विश्वव्यापी जल संकट (Global Water Crisis)

हम जान चुकें हैं कि दुनिया में पीने लायक मीठा पानी सारे पानी की बमुश्किल 0.8 प्रतिशत है और वह भी मानवीय कृत्यों से दूषित होता जा रहा है। जल में आवश्यकता से अधिक खनिज पदार्थ, अनावश्यक लवण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ, कल-कारखानों, औद्योगिक इकाइयों तथा अन्य जल संयंत्रों से निकले अपशिष्ट, मलमूत्र, मृतजीवी जन्तु, कूड़ा-करकट आदि नदियों, झीलों तथा सागरों में विसर्जित किये जाते रहने से ये पदार्थ जल के वास्तविक स्वरूप को प्रदूषित कर देते हैं जिसका मनुष्य और अन्य जीवों पर घातक प्रभाव पड़ता है। हम अपने चारों ओर नजर उठाकर देखें तो पाएँगे-पोखरों, तालाबों, झीलों, नदियों और सागरों में पानी ही पानी है। हमें अपने चारों ओर अनन्त जलराशि दिखायी पड़ती है। फिर भी कितनी विचित्र बात है कि यह सारा पानी धरती के हरेक आदमी की जरूरत को पूरा करने के लिए नाकाफी है।

वास्तविकता यह है कि धरती पर मौजूद सारे पानी का अधिकांश (97. 4 प्रतिशत) समुद्रों में भरा पड़ा है। यह सारा जल खारा है, जो सीधे हमारे पीने लायक नहीं है। इसके बाद थोड़ा पानी (1.8 प्रतिशत) ध्रुवों की बर्फ के रूप में विद्यमान है। हमारे पीने लायक मीठा पानी सारे पानी का बमुश्किल 0.8 प्रतिशत है जो हम रोजमर्रा के कामों में लाते हैं और वह भी प्रदूषण की मार से अछूता नहीं।

पानी का गहराता संकटः भयावह तस्वीर


सच पूछिए तो दुनिया भर के हरेक आदमी के लिए यह मीठा पानी पर्याप्त नहीं है। दिन-ब-दिन यह संकट गहराता भी जा रहा है। बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती खपत के कारण जल संकट गहराता जा रहा है। भविष्य की तस्वीर बड़ी भयावह है।

ऊर्जा संकट और प्रदूषण दोनों समस्याएँ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ऊर्जा संकट की मार हम झेल ही रहे हैं, पूरी मानवता के समक्ष सबसे भीषण संकट है पीने वाले पानी की कमी। आँकड़ों पर नजर डालें तो पता लगेगा कि प्यास से तड़पती दुनिया की अधिसंख्य आबादी दम तोड़ देगी।

1. संयुक्त राष्ट्र संघ के आँकड़ों के अनुसार 6 अरब की आबादी वाली दुनिया में हर छठा व्यक्ति नियमित सुरक्षित पेयजलापूर्ति से वंचित है।
2. दुनिया के 2.4 अरब लोग पर्याप्त साफ-सफाई की सुविधा से वंचित हैं।
3. जल संवाहित रोगों के कारण हर आठवें सेकेंड में एक बच्चा मौत की भेंट चढ़ जाता है।
4. सन 2032 तक दुनिया की आधे से ज्यादा आबादी पानी की अत्यधिक कमी वाले क्षेत्रों में रहने को विवश होगी। (ग्लोबल एनवायरटन्मेंट आउटलुक-3)
5. अनुमानतः विश्व जनसंख्या के 1.1 अरब लोग जलापूर्ति और 2.4 अरब लोग स्वच्छता की सुविधाओं से वंचित हैं। समाज का निर्धन तबका इसकी चपेट में है।
6. लगातार बढ़ती आबादी और पानी की खपत के कारण पानी संकट भविष्य में और गहराता जायेगा। पानी के लिए तीसरा विश्व युद्ध आरम्भ हो चुका है।
7. पिछले शती में विश्व जनसंख्या तीन गुनी बढ़ चुकी है और इसी अवधि में पानी की खपत 6 गुनी बढ़ चुकी है। अनुमानतः वर्ष 2050 तक संसार का हर चौथा आदमी पानी की समस्या से ग्रस्त होगा।
8. अगले 50 वर्षों के दौरान 60 देशों की 7 अरब आबादी को पर्याप्त जल मुहैया नहीं होगा।
9. अगलें दो दशकों में पश्चिम एशियाई और अफ्रीकी मुल्कों में पानी का घोर संकट व्याप्त हो जायेगा।
10. विगत शती के दौरान लगभग आधी दलदली जमीन समाप्त हो गयी, बहुत सी नदियाँ अब सागरों तक नहीं पहुँच पाती। मृदुजल में पाई जाने वाली मछलियों की 20 प्रतिशत प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। गहराते जल संकट के इन पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का भविष्य में प्रतिकूल प्रभाव होगा जो हमारे स्वयं के अस्तित्व के लिए घातक सिद्ध होगा।
11. मानव जाति की क्षुधा तृप्त करने के लिए अन्न ही आधार है जो कृषि पर निर्भर है। सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती आबादी की क्षुधा तृप्त करने के लिए खेती में पानी का इस्तेमाल बढ़ता ही जा रहा है। स्वाभाविक है भविष्य में दूसरे उपयोगों के लिए पानी की कमी होगी ही।
12. बढ़ती आबादी के साथ ऊर्जा संसाधनों की माँग बढ़ती जा रही है। ऐसे में प्रदूषण-रहित ऊर्जा स्रोत-पनबिजली पर अधिकाधिक निर्भरता होगी और विश्व में गहराता जल संकट इनकी माँग को पूरा कर पाने में अक्षम होगा।
13. बढ़ते औद्योगिकरण का जल संसाधनों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। उद्योगों में पानी की सर्वाधिक खपत होती है, साथ ही ये कचरा युक्त पानी, औद्योगिक उच्छिष्ट (Industrial Effluents) जलाशयों में डालकर जल दूषण बढ़ाते हैं जिसका जलीय सम्पदा और मनुष्यों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जल संकट और जल दूषण दोनों समस्याएँ भविष्य में और भी गहराती जाएँगी।
14. अधिसंख्य उद्योग शहरों के आस-पास ही स्थापित हैं। शहरीकरण भी तेजी से अपने पाँव पसार रहा है। बढ़ते शहरीकरण का बोझ भी जल संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। अनुमानतः 2020 तक कुल जनसंख्या का 60 प्रतिशत अंश शहरों में आवास करेगा। ऐसी स्थिति में जलीय संसाधनों की कमी और उनके दूषण की समस्या और भयावह होगी।
15. पानी के वर्तमान संकट के लिए बढ़ता हुआ हरित गृह प्रभाव (Green House Effect) भी जिम्मेदार है। पानी के वर्तमान जल स्तर के 20 प्रतिशत के लिए जलवायु परिवर्तन प्रमुख कारण है।
16. विश्व मौसम संगठन, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और आईपीसीसी (Intergovernmental Panel Climate Change) के अनुसार हरित गृह गैसों के बढ़ते उत्सर्जनों के कारण इस शती में धरती के ताप में 1.4 डिग्री सेल्सीयस से 5.8 डिग्री से. ताप की वृद्धि अवश्यंभावी है। ऐसे में एक तरफ तो सागरीय जल स्तर में 9 से 88 सेंटीमीटर की वृद्धि होगी और दूसरी तरफ जल संकट भी और गहन होगा। जिन क्षेत्रों में वर्तमान में पानी की कमी है, भविष्य में उन्हीं क्षेत्रों में पानी का संकट और गम्भीर होता जायेगा।

दूषित जल और स्वास्थ्य संकट


हम जान चुकें हैं कि दुनिया में पीने लायक मीठा पानी सारे पानी की बमुश्किल 0.8 प्रतिशत है और वह भी मानवीय कृत्यों से दूषित होता जा रहा है। जल में आवश्यकता से अधिक खनिज पदार्थ, अनावश्यक लवण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ, कल-कारखानों, औद्योगिक इकाइयों तथा अन्य जल संयंत्रों से निकले अपशिष्ट, मलमूत्र, मृतजीवी जन्तु, कूड़ा-करकट आदि नदियों, झीलों तथा सागरों में विसर्जित किये जाते रहने से ये पदार्थ जल के वास्तविक स्वरूप को प्रदूषित कर देते हैं जिसका मनुष्य और अन्य जीवों पर घातक प्रभाव पड़ता है। दूषित जल के इस्तेमाल से पक्षाघात, पोलियो, पीलिया, मियादी बुखार, हैजा, डायरिया, क्षय रोग, पेचिश, इंसेफलाइटिस, कंजक्टीवाइटिस जैसी व्याधियाँ फैलती हैं।

1. विश्व जनसंख्या के दो अरब लोग दूषित जल जनित रोगों की चपेट में हैं।
2. सकल विश्व में हर साल मौत की भेंट चढ़ने वाले बच्चों में से 60 प्रतिशत बच्चे जल संवाहित रोगों से अकाल ग्रस्त होते हैं।
3. प्रतिवर्ष 50 लाख व्यक्ति गन्दे पानी के इस्तेमाल के कारण मौत के मुँह में जा समाते हैं।
4. हर दिन डायरिया से प्रायः 6,000 लोग मरते हैं और इन मरने वालों में अधिकांशतः 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे होते हैं।
5. विश्व भर में स्कूल जाने वाले 40 करोड़ बच्चों में से 40 प्रतिशत बच्चे आँतों में पनपने वाले कृमि रोगों से प्रभावित हैं अतिसार के कारण हर साल 20 लाख बच्चे मौत की भेंट चढ़ते हैं।
6. मलेरिया से हर साल 10 लाख से अधिक लोग मरते हैं। मलेरिया के कारण विश्व में होने वाली मौतों में 90 प्रतिशत लोग अफ्रीकी देशों के हैं।

पानी की बढ़ती खपत


1. विश्व की 6 अरब से अधिक जनसंख्या वर्तमान में उपयोग किये जाने वाले कुल पानी के 54 प्रतिशत का इस्तेमाल कर रही है। वर्ष 2025 तक यह मात्रा बढ़कर 70 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है। एक दूसरा आकलन कहता है कि आगामी 25 वर्षों के दौरान जल उपयोगिता की सीमा बढ़कर 90 प्रतिशत हो जायेगी। ऐसे में जलीय जीवों के लिए जल की उपलब्धता मात्र 10 प्रतिशत रह जाएगी। ऐसी संक्रमण बेला में जलीय जीवों के अस्तित्व का संकट उठ खड़ा होगा।
2. वैश्विक स्तर पर पानी के कुल उपयोग में से 69 प्रतिशत कृषि में, 23 प्रतिशत उद्योगों में और मात्र 8 प्रतिशत घरेलू कार्यों से प्रयुक्त होता है यद्यपि भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार सकल विश्व में जल की उपयोगिता का स्तर समान नहीं है।
3. विश्वभर में 23 प्रतिशत पानी का उपयोग उद्योगों में किया जाता है जिसका विकसित और विकासशील देशों में अनुपात 59 और 8 प्रतिशत का है।
4. पानी की सर्वाधिक खपत के साथ ही उद्योग 50 करोड़ टन धातु, घोलक,, विषाक्त कचरा और इसी प्रकार के दूसरे अपशिष्ट (Wastes) जल-संसाधनों में प्रवाहित करते हैं। विकासशील देशों में कुल औद्योगिक उच्छिष्ट का 70 प्रतिशत हिस्सा तो बिना उपचारित किये ही जल-संसाधनों में प्रवाहित कर दिया जाता है। अतः उद्योग जल-दूषण के प्रमुख कारक हैं।

विश्व जल विकास रपट 2003


संयुक्त राष्ट्र ने मार्च, 2003 में क्योटो (जापान) में आयोजित तृतीय विश्व जल सम्मेलन के अवसर पर विश्व जल विकास रपट जारी की है, जिसे ‘लोगों के लिए जल, जीवन के लिए जल’ नाम से अभिहित किया गया है। जल संसाधनों के संदर्भ में यह अब तक की सबसे विस्तृत समीक्षा है जिसमें 5 मुद्दों-स्वास्थ्य, कृषि, पारिस्थितिकी, नगर और प्राकृतिक आपदाओं पर गहन विमर्श किया गया है।

स्वास्थ्य


1. 21वीं सदी ऐसी सदी है जिसमें प्रमुख समस्या पानी की किस्मों और उसके प्रबन्धन की है।
2. दूषित पेयजल तथा गन्दगी से सम्बन्धीत रोगों से प्रतिवर्ष 22 लाख लोग मृत्यु का ग्रास बनते हैं। मलेरिया से ही प्रायः 10 लाख लोग मौत की भेंट चढ़ते हैं।
3. सन 2015 तक 1.5 अरब अतिरिक्त व्यक्तियों को सुधरी हुई जलापूर्ति उपलब्ध करानी होगी जिसका सिधा-सा तात्पर्य है कि प्रतिवर्ष 10 करोड़ और लोगों को जल सुविधाएँ और स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया की जानी चाहिए।
4. सफाई अपने आप में चुनौती बनकर उभर रही है। 1.9 अरब अतिरिक्त लोगों को आपूर्ति सेवाएँ चाहिए जिसके लिए 1206 अरब डॉलर (अमेरिकी) की दरकार है। स्वाभाविक है कि आगामी 15 वर्षों में इतना विशाल आर्थिक संसाधन उपलब्ध करा पना टेढ़ी खीर है।

कृषि


प्रतिदिन 25,000 लोग भूख से दम तोड़ देते हैं।
विकासशील देशों में 77 करोड़ 70 लाख लोग कुपोषण ग्रस्त हैं

अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने 2015 तक भूख से दम तोड़ती मानवता की संख्या आधी करने का लक्ष्य बनाया है लेकिन ऐसा कर पाना सन 2030 तक भी सम्भव नहीं है क्योंकि नये आकलन के अनुसार 93 विकासशील देशों में 2030 तक 4.5 करोड़ हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि में सिंचाई सम्भव हो सकेगी।

- सिंचाई कार्यों में व्याप्त अकुशलता के कारण भूमि/जल उपयोग में सुधार एक महती समस्या है।

उपयोग किये जाने वाले जल का 60 प्रतिशत भाग बेकार हो जाता है अतः सुधरी हुई प्रौद्योगिकी अपनानी होगी ताकि जल की पारेषण क्षति को रोका जा सके।

पारिस्थितिकी


वैश्विक पर्यावरणीय प्रणालियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के कारण संक्रमण की स्थिति उत्पन्न हो गयी है जिसके आगे चलकर और भी भयावह हो जाने के खतरे आसन्न हैं।

नदियों, झीलों तथा अन्य जल स्रोतों को कम करके तथा उन्हें प्रदूषित करके हम उन प्रणालियों को नष्ट कर रहे हैं जिनसे हमें मृदु जल प्राप्त होता है।

नगर


1. जल सुविधाओं के अभाव का सबसे अधिक दुष्प्रभाव शहरी क्षेत्रों में पड़ा है।
2. एक सर्वेक्षण (116 नगर) में पाया गया है कि अफ्रीका में शहरी क्षेत्र दुष्प्रभावित हैं। मात्र 18 प्रतिशत परिवार सीवरों से जुड़े हुए हैं।
3. सबसे प्रमुख जल संवाहित रोग मलेरिया है जिससे काफी मौतें होती हैं।
4. प्रति वर्ष उद्योगों से 30-50 करोड़ टन भारी धातुएँ, विषाक्त कचरा और व्यर्थ सामग्रियाँ जल संसाधनों में डाली जाती हैं।

संसार का 80 प्रतिशत से अधिक औद्योगिक कचरा (Industrial waste) अमेरिका और अन्य औद्योगिक राष्ट्र उत्पन्न करते हैं।

प्राकृतिक आपदाएँ


1. सूखा और बाढ़ जैसी जल सम्बन्धी आपदाएँ 1996 के बाद से दुगनी होती गयी हैं।
2. गत दशक में प्राकृतिक आपदाओं में 6 लाख 65 हजार लोगों की जानें गयीं।
3. जोखिमों में कमी को जल संसाधन प्रबन्धन का अनिवार्य और अविभाज्य अंग बनाया जाना चाहिए।

जल सकंट से निपटने के लिए भावी रणनीतिः


जल ही जीवन है और पानी की हर बूँद कीमती है, यह सर्वज्ञात है। हमारे शरीर का दो तिहाई अंश पानी ही है। आप भोजन के बगैर तो एक महीने तक रह सकते हैं लेकिन पानी के बिना मात्र 5-7 दिनोें तक ही।

जल की अनिवार्यता और अपरिहार्यता मनुष्य समेत सृष्टि के हर जीव के लिए है। पानी पर ही हमारा अस्तित्व है, अतः यह समस्या सम्पूर्ण विश्व की है और इसमें जो भी सकारात्मक प्रयास किए जाने हैं, उसमें हरेक आदमी की भागीदारी अनिवार्य है। पिछले 30 वर्षों में-स्टॉकहोम (1972) से रियो (1992) और जोहांसबर्ग (2002) तक के पृथ्वी सम्मेलनों में हर बार जल संकट मुद्दा रहा है लेकिन हमेशा उसे एक कोरम पूर्ति के रूप में लिया गया, गम्भीरता से उस पर बहस नहीं हुई। इस बार ‘जल वर्ष’ घोषित करके यूनेप (United Nations Environmental Programme) ने जो पहल की है, उस पर वैश्विक सरकारें ठोस कदम उठाएँगी, ऐसी आशा है क्योंकि यह हमारे भविष्य का भी प्रश्न है।

जनसंख्या तथा जल उपलब्धता के सन्दर्भ में भारत की स्थिति

 

वर्ष

जनसंख्या (करोड़)

जल उपलब्धता (घन मीटर प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति)

1947

40

5000

2000

100

2000

2025

139

1500

2050

160

1000

 



सन 2050 में भारत की जनसंख्या को 1 अरब 60 करोड़ मानते हुए विभिन्न क्षेत्रों में जल की सम्भावित खपत (घन किलोमीटर या अरब घन मीटर)

 

क्षेत्र

खपत

सतही जल

भू-जल

योग

कृषि

463

344

807

घरेलू

65

46

111

उद्योग

57

24

81

ऊर्जा

56

14

70

अन्य

91

-

91

योग

732

428

1160

 



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