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अपना मूल पछाण
Posted on 03 Mar, 2015 04:14 PM पुराण, इतिहास गवाह हैं कि अपनी जड़ों से कट कर सब चेतन-अचेतन मुरझा जाते हैं। मूल से कट कर मूल्य कभी बचाए नहीं जा सके। सभ्यताएँ, परम्पराएँ, समाज भी हरे पेड़ों की तरह होती हैं। उन्हें भी अच्छे विचारों की खाद, सरल मन जल की नमी, ममता की आँच और प्रकृति के उपकारों के प्रति कारसेवक-सा भाव ही टिका के रख सकता है। इन सब तत्वों के बिना समाज के भीतर उदासी घर करने लगती है।

पंजाब आज इसी उदासी का शिकार है। अनुभव कहता है कि जब भी कोई समाज अपने को अपने से काट कर अपना भविष्य संवारने निकलता है तो उसमें परायापन झलकने लगता है। परायेपन को बनावटीपन में बदलते देर नहीं लगती। आज ऐसा ही परायापन हरित क्रान्ति के मारे और नशों में झूमते पंजाब के कोने-कोने में देखने को मिलता है। परायापन एक गम्भीर समस्या है, बेशक वो घर का हो या समाज का। उससे सबकी कमर झुकने लगती है।
आस्था और विकास की एक त्रासद कहानी ' दर दर गंगे'
Posted on 03 Mar, 2015 11:52 AM

भारतीय संस्कृति में नदी माँ है। नदियों के साथ हम अपनी माँ जैसा ही व्यवहार तो करते थे। बचपन में माँ दूध पिलाकर पोषण करती है। वैसे ही नदी भी जल पिलाकर जीवनभर पोषण करती थी। आज सब भूल गए हैं कि पीने का पानी नदी से आता है। इस अज्ञान ने नदी से दूर कर दिया है। 21वीं सदी के दूसरे दशक में नदियों को पूर्णत: प्रदूषित कर दिया है। उद्योगों ने नदियों को मैला ढोनेवाली मालगाड़ी बना दिया है। अब पानी पीकर या स्

Dar Dar Gange
भू-अधिकार आयोजनों का हासिल
Posted on 03 Mar, 2015 11:09 AM भू-अधिकार के मसले पर सरकार को चेतावनी देने के आयोजनों का एक दौर सम्पन्न हो चुका है। वाया अन्ना, आयोजन का अगला दौर नौ मार्च को वर्धा (महाराष्ट्र) स्थित सेवाग्राम से शुरू होगा। इन आयोजनों का जनता को हुआ हासिल अभी सिर्फ इतना ही है कि वह जान चुकी है कि कोई ऐसा कानून बना था, जिसमें उनकी राय के बगैर खेती-किसानी की ज़मीन नहीं ली जा सकती थी।
Justice for farmers
गोवा, दिल्ली की भूख और प्यास
Posted on 02 Mar, 2015 04:59 PM पोथी पढ़-पढ़ पंक्ति जिस पण्डित की ओर संकेत करती है, उसे सब जानते ही हैं। जग मुआ पर पण्डित नहीं बन पाए। प्रेम का ढाई आखर बना देता है पण्डित। इस बार ढाई आखर प्रेम का नहीं फ्रेम का है। तेजी से अपण्डित होते जा रहे संसार में वृत्त-चित्र के ढाई फ्रेम भी नए पण्डित बना सकते हैं- इस विश्वास के साथ इस बार पोथी के इस काॅलम में वृत्त-चित्र की चर्चा की जा रही है।
राष्ट्रीय नज़रिया अपनाएं
Posted on 02 Mar, 2015 01:39 PM

पानी देश भर में एक महत्वपूर्ण तथा विवाद का मुद्दा बना हुआ है। लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया

स्वच्छ ऊर्जा से गन्दा होता पर्यावरण
Posted on 28 Feb, 2015 11:04 AM

आज से करीब 50 वर्ष पूर्व आस्ट्रेलिया में परमाणु हथियारों के लिए हुए परीक्षणों की वजह से वहाँ के

मनुष्य और प्रकृति के सहअस्तित्व से होगा समस्या का समाधान
Posted on 26 Feb, 2015 01:06 PM ग्लोबल वार्मिंग आज के विश्व के सामने बड़ी चुनौती बनके उभरी है। प्रकृ
Pradeep Singh
लुप्त होती पारम्परिक जल-प्रणालियाँ
Posted on 26 Feb, 2015 12:22 PM यह देश-दुनिया जब से है तब से पानी एक अनिवार्य जरूरत रही है और अल्प वर्षा, मरूस्थल, जैसी विषमताएँ प्रकृति में विद्यमान रही हैं- यह तो बीते दो सौ साल में ही हुआ कि लोग भूख या पानी के कारण अपने पुश्तैनी घरों-पिण्डों से पलायन कर गए। उसके पहले का समाज तो हर जल-विपदा का समाधान रखता था। अभी हमारे देखते-देखते ही घरों के आँगन, गाँव के पनघट व कस्बों के सार्वजनिक स्थानों से कुएँ गायब हुए हैं।
traditional water management
पर्यावरण बचाने जियो की अभिनव मुहिम
Posted on 26 Feb, 2015 10:58 AM

जियो के संस्थापक ने बताया कि पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाने के लिए अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लग

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