03:52 PM इसके बिना न होय दिवाली इसके बिना न होय पूजा।
भुनकर खिले, उबलकर निखरे, है दुनिया में कोई दूजा?


एक सौ करोड़ से ज्यादा किसान धान की खेती से दूसरों का पेट भरते हैं और अपना पेट पालते हैं। कोई एक सौ से ज्यादा देशों में धान की खेती की जाती है। लेकिन दुनिया का 90 प्रतिशत धान एशिया में ही उगाया और खाया जाता है। धान के पौधे को हर तरह की जलवायु पसंद है। नेपाल और भूटान में 10 हजार फुट से ऊंचे पहाड़ हों, या केरल में समुद्रतल से भी 10 फुट नीचे पाताल-धान दोनों जगह लहराते हैं।जी ठीक ही पहचाना आपने। इसे धान, चावल, अक्षत, तंदुल किसी भी नाम से पुकारिये। जब तक बताशों के साथ खील न हो तो दिवाली कैसी? पूजा की थाली में अक्षत यानी चावल के दाने और रोली का लाल रंग न हो तो पूजा बेरंग। भुनने के बाद ऐसा खिलता है कि भुने धान की खील या मुरमुरों के लड्डू या चना-मुरमुरे भला किसे नहीं लुभाते। झोपड़ी से लेकर आलीशान होटलों तक हर जगह दुनिया में धान की मांग है। एशिया के दो सौ करोड़ से ज्यादा लोगों की जान है धान। उधर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भी करोड़ों लोग चावल खाते हैं। और फिर यूरोप, अमेरिका में भी तो इस अनाज ने अपनी जगह बना ली है। धरती का हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी रूप में हर रोज चावल खाता है। एक सौ करोड़ से ज्यादा किसान धान की खेती से दूसरों का पेट भरते हैं और अपना पेट पालते हैं। कोई एक सौ से ज्यादा देशों में धान की खेती की जाती है। लेकिन दुनिया का 90 प्रतिशत धान एशिया में ही उगाया और खाया जाता है।
भूमि अधिग्रहण बिल : खेत बचाएगा, हैसियत बढ़ाएगा
Posted on 03 Sep, 2013 12:49 PM मतभेद इस बात पर भी संभव है कि बिल खरीददार को भूमि जबरन खरीदने से
land acquisition
उर्वरता की हिंसक भूमि
Posted on 03 Sep, 2013 11:50 AM
सन 1908 में हुई एक वैज्ञानिक खोज ने हमारी दुनिया बदल दी है। शायद किसी एक आविष्कार का इतना गहरा असर इतिहास में नहीं होगा। आज हममें से हर किसी के जीवन में इस खोज का असर सीधा दीखता है। इससे मनुष्य इतना खाना उगाने लगा है कि एक शताब्दी में ही चौगुनी बढ़ी आबादी के लिए भी अनाज कम नहीं पड़ा। लेकिन इस आविष्कार ने हिंसा का भी एक ऐसा रास्ता खोला है, जिससे हमारी कोई निजाद नहीं है। दो विश्व युद्धों से लेकर आतंकवादी हमलों तक। जमीन की पैदावार बढ़ाने वाले इस आविष्कार से कई तरह के वार पैदा हुए हैं, चाहे विस्फोटकों के रूप में और चाहे पर्यावरण के विराट प्रदूषण के रूप में।

दुनिया के कई हिस्सों में ऐसे ही हादसे छोटे-बड़े रूप में होते रहे हैं। इनको जोड़ने वाली कड़ी है उर्वरक के कारखाने में अमोनियम नाइट्रेट। आखिर खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले इस रसायन में ऐसा क्या है कि इससे इतनी तबाही मच सकती है? इसके लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा उन कारणों को जानने के लिए, जिनसे हरित क्रांति के उर्वरक तैयार हुए थे।

इस साल 17 अप्रैल को एक बड़ा धमाका हुआ था। इसकी गूंज कई दिनों तक दुनिया भर में सुनाई देती रही थी। अमेरिका के टेक्सास राज्य के वेस्ट नामक गांव में हुए इस विस्फोट से फैले दावानल ने 15 लोगों को मारा था और कोई 180 लोग हताहत हुए थे। हादसे तो यहां-वहां होते ही रहते हैं और न जाने कितने लोगों को मारते भी हैं। लेकिन यह धमाका कई दिनों तक खबर में बना रहा। इससे हुए नुकसान के कारण नहीं, जिस जगह यह हुआ था, उस वजह से। धमाका किसी आतंकवादी संगठन के हमले से नहीं हुआ था। उर्वरक बनाने के लिए काम आने वाले रसायनों के एक भंडार में आग लग गई थी। कुछ वैसी ही जैसी कारखानों में यहां-वहां कभी-कभी लग जाती है। दमकल की गाड़ियां पहुंचीं और अग्निशमन दल अपने काम में लग गया। लेकिन उसके बाद जो धमाका हुआ, उसे आसपास रहने वाले लोगों ने किसी एक भूचाल की तरह महसूस किया।
पर्यावरण से दुश्मनी निभाता विश्व बैंक
Posted on 03 Sep, 2013 10:45 AM गुबैंक के आंतरिक अध्ययन उद्घाटित करते हैं कि इस शताब्दी में बैंक द्
पानी रे पानी
Posted on 01 Sep, 2013 03:01 PM

जल एक असाधारण गुणों वाला द्रव है। साधारण तापमान में वृद्धि के साथ पदार्थों के आयतन में वृद्धि होती है, लेकिन जल ए

पहाड़ की पीड़ा
Posted on 30 Aug, 2013 12:51 PM विधाता ने कितने श्रम से
बनाया होगा पहाड़ को
कि उसकी प्रिय कृति मनुज
कुछ तो निकटता
अनुभव कर सके उससे
ऊँचे ऊँचे वृक्ष,फल,वन पुष्प
बलूत, बुराँस,शैवाक
हरे भरे बुग्याल और
सबकी क्षुधा शांत करने हेतु
कलकल करते झरने
उन सबके मध्य
पसरी हुई घाटी से
होकर बहती पहाड़ की
लाडली नदी जिसे
बड़े यत्न से अपनी
जल नहीं अनंत है...
Posted on 30 Aug, 2013 12:50 PM यह विनम्र गंग धार
बह रही अनंत से
विमल चली थी स्रोत से
समल बना दिया इसे
विनाश तो विहंस हो
बजा रहा मृदंग है
दैव भी सुरसरि का
नाश देख दंग है
क्या हुआ है मनुज को
क्यों अंत देखता नहीं
ज्ञान क्या नहीं उसे
जल नहीं अनंत है
सभ्यता विहान से
युगों के आह्वान से
उदय है विज्ञान का
छू रहा है गगन आज
उसे हड़बड़ी थी
Posted on 27 Aug, 2013 12:41 PM पिछली रात
ठीक 3.22 पर एक हादसा हुआ...
मई-जून की वो भरी-पूरी झेलम
नील-निर्मल प्रवाहों वाली वो ‘वितस्ता’
मेरे ऊपर से होकर गुजरी-पिछली रात!
लगातार आधा घंटा तक, नहीं 45 मिनट लगे!
प्रवाहित होती रही मुझ पर से
मैं लेटा रहा, निमीलित-नेत्र...
मन ही मन जागरूक, मोद-मग्न...
आशीष की मुद्रा में मेरे होंठ हिलते रहे
जी हां, मैं मगन-मन लेटा रहा उतनी देर
वह फिर जी उठी
Posted on 27 Aug, 2013 12:40 PM पहाड़ी प्रदेश, ऊभड़-खाभड़!
छोटा नागपुर या मध्य प्रदेश का ऐसा ही
कोई इलाका...
छोटी-सी एक नदी
अपने आप में मस्त
हां, पहाड़ी नदी!
हरे-भरे किनारे
इधर भी जंगल, उधर भी जंगल!
जामुन, गूलर, पलाश, आम, महुआ, नीम...
सभी देखते हैं अपना-अपना चेहरा
-नदी के पानी में!
रात को झांकते होते हैं आसमान के तारे
जगमगाती है दिन के वक्त
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