Wastewater treatment has to be feasible and financially viable in the long run. Understanding standards and choosing the right one depending on proposed uses of wastewater can greatly help in achieving that.
ग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो तब होती है जब पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और जल वाष्प जैसी कुछ गैसें सूर्य से आने वाली गर्मी को रोक लेती हैं, जिससे ग्रह जीवन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त गर्म रहता है। जीवाश्म ईंधन जलाने, वनों की कटाई और कृषि जैसी मानवीय गतिविधियों ने इन गैसों की सांद्रता को बढ़ा दिया है. जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि हुई है।
केरल के वायनाड में कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया, जिसकी शायद ही कभी ने कल्पना की हों। वायनाड में आए भूस्खलन में कई 400 से अधिक लोगों की जान चली गई। वायनाड में जिस तरफ नजर जा रही है। उस तरफ बस तबाही का खौफनाक मंजर दिख रहा है। इलाके के ज्यादातर घर, इमारतें, स्कूल अब मलबे के ढेर में तब्दील हो चुके हैं। भूस्खलन में कई घर उजड़ गए, यह प्रलय नहीं है, तो और क्या है?
मानें या न मानें एक क्रेडिट कार्ड जितना माइक्रोप्लास्टिक हर सप्ताह इंसान के शरीर में जा रहा है। विभिन्न अध्ययन से यह साबित हो रहा है कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण का खतरनाक दुष्चक्र जीवित लोगों पर भयानक असर डाल रहा है। फिलहाल के कई अध्ययन बताते हैं कि इंसानी दिमाग सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले अंगों में है।
पैसिफिक इंस्टिट्यूट की वार्षिक रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में पानी के लिए हिंसक घटनाएं बढ़ रही हैं। पूरी दुनिया से 2023 में जल से संबंधित हिंसा के 347 मामले सामने आए हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत में 25 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि 2022 में ऐसे सिर्फ 10 मामले थे। पानी के लिए हिंसा के बढ़ते मामलों पर रिपोर्ट के महत्वपूर्ण अंश
आइए एक छोटा सा गणित करें कि क्या धरती पर सबके लिए पानी है। पृथ्वी का लगभग 71% भाग जल से घिरा हुआ है किन्तु, इसका 97% जल खारा होने के कारण पीने योग्य नहीं है शेष बचे हुए 3% जल में से (जो कि पीने योग्य है), 2% हिमनद (ग्लेशियर) के रूप में है और इस प्रकार जलमंडल में उपलब्ध समस्त जल की केवल 1% से भी कम मात्रा ही पीने योग्य है जो कि सतही एवं भूजल के रूप में नदियों, झरनों, झीलों, तालाबों, कुओं आदि के रूप में उपलब्ध है। और यदि इस उपलब्ध जल को पृथ्वी में उपस्थित कुल आबादी (8 बिलियन) में समान रूप से बाँटा जाये तो जल की उपलब्धता 7,800 घनमीटर/व्यक्ति/वर्ष निर्धारित की जा सकती है जो कि एक जल समृद्ध श्रेणी का उदाहरण है। यानी धरती पर सबके लिए पानी है।
नोसोकॉमियल संक्रमण यानी अस्पतालजनित संक्रमण विश्व में सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण चुनौती है। इस गुप्त खतरे से भरती होने से पहले अथवा उस समय नहीं, बल्कि भरती रहने और इलाज की प्रक्रिया के दौरान संक्रमित होता है। गंभीर रोगों के इलाज के लिए अस्पताल तथा अति गंभीर स्थिति में आई सी यू यानी गहन चिकित्सा कक्ष में भरती होना पड़ता है। इसी दौरान कभी-कभी रोगी नोसोकोमियल संक्रमणों की चपेट में आ जाते हैं।
लखनऊ में “प्राकृतिक खेती के विज्ञान पर क्षेत्रीय परामर्श कार्यक्रम” हुआ। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री के “धरती मां को रसायनों से बचाने” के स्वप्न को पूरा करते हुए हम पूरी कोशिश करेंगे कि आने वाले समय में किसान रसायन मुक्त खेती करें। कार्यक्रम की पूरी खबर यहां पढ़ें
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में संकटग्रस्त एवं मृतप्राय नदियों को पुनजीर्वित और संरक्षित करने का अभियान चल रहा है। कुकरैल नदी की दशा सुधारने की पहल व्यापक चर्चा में है। इसी क्रम में पूर्वी उत्तर प्रदेश की भैंसही नदी को पुनः जीवन देने के लिए शासन से वृहद कार्ययोजना तैयार की जा रही है। इससे नदी को जहां प्राकृतिक स्वरूप मिलेगा, वहीं नदी भी अतिक्रमण मुक्त होगी।
A recent study from a low income setting in Delhi found that open drains, stored water and poor garbage management practices attracted dengue spreading mosquitoes in Delhi slums. However, community awareness and preventive steps helped to reduce dengue cases significantly.
नाइट्रोजन प्रदूषण के बढ़ते खतरे को देखते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि इससे निजात कैसे मिले। जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों में मृत क्षेत्र (कम ऑक्सीजन स्तर), मिट्टी का क्षरण और अम्लीकरण, वायु प्रदूषण (नाइट्रोजन ऑक्साइड, कण पदार्थ), जलवायु परिवर्तन (नाइट्रस ऑक्साइड एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है) के आदि प्रभावों कम कैसे किया जा सकता है। डॉ. रामानुज पाठक की एक टिप्पणी
हम न नदी को समझना चाहते हैं और ना ही बाढ़ को, नदी और बाढ़ के फायदे को तो भूल ही जाएं। बिहार सहित देश के अन्य भाग में आने वाली बाढ़ को एक सालाना आपदा के रूप में सत्ता और समाज दोनों ने स्वीकार कर लिया है और हम सब इसके आदी हो चुके हैं।
पहाड़ के समाज में हमेशा से नौलों-धारों के उपयोग और संरक्षण में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संवेदनशीलता इत्यादि का पूरा ध्यान रखा जाता रहा है। और हाँ, अधिकतर मामलों में ये धारे, पंदेरे, मगरे और नौले प्राकृतिक ही रहे हैं। हमें इनके संरक्षण की कोशिश करनी होगी। सरकार इनके गणना का एक बड़ा कार्यक्रम करने जा रही है। इस मसले पर पानी-पर्यावरण के प्रख्यात लेखक पंकज चतुर्वेदी की टिप्पणी