मोबाइल पत्रकारिता कार्यशाला,आज ही करे आवेदन
सिखाने वाले नवीन कुमार: संस्थापक, आर्टिकल 19 इंडिया आजतक, एबीपी न्यूज़, न्यूज़ 24, इंडिया टीवी, सहारा समय, न्यूज़ एक्सप्रेस समेत कई संस्थानों में अहम पदों पर रहे, प्रोफ़ेसर करुणाशंकर कुसुमा: मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर में कन्वर्जेंट जर्नलिज़्म के हेड और मोबाइल पत्रकारिता के एक्सपर्ट
मोबाइल पत्रकारिता कार्यशाला
बांग्लादेशी विस्थापितों का पुनर्वासघर है भारत
बांग्लादेशियों में बाढ़ तथा शाकाहारी भोजन का भी भारत जैसा सम्मान नहीं है। शायद इसलिए प्रकृति के मूल स्वरूप को मानवता का पोषक मानने में भारतीय दृष्टि से भी भिन्‍नता है। फिर भी आहार-विहार, आचार-विचार, रहन-सहन इस सब में बहुत दूरी नहीं है। इसलिए बांग्लादेशी भी यूरोप में जाकर अपने को भारतीय बोलते हैं।
बांग्लादेशी विस्थापितों का पुनर्वासघर है भारत (Photo-Norad)
विस्थापन व विश्वयुद्ध से बचाव हेतु विश्वशांति जल-साक्षरता यात्रा : नेपाल
हिन्दुकुश के आठ देशों में से दो देश पाकिस्तान व चीन, इसके संचालन के लिए भारत में इसका मुख्यालय नहीं बनने देना चाहते हैं। इसलिए यह संगठन उतना प्रभावशाली नहीं रहा। इस काम को गति देने के लिए हिन्दुकुश हिमालय यात्रा आयोजित करना आवश्यक है ।
विस्थापन व विश्वयुद्ध से बचाव हेतु विश्वशांति जल-साक्षरता यात्रा : नेपाल
पाकिस्तान में पर्यावरण संकट 
पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश है। लेकिन यहां कुदरत की हिफाज़त करने की चिंता भारत जैसी दिखाई नहीं देती।  इस देश में भी कमोबेश चीन जैसी स्थिति नजर आती है। आजादी के बाद यहां भी भौतिक व आर्थिक विकास तो नजर आता है, जिसके कारण प्रकृति (कुदरत) में बिगाड़ बहुत तेजी से नजर आ रहा है। मैंने अपनी यात्राओं के दौरान इस देश में जलवायु परिवर्तन का बहुत बिगाड़ देखा है।
पाकिस्तान में  जलवायु परिवर्तन के कारण ये विनाशकारी घटनाएं अधिक से अधिक आम होती जा रही हैं
मध्य एशिया में विश्वशांति जलयात्रा
मध्य एशिया, अफ्रीका व यूरोप में विश्व जल शांति यात्रा का पहला चरण सम्पन्न हुआ है। इसमें स्पष्ट रूप में समझ आया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही विस्थापन बढ़ रहा है। यही लड़ाई झगड़ों का मूल कारण बन रही हैं। इस यात्रा का लक्ष्य एशिया-अफ्रीका के देशों में जाकर, उनको मजबूरी में विस्थापन (उजाड़) कम करने हेतु समझना-समझाना और उन्हें जल सहेजने में लगाना है। जिससे इनके पास हमेशा जल उपलब्ध रहे।
मध्य एशिया में विश्वशांति जलयात्रा, (Pc-Ap news)
हॉकी वर्ल्ड कप में प्रयोग हो रहा हवा से बना पानी, ग्रामीण क्षेत्रों में कितना होगा असरदार
इस साल भारत में आयोजित पुरुष हॉकी विश्व कप में ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि  भुवनेश्वर और राउरकेला के स्टेडियमों में दर्शक हवा से बने पानी का लुत्फ उठा रहे है। हॉकी स्टेडियम में इंस्टाल हुई यह शानदार तकनीक न केवल कीमती भूजल को बचा रही है बल्कि हवा को भी साफ कर रही है।
हवा से बना पानी, ग्रामीण क्षेत्रों में कितना होगा असरदार, (PC:-twitter Hockey India))
हिंडन रक्षा को अभिष्ट गुप्ता की लड़ाई ‘स्पेशल एनवायरनमेंट सर्विलांस टास्क फोर्स’ तक आई
हिंडन के नाम पर खूब यात्राएं हुई हैं। हिंडन के नाम पर कई-कई संस्थाएं काम कर रही हैं। हिंडन की ज़मीन बेचने पर सरकारी अमला आंखें मूंदे पड़ा है। हिंडन के नाम पर अपार्टमेंट हैं। प्रतिष्ठान हैं, पत्रिका है, पार्क हैं। हिंडन के कइयों मुकदमों में आदेश दर आदेश हैं, बजट है। पर हालात यह है कि हिंडन दिन-प्रतिदिन बीमार होती जा रही है और लगभग मरने के कगार पर पहुंच चुकी है। हिंडन, आज उत्तर प्रदेश की सबसे अधिक और भारत का दूसरी सबसे अधिक प्रदूषित नदी है।
फोटो - विक्रांत शर्मा
सिंधु जल संधि विवाद,भारत ने पाकिस्तान को नोटिस जारी किया
सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों को दो भागों में विभाजित किया गया। भारत को पूर्वी नदियों के पानी और पश्चिमी नदियों के पाकिस्तान को उपयोग करने का पूर्ण अधिकार दिया गया। पूर्वी नदियों से पानी के नुकसान के लिए पाकिस्तान को मुआवजा दिया गया था
सिंधु जल संधि विवाद,भारत ने पाकिस्तान को नोटिस जारी किया
फिलिस्तीन को इजराइली प्रौद्योगिकी ने बेपानी बनाया है
घर खाली, पर दिल भरा हुआ, रेगिस्तानी गाजा क्षेत्र के घर में जाकर उनकी बकरी, भेड़, ऊंट सभी की मिश्रित सुगन्ध मेरे जैसे किसानी करने वाले वैद्य को मोह लेती है। मेरी पढ़ाई के दिनों में भेषज कार्यशाला जैसी औषधि सुगंध से भरा घर है, मेरा विद्यार्थी जीवन का मुझे यहां स्मरण आ गया
फिलिस्तीनी क्षेत्रों में पड़ा सूखा (source -flicker india waterportal)
Heavy metals poison Veeranam lake in Tamil Nadu
This study found large deposits of heavy metals in the tissues and organs of water birds, crabs and fish inhabiting the lake indicating heavy metal contamination of the lake waters.
A view of the Veeranam lake in Tamil Nadu (Image Source: Giri9703 via Wikimedia Commons)
नदी के नाम पर बना देश जॉर्डन
जॉर्डन नदी के नाम पर बना देश जॉर्डन। यह अपनी नदी का ही पानी नहीं ले पाया है। 26 फरवरी 2015 को इजराइल समझौते के बाद कुछ जल जॉर्डन नदी व देश को मिला है। ऐसा एक समझौता, इजराइल व जॉर्डन सरकार के बीच हुआ। जॉर्डन प्राकृतिक रूप से इजराइल और फिलिस्तीन की अपेक्षा नदी के कारण समृद्ध राष्ट्र है। लेकिन पड़ोसी देश इजराइल की अनैतिकता और अन्याय ने जॉर्डन नदी की हत्या कर दी है। नदी और जॉर्डन देश को जल ही नहीं दिया व सारा जल अपने कब्जे में कर लिया। लम्बी लड़ाई के बाद एक आधा-अधूरा समझौता तो हुआ, लेकिन उसके अनुसार ठीक से जलापूर्ति के लिए जॉर्डन को बहुत कोशिश करनी पड़ी ही है।
स्वाल यात्रा
इजराइल : जल अनैतिकता और अन्याय ही विस्थापन, विश्वयुद्ध को बुला रहा है
अनैतिकता और अन्याय करके जल प्रसिद्धि प्राप्त करने वाला देश इजराइल है। इसने जॉर्डन नदी के जल पर, जॉर्डन देश के साथ जल समझौता तो 26 फरवरी 2015 को किया है। इससे पहले तो अपने पड़ोसी देशों के जल पर कब्जा किए ही था। उसी में कुछ फेर-बदल करके अभी दबाव का समझौता जॉर्डन से कर लिया है। फिलिस्तीन अब भी इजराइल से ही जल खरीद कर जीता है। फिलिस्तीनी इसके डर से लाचार-बेकार बनकर अपना देश छोड़ने हेतु मजबूर हैं। जॉर्डन और फिलिस्तीन के विस्थापन का मूल कारण इजराइल की तकनीक है। यह इसे दुनिया को बेचकर पैसे वाला बन गया और फिर पड़ोसी देशों की जॉर्डन नदी के जल पर ही पूरा कब्जा करके दुनिया में अपने आप पानीदार बन गया। जॉर्डन और फिलिस्तीन को बेपानी बनाकर उन्हीं का जल अपने मनमाने भाव पर बेचकर पैसे वाला भी बना है। पैसा और प्रसिद्धि भी पा ली है। यह सब अनैतिक तकनीक से मिली है। इसकी अनैतिकता ने स्वयं को स्वयंभू बना लिया है। पड़ोसियों को उजाड़ दिया है।
स्वाल यात्रा
दक्षिण कोरिया में बढ़ रहा जल का निजीकरण
दक्षिण कोरिया ही जल साक्षरता यात्रा विश्व युद्ध से बचने की शुरुआत कराने का केंद्र बना। यहाँ मैं दुनिया भर के जल कर्मियों, जल वैज्ञानिकों, प्रबंधकों, इंजीनियरों, नेताओं, व्यापारियों, शिक्षकों, विद्यार्थियों आदि से मिला। सभी ने तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका प्रकट की। इससे बचने की शुरुआत तत्काल करने का निर्णय भी यहीं हुआ।
स्वाल नदी यात्रा की तस्वीरें
विस्थापन व युद्ध से बचाव हेतु विश्वशांति जलयात्रा : चीन
भारत अपनी प्रकृति रक्षा की आस्था से शांति कायम करने की दिशा पकड़ सकता है। लेकिन वर्तमान में इस दिशा में आगे बढ़ने की संभावना नहीं है। क्योंकि जिस अच्छे संस्कार हेतु हम दुनिया में जाने जाते थे, उन्हें अब अपना नहीं रहे हैं। चीन अपनी पूंजी बढ़ाने वाला देश व दुनिया का नेता बनना चाहता है। इसलिए यहां का भौतिक विकास बहुत तेजी से बढ़ा है। इससे यहां का प्राकृतिक विनाश बहुत हुआ है। परिणामस्वरूप इसी देश से कोविड-19 महामारी फैलनी शुरू हुई है। यहीं से वर्ष 2002 में भी ऐसे ही वायरस ने कनाडा, अमेरिका आदि देशों में कहर मचाया था।
चीन अतिक्रमणकारी राष्ट्र है। अफ्रीका-मध्य-पश्चिम-एशिया के बहुत से देशों के भू-जल भंडारों पर जल समझौता के तहत या लीज लेकर अपने जल बाजार हेतु कब्जा कर रहा है। इस देश ने भविष्य में जल व्यापार की नीति बनाकर, जल को तेल और सोने की तरह पूंजी मानकर सुरक्षित-संरक्षित कर लिया है।
ब्रह्मपुत्र नदी
भारत में आने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की कई सहायक एवं उप-नदियों पर बांध बनाकर जल के बड़े भंडार बना लिए हैं। इन भंडारों को युद्ध और व्यापार व उद्योगों में काम लेने का पूरा मन बना लिया है। भारत के लिए ये हाईड्रोजन बम की तरह उपयोग किये जा सकते हैं।
विकास और पूंजी का लालची राष्ट्र दुनिया का सामरिक, व्यापारिक, आर्थिक सभी रूप में अगुवा बनने की चाह रखता है। इसीलिए वायरस की महामारी पैदा कर रहा है। यह विकास मॉडल अच्छा और टिकाऊ नहीं है। फिर भी भारत जैसे विकासशील देश विकसित बनने हेतु चीन विकास, मॉडल को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।
खैर मैंने भी भारत से अपनी यात्रा अपने पड़ोसी देश चीन से ही आरंभ की। कोविड-19 के कारण शांति केवल ऊपर से दिखाई देती है। यह एक विशेष महामारी का भय है। जीने की चाह हेतु जलवायु को स्वस्थ रखना जब समझ आयेगा, तभी से ग्रस्त इंसान भी लड़ने की तैयारी कर लेगा। यही क्षण “मरता सब कुछ करता” बना देता है। यही शोषित और शोषक के बीच युद्ध करवाता है। तीसरा विश्वयुद्ध इसीलिए शुरू होगा। इससे बचने की पहल भारत ने ही शुरू की है। यह विश्वयुद्ध अभी तक के युद्धों से बिल्कुल भिन्‍न है। इसलिए इसे रोकने हेतु छोटी-छोटी पहल करने की जरूरत है।
मैं, 9 अप्रैल 2015 को ही डॉ. एसएन सुब्बाराव तथा देश भर के गांधीवादी और विविध सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ गांधी शांति प्रतिष्ठान में विश्व शांति के लिए जल हेतु सद्भावना बनाने के विषय पर बातचीत करके शंघाई-चीन हेतु प्रस्थान किया।
अगले दिन प्रातः 8 बजे शंघाई पहुंचे। यहां साउथ-नॉर्थ नदी के अनुभवों को जानने के लिए कुछ लोगों से बातचीत करके शंघाई शहर में घूमे। इस शहर को देखकर लगा कि, यहां किसी को प्रकृति की चिंता नहीं है। साझे भविष्य को लेकर लोगों में चिन्तन दिखाई नहीं दिया। सिर्फ व सिर्फ पूंजी के लिए काम होता है। लाभ की विश्व प्रतियोगिता में सबसे आगे निकलकर विश्व नेता बनने का ही इनका लक्ष्य है।
अब सब जगह साम्यवादी और पूंजीवादी ही दिखाई देते हैं। समाजवाद अर्थात साझी सुरक्षा, जिसे भारतीय भाषा में शुभ कहते हैं; पहले उसके लिए ही काम करते थे।
पहले सभी की भलाई हेतु विचारते और काम करते थे, अब इनके जीवन में साझी सुरक्षा की चिंता नहीं है। अब केवल लाभ प्रतियोगिता के जाल में फंसे हुए हैं।
लाभ कमाने में चीन दुनिया में सबसे आगे निकलना चाहता है। अब चीन पूरी दुनिया के भू-जल भंडार खरीद रहा है। जमीन खरीद रहा है। यह भौतिक जगत में रावण की तरह चीन को "सोने की लंका” बनाने के स्वप्न देख रहा है। कोरोना वायरस ने इसकी पोल खोल दी है। अब सारी दुनिया इसके रावणीय काम के लिए थू-थू कर रही है।
एयरपोर्ट पर उतरते हुए लॉन व पार्कों में केवल सरसों के फूल दिखाई दिये। जब हमने यह पूछा कि, यहां इसको ही क्यों पैदा करते हैं, तो कहा कि ये देखने में सुन्दर लगते हैं और इसके तेल का भी उपयोग करते हैं। यहां हर वस्तु के उत्पादन में केवल लाभ की ही गणना करते हैं। इसलिए यहां सभी काम केवल लाभ के लिए होते हैं। मैंने यह बात कई लोगों से सुनी।
यहां का विकास दुनिया के दूसरे शहरों के विकास से थोड़ा अलग है। यहां के नदी-नालों में सफाई दिखती है! लेकिन वातावरण में सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। ये प्राकृतिक सौंदर्य में भी केवल कमाई ही देखते हैं। यहां के औद्योगिक क्षेत्रों में हरियाली दिखाई देती है। देखने में भोजन और पीने में पानी स्वादिष्ट ही लगा। यहां की महिलाएं अंग्रेजी में बात करती हैं और पुरुषों की अपेक्षा थोड़ी ज्यादा घमंडी होती हैं, यहां के पुरुष अपेक्षाकृत विनम्र हैं।
आज का पूरा दिन शंघाई के होटल में मैनेजर, कार्यकर्ताओं व शहर बाजार व विकास में लगे इंजीनियरों के साथ बातचीत करने में ही बीता। यदि संक्षेप में कहें तो यहां प्रकृति के प्रति कोई आस्था या पर्यावरण के रक्षण का विचार दिखाई नहीं दिया। ये दुनिया में जलवायु परिवर्तन संकट पैदा करके स्वयं भी नहीं बचेंगे। इन्होंने कोविड-19 में भी दुनिया के अर्थतंत्र को बिगाड़ने वाली लॉकडाउन की दिखावटी चाल चली है।
राजेन्द्र सिंह की स्वाल नदी यात्रा
Blue-green infrastructure solutions for resilient cities
A 10-city study on the impacts of urbanization on natural infrastructure in India
Study indicates that blue-green spaces in core-city and peripheral areas are differentially impacted by the growing urban footprint (Image: Emmanuel Dyan)
Can rice residues be turned into wealth?
Institutional support, monetary and proper implementation of laws along with policy framework can solve this issue, says a state-of-the-art review in crop residue burning in India
A controlled burn on long-term conservation agriculture trials (Image: CIMMYT)
Preventing floods through grassland conservation
This study found that replacing natural grasslands and forests by exotic species increased the likelihood of flooding during extreme rainfall events in the Nilgiris.
Grasslands interspersed with pockets of montane Shola forests in the Nilgiris, Tamil Nadu (Image Source: Anand Osuri via Wikimedia Commons)
Local recycling of moisture via wetlands and forests high in North-East India
Floods in Brahmaputra greatly increases the surficial water availability in low lying floodplains and wetlands, promoting enhanced recycling via evaporation.
The region with its vast wetlands and forest cover is akin to the Amazon (Image: Ashwin Kumar, Wikimedia Commons)
How to save Joshimath?
The sinking town points to the climate change risks faced in vulnerable areas such as the Himalayas
Warnings were being given for some decades that Joshimath would sink one day (Image: Vaibhav, Wikimedia Commons)
पानी-पर्यावरण मास्टर - मास्टर मोहन कांडपाल 
रिस्कन नदी 40 किमी लंबी है। अब तक बने 5000 से अधिक खावों का प्रभाव कहीं-कहीं दिखाई देने लगा है। लेकिन एक नदी को जिंदा होने के लिए पर्याप्त नहीं है। रिस्कन नदी को बचाने हेतु उनके द्वारा माननीय प्रधानमंत्री महोदय, माननीय जल शक्ति मंत्री भारत सरकार व माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड से भी निवेदन किया गया है।
एक खाव बनती हुई
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