नागार्जुन

नागार्जुन
उसे हड़बड़ी थी
Posted on 27 Aug, 2013 12:41 PM
पिछली रात
ठीक 3.22 पर एक हादसा हुआ...
मई-जून की वो भरी-पूरी झेलम
नील-निर्मल प्रवाहों वाली वो ‘वितस्ता’
मेरे ऊपर से होकर गुजरी-पिछली रात!
लगातार आधा घंटा तक, नहीं 45 मिनट लगे!
प्रवाहित होती रही मुझ पर से
मैं लेटा रहा, निमीलित-नेत्र...
मन ही मन जागरूक, मोद-मग्न...
आशीष की मुद्रा में मेरे होंठ हिलते रहे
जी हां, मैं मगन-मन लेटा रहा उतनी देर
वह फिर जी उठी
Posted on 27 Aug, 2013 12:40 PM
पहाड़ी प्रदेश, ऊभड़-खाभड़!
छोटा नागपुर या मध्य प्रदेश का ऐसा ही
कोई इलाका...
छोटी-सी एक नदी
अपने आप में मस्त
हां, पहाड़ी नदी!
हरे-भरे किनारे
इधर भी जंगल, उधर भी जंगल!
जामुन, गूलर, पलाश, आम, महुआ, नीम...
सभी देखते हैं अपना-अपना चेहरा
-नदी के पानी में!
रात को झांकते होते हैं आसमान के तारे
जगमगाती है दिन के वक्त
बेतवा किनारे – 2
Posted on 27 Aug, 2013 12:38 PM
लहरों की थाप है
मन के मृदंग पर
बेतवा किनारे
गीतों में फुसफुस है
गीत के संग पर
बेतवा किनारे

मालिश फिजूल है
पुलकित अंग-अंग पर
बेतवा किनारे

लहरों की थाप है
मन के मृदंग पर
बेतवा किनारे।

बेतवा किनारे – 1
Posted on 27 Aug, 2013 12:37 PM
बदली के बाद खिल पड़ी धूप
बेतवा किनारे
सलोनी सर्दी का निखरा है रूप
बेतवा किनारे
रग-रग में धड़कन, वाणी है चूप
बेतवा किनारे
सब कुछ भरा-भरा, रंक है भूप
बेतवा किनारे
बदली के बाद खिल पड़ी धूप
बेतवा किनारे।

सन् 1979

देखना ओ गंगा मइया
Posted on 27 Aug, 2013 12:36 PM
चंद पैसे
दो-एक दुअन्नी-इकन्नी
कानपुर-बंबई की अपनी कमाई में से
डाल गए हैं श्रद्धालु गंगा मइया के नाम
पुल पर से गुजर चुकी है ट्रेन
नीचे प्रवहमान उथली-छिछली धार में
फुर्ती से खोज रहे पैसे
मलाहों के नंग-धड़ंग छोकरे
दो-दो पैर
हाथ दो-दो
प्रवाह में खिसकती रेत की ले रहे टोह
बहुधा-अवतरित चतुर्भुज नारायण ओह
खोज रहे पानी में जाने कौस्तुभ मणि।
गीले पांक की दुनिया गई है छोड़
Posted on 27 Aug, 2013 11:36 AM
बढ़ी है इस बार गंगा खूब
दियारों पर गांव कितने ही गए हैं डूब
किंतु हम तो शहर के इस छोर पर हैं
देखते हैं रात-दिन जल-प्रलय का ही दृश्य
पत्थरों से बंधी गहरी नींव वाला
किराये का घर हमारा रहे यह आबाद
पुराना ही सही पर मजबूत
रही जिसको अनवरत झकझोर
क्षुब्ध गंगा की विकट हिलकोर
सामने ही पड़ोसी के-
नीम, सहजन, आंवला, अमरूद
हो रहे आकंठ जल में मग्न
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