Posted on 11 Nov, 2014 01:03 PMवर्ष 1966 का भयानक सूखा-जब अकाल की काली छाया ने पूरे दक्षिण बिहार को अपने लपेट में ले लिया था और शुष्कप्राण धरती पर कंकाल ही कंकाल नजर आने लगे थे...
Posted on 16 Aug, 2014 10:17 PMपराजनीन (ट्रांसजैनिक) फसलें- प्रकृति में अनेक ऐसे पादप है, जिन पर संक्रमण व रसायनों आदि का असर न के बराबर होता है, परंतु वे आर्थिक दृष्टि से अनुपयोगी होते हैं। वहीं दूसरी तरफ वे फसलें जिनसे दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले तमाम उत्पाद प्राप्त होते हैं, पर संक्रमण इतनी तेज से होता है कि उत्पादकता शून्य तक हो जाती है। जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा वे जींस अनुपयोगी पौधों को संक्रमणरोधी बनाते हैं को
Posted on 10 Aug, 2014 05:35 PMआपदा से बिहार का रिश्ता युगों पुराना है। राज्य में नदियों का जाल है। बाढ़ और उससे आने वाली तबाही यहां की पहचान है। अब भी राज्य के बहुत बड़े शहरी इलाकों में लोग बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए बच्चे मकानों में रहते हैं। गंगा की सहायक नदियां शोक का प्रतीक बन गई है। प्राकृतिक आपदाओं का दायरा बहुत बड़ा है। हर मौसम के साथ इसके खतरों की प्रकृति भी बदलती है, मगर किसी का पीछा नहीं छोड़ती। ब