बिहार

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संकट में फल्‍गू का अस्तित्‍व
Posted on 13 Aug, 2010 09:51 AM
माता सीता के शाप से शापित होने के बावजूद पौराणिक काल से पितरों को मोक्ष दिलाती आ रही गया की पवित्र फल्गू नदी का वजूद आज ख़तरे में है। देश-विदेश से लाखों लोग प्रति वर्ष इसे नमन करने आते हैं। यह नदी मगध के लोगों की जीवनरेखा है, लेकिन विगत कुछ वर्षों से इसमें शहर भर का कूड़ा-कचरा फेंका जा रहा है। यही नहीं, 15 बड़े नालों का गंदा पानी भी इसे प्रदूषित कर रहा है, जिसके चलते भू-क्षरण, भूगर्भ जल के व
वार फॉर वाटर 31 राज्यों में शुरू होगा
Posted on 09 Aug, 2010 01:45 PM
नई दिल्ली, झांसी में कहीं कुल जनसंख्या के हिसाब से पानी कम है तो कानपुर के एक हिस्से में पानी को क्रोमियम दूषित कर रहा है। उन्नाव का एक इलाका फ्लोराइड के जहर से जूझ रहा है तो गाजियाबाद में पानी को कीटनाशक प्रदूषित कर रहे हैं।
इस साल के सूखे में दक्षिण बिहार के लोगों की मदद करें
Posted on 06 Aug, 2010 12:26 PM पानी की समस्या पर काम करने वाले विभिन्न स्वयंसेवी संगठन, संस्थाएँ एवं सरकार के विभाग इस विषम परिस्थिति में राहत कार्य के रूप में जलाशयों के जीर्णोद्धार के काम को ऊच्च प्राथमिकता दे कर तत्परतापूर्वक अभी से लग जाएँ। इससे सूखे के दौरान लोगों को काम भी मिल जायेगा और आगे कम वर्षा के समय इन जलाशयों से सिंचाई तो होगी ही साथ ही भूमिगत जल के संभरण एवं पेयजल की समस्या का भी दीर्घकालिक समाधान होगा। ऐतिहासिक रूप से विख्यात मगध प्रमण्डल (पूर्व में गया जिला) बिहार का दक्षिणी भाग है। मगध प्रमण्डल में चार जिले गया, औरंगाबाद, जहानाबाद तथा नवादा हैं। मगध क्षेत्र की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक गौरव और इसके अविछिन्न इतिहास का आधार इस इलाके की अद्भुत सिंचाई व्यवस्था रही है। फल्गु , दरधा, सकरी, किउल, पुनपुन और सोन मगध क्षेत्र की मुख्य नदियाँ हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहमान ये नदियाँ गंगा में मिलती हैं। ‘बराबर पहाड़’ के बाद फल्गु कई शाखाओं में बँट कर बाढ़ - मोकामा के टाल में समा जाती है। बौद्धकाल से ही मगध वासियों ने सामुदायिक श्रम से फल्गु, पुनपुन आदि इन नदियों से सैंकडों छोटी-छोटी शाखायें निकालीं, जिससे बरसात में पानी कोसों दूर खेतों तक पंहुचाया जा सके।

सामुदायिक श्रम से वाटर हार्वेस्टिंग की एक अद्भुत विधा और तकनीक का विकास सह्स्राब्दियों से इस इलाके में होता रहा, जो ब्रिटिश शासन तक चालू रहा।
पर्यावरण का रखवाला जय श्रीराम
Posted on 19 Jul, 2010 02:40 PM
बख्तियारपुर (पटना) निवासी आरक्षी जितेंद्र शर्मा उ़र्फ जय श्रीराम उन चंद पुलिसकर्मियों में शामिल हैं, जिनके कार्य से प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह सकता। पटना के यातायात थाने में तैनात बिहार पुलिस का यह जवान एक अलग कार्य संस्कृति और जीवनशैली के लिए मशहूर हो रहा है। जुनून की सीमा से काफी आगे जाकर जय श्रीराम अब तक तीस हजार पेड़ लगा चुका है। हैरानी की बात यह है कि इस आरक्षी ने कभी किसी से कोई आर्
परंपरागत सिंचाई ही है समाधान
Posted on 16 Jul, 2010 02:17 PM
पूर्वजों ने वर्षा के जल को संग्रहित करके भारत में कृषि के उत्कृष्ट प्रतिमान स्थापित किए थे। इससे जहां पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जाती थी वहीं भूजल को भी स्थिर रखने में मदद मिलती थी। देश में आए दिन जो सूखे की समस्या रहती है, उससे निपटने के लिए हमें एक बार फिर सिंचाई के परंपरागत साधनों पर ध्यान देना होगा। गत वर्ष सूखे के कारण करीब 60 प्रतिशत से अधिक चावल की पैदावार में कमी आने वाली
जल जो न होता तो ये जग जाता जल
Posted on 08 Jul, 2010 11:11 AM

कहते हैं कि पानी है तो जीवन है, लेकिन इन दिनों पानी की कमी से सारी दुनिया तबाह है। फिर भी कुछ लोग हैं जो पानी को बचाकर अपने ओर अपने आसपास के जीवन को बचाने में लगे हुए हैं उनके इन सकारात्मक प्रयासों ने दुनिया को एक नई दिशा दी है। कौन हैं ये लोग और कैसे बचा रहे हैं जल। पानी बचाने वाले इन पानीदार लोगों पर एक खास प्रस्तुतिकरीब बीस साल पहले कार्टूनिस्ट देवेंद्र ने एक कार्टून बनाया था जिसमें गर्मी के इस मौसम में एक महिला दोनों हाथों से नल निचोड़ रही है और तब जाकर उसमें से दो बूंद पानी गिरता है। सच पूछा जाए तो या कार्टून भी अब पुराना पड़ गया है। अब जल संकट के लिए गर्मी का इंतजार नहीं करना पड़ता। ठिठुराती ठंड में भी पानी का संकट सामने खड़ा मिल जाएगा। प्रसिद्ध पर्यावरणविद अनुपम मिश्र के शब्दों में कहें तो ‘कहा नहीं जा सकता कि देश में राजनीति का स्तर गिरा है या जल का स्तर।

नील का धब्बा
Posted on 22 Jun, 2010 11:30 AM हरा, पीला, लाल, सफेद, काला- ये सभी रंग प्रकृति में आसानी से मिल जाते हैं। पर नीला रंग मिलना सबसे मुश्किल रहा है। इसीलिए नीला रंग दे सकने वाले पौधे पर सबकी नजर टिक गई थी। व्यापारी की भी और शोषण करने वालों की भी। मारा गया किसान। नील के पौधे की खेती बिहार के चंपारण क्षेत्र में होती रही है। दुनिया की मांग का एक बड़ा भाग चंपारण से पैदा होता था और इसका सारा लाभ नील की खेती करने वाले किसानों को नहीं, बल्
पानी के प्रति सचेत करने को जल एवं कृषि गोष्ठी का आयोजन
Posted on 16 Apr, 2010 12:30 PM
पश्चिम चम्पारण के जिला मुख्यालय बेतिया से 20 किमी सुदूर दियारा क्षेत्र के तेल्हुआ बीन टोली में जल एवं कृषि की समस्याओं पर गोष्ठी आयोजित का गयी। कार्यक्रम मेघपाईन अभियान की पहल पर किया गया। 8 अप्रैल 2010 को हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता पंचायत राज दक्षिण तेल्हुआ की मुखिया श्री मति लालझरी देवी ने की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सीडीपीओ कृष्ण मुखर्जी ने कहा कि पानी की समस्या हमारे देश के लिए ही नहीं
पानी में जहर
Posted on 02 Apr, 2010 10:06 AM गया से महज़ चौंसठ किलोमीटर के फ़ासले पर है आमस प्रखंड का गांव भूपनगर, जहां के युवक इस बार भी अपनी शादी का सपना संजोए ही रह गए. कोई उनसे विवाह को राज़ी न हुआ. वजह है उनकी विकलांगता. इनके हाथ-पैर आड़े-तिरछे हैं, दांत झड़ चुके हैं, हड्डियां ऐंठ गई हैं. जवानी में ही लोग बूढ़े हो गये हैं. गांव के लोग बीमारी का नाम बताते हैं- फ्लोरोसिस.
बचपन में बुढ़ापा
सूखे में हराः पानी किसने भरा?
Posted on 14 Mar, 2010 08:15 AM सोन कमांड एरिया के बीच भी अनेक गांवों की सिंचाई दो हजार बरस पुरानी आहर-पईन प्रणाली से ही होती है। इन इलाकों का हाल मिश्रित रहा। जहां मरम्मत, देखरेख का काम ठीक से हुआ है, वहां तो सिंचाई हो गई। बाकी जगहों में फसल बरबाद भी हुई है।राजनैतिक समाज सेवियों के दुर्भाग्य से सूखा भी इस साल ठीक से नहीं हुआ। न जिले की दृष्टि से, न चुनाव क्षेत्र की दृष्टि से, न पार्टियों के जनाधार की दृष्टि से। आंकड़ेबाज औसत-प्रेमी वैज्ञानिक-इंजीनियर, पदाधिकारियों की दृष्टि से भी सूखा ठीक-ठाक नहीं रहा। बेतरतीब ही सही, वर्षा हो भी गई, कुछ इलाकों में फसल भी हो गई, कमजोर ही सही। बड़ा बैराज, जैसे- सोन नद पर बना इन्द्रपुरी बैराज और छोटे बैराज (अनेक) बड़े इलाके में फसल बचाने में सहायक हुए। बड़े बैराज ने सोन पानी के बंटवारे को लेकर
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