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भारतीय चिन्तन-परम्परा में जल
Posted on 09 Jul, 2015 10:16 AM जल अर्थात रस से वंचित करना अधर्म है। मानव का कर्तव्य केवल जल के स्थ
भारत का प्राचीन भू-गर्भ जल विज्ञान
Posted on 07 Jul, 2015 12:21 PM आचार्य वराह मिहिर (लगभग 5-6 शती ई.) द्वारा लिखित प्रसिद्ध फलित ज्योतिष-ग्रन्थ ‘वृहत्संहिता का 53वाँ अध्याय है- ‘हकार्गल’ अर्थात अर्गला (छड़ी) के माध्यम से भूगर्भ के जल का पता लगाना। इस विधि के जानकार आज भी उपलब्ध हैं। इस अध्याय के कुछ अंश-


धर्म्य यशस्यं च वदाम्तोSहं दकार्गलं येन जलोपलब्धिः।
विश्वव्यापी जल संकट (Global Water Crisis)
Posted on 07 Jul, 2015 11:00 AM हम जान चुकें हैं कि दुनिया में पीने लायक मीठा पानी सारे पानी की बमु
पानी में आग
Posted on 06 Jul, 2015 04:24 PM सिनेमा में पानी की उपस्थिति बहुत सहज तथा सघन है। बारिश के रूप में हो या झील के रूप में। समुद्र के रूप में हो या नदी के रूप में। पानी किसी न किसी रूप में उपस्थित होता ही है। यहाँ तक कि नदी नाला न सही तो कुआँ या स्विमिंग पूल के रूप में ही सही। अपने संदर्भों के लिए या प्रतीकों सहित यह तीज त्योहारों, व्रतों के रूप में आता है या फिर मुहावरों में - यथा हुक्का-पानी
बरसो रे बरसो मेघा: एक नाटक
Posted on 06 Jul, 2015 12:49 PM यह पानी भी विचित्र है—कभी हरहराती बाढ़, कभी रिमझिम-रिमझिम बारिश, कभी जलप्रलय और सृष्टि परिवर्तन, कभी धारासार वर्षा का रोमांस, कभी प्रेम की सरस बूँदों का स्पर्श, कभी नीर भरी दुख की बदली और कभी निर्झर-सा झरझर, कभी बादल का अमर राग- ‘झूम-झूम मृदु गरज-गरज घनघारे’ जो कृषकों को नयी आशा और जीवन देता है और कभी वही बादल मधुर गीत में ढल जाते हैं- ‘बादल छाए, य
कोपनहेगन : पर्यावरण मित्र शहर
Posted on 05 Jul, 2015 04:09 PM पौराणिक प्रमाणों के आधार पर कोपनहेगन का अस्तित्व लगभग 6000 वर्ष पूर
आस्था के नाम पर यमुना से खिलवाड़
Posted on 05 Jul, 2015 03:55 PM आस्था के नाम पर यमुना से खिलवाड़ का सिलसिला जारी है। एनजीटी के सख्त आदेश के बाद न तो डीडीए ने यमुना में पूजा सामग्री डालने और उसकी रोकथाम के लिए किसी भी तरह की सख्ती दिखाई है और न ही दिल्ली वाले यमुना के महत्त्व को समझने के लिए तैयार हैं। आलम यह है कि हर शनिवार आस्था के नाम पर आईटीओ स्थित यमुना किनारे एनजीटी के आदेशों की सरेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं लेकिन
निर्जलन (डिहाईड्रेशन)
Posted on 05 Jul, 2015 12:55 PM गर्मी के मौसम में पानी की कमी से निर्जलन की शिकायत हो सकती है। इस मौसम में कुछ सावधानियाँ अपनाकर और ज्यादा से ज्यादा पानी पीकर इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।
उड़ती नदी, बहता बादल
Posted on 05 Jul, 2015 11:36 AM मेघ ही वे कहार हैं, जो नदी-नाले, गाड़-गधेरे और कुआँ-बावड़ी, ताल-तलैया- हर जलस्रोत में पानी भरते हैं। मेघ प्रति वर्ष यह काम सचमुच कश्मीर से कन्याकुमारी तक अथक करते हैं। मेघ बड़े बहादुर कहार हैं। ये खूब भारी डोली यानी सारा तरल वाष्प लेकर हजारों मील दूर से भारत की यात्रा केरल से शुरू करते हैं। हमारे यहाँ मानसून हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आता है। कभी-कभी मानसून जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को पार कर पाकिस्तान होते हुए ईरान की ओर यात्रा पर चला जाता है, तो कभी पूर्वी सीमा पार कर जापान की ओर।

दिल्ली तक आते-आते ये मेघ लगभग पच्चीस सौ से चार हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके होते हैं। बूँद, बारिश, मेघ और मानसून के इस मिले-जुले खेल का रूप है वर्षाऋतु। प्रकृति ने धरती की सतह का दो-तिहाई भाग को समुद्र बनाया है। पानी की कोई कमी नहीं छोड़ी है। सूरज की तपस्या से, सूरज के तपने से समुद्र का पानी भाप बनता है। बूँद-बूँद भाप बनकर ऊपर उठती है और नीचे जो खारा समुद्र है, उसका कुछ अंश उठाकर आकाश में निर्मल जल का एक और सागर तैरा देती है।
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नील का राजकुमार
Posted on 05 Jul, 2015 10:41 AM विश्व बाजार में कृत्रिम नील 1897 में ही आ जाता है। परिणाम यह होता ह
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