समृद्ध जैव संकेतक और जलीय जैविक-संपदा से परिपूर्ण अंडमान द्वीप समूह

जलीय जैविक-संपदा से परिपूर्ण अंडमान द्वीप समूह
जलीय जैविक-संपदा से परिपूर्ण अंडमान द्वीप समूह

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में 836 द्वीप, टापू और ज़मीन की सतह से उभरे चट्टानी अंश हैं जो 800 किमी. से अधिक तक फैले हुए हैं। वे वास्तव में समुद्री द्वीप हैं जो प्लीस्टोसीन हिमाच्छादन (रिप्ले और बीहलर, 1989) के दौरान कभी भी मुख्य भूभाग से नहीं जुड़े थे। इन द्वीपों का एशियाई महाद्वीप से पृथक्करण लगभग 100 मिलियन वर्ष पूर्व उत्तर मध्यजीवी (मेसोज़ोड़क) काल के दौरान भूगर्भीय परिवर्तन के कारण हुआ था। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह कभी एशियाई भूभाग का हिस्सा था, लेकिन फिर भूगर्भीय उथल-पुथल के कारण उत्तर मध्यजीवी (मेसोज़ोइक) काल के दौरान लगभग 100 मिलियन वर्ष पूर्व अलग हो गया था। इन द्वीपों की शृंखला वास्तव में जलमग्न पर्वत श्रृंखलाओं के उभरे हुए अंश हैं जो समुद्र तल से उत्तर से दक्षिण की ओर 6° व 45° और 13° व 30° उत्तर अक्षांश और 90° व 20' और 93° व 56° पूर्व देशांतर के बीच 8,249 कि.मी. तक फैली हैं।'

द्वीपों को आम तौर पर दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है, अर्थात अंडमान को निकोबार से दस डिग्री जलसन्धि (चैनल) अलग करता है जो लगभग 150 कि.मी. चौड़ा 400 फैदम (गहराई की माप) गहरा है। उच्चतम उठान उत्तरी अंडमान में सैडल पीक (732 मीटर) और ग्रेट निकोबार द्वीप में माउंट थुलियर (642 मीटर) है। निकोबार में 3000 से 3500 मि.मी. औसत वार्षिक वर्षा अंडमान से थोड़ी अधिक है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह उष्णकटिबंधीय गर्म और आर्द्र जलवायु और प्रचुर वर्षा के कारण सघन और प्रचुर प्राकृतिक सम्पदा से परिपूर्ण हैं। वनों को चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया है यानी उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदाबहार, उष्णकटिबंधीय अर्ध सदाबहार, नम उष्णकटिबंधीय पर्णपाती और तटीय और दलदली वन। इसके अलावा 13 विभिन्न प्रकार के वनों को वर्गीकृत किया गया है। 2019 की राज्य वन रिपोर्ट के अनुसार वन भूमि के अंतर्गत कुल भौगोलिक क्षेत्र 6,742.782 कि.मी. (81.74 प्रतिशत) है। अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में रेतीले समुद्र तटों से लेकर प्रवाल भित्तियों, मैंग्रोव और घने जंगलों वाले पहाड़ों जैसे प्राकृतिक वासों की असाधारण विविधता मौजूद है। भारत में सबसे कम अशांत और बेहतरीन ढंग से संरक्षित मैंग्रोव इस क्षेत्र में पाए जाते हैं। दुनिया में पाई जाने प्रचुरतम प्रवाल भित्तियों में अंडमान और निकोबार की प्रवाल भित्तियों का स्थान दूसरा है।। इन द्वीपों में विभिन्न प्रकार का प्राणी जीवन मौजूद है जिनमें से प्रवाल भित्तियों का पारिस्थितिकी तंत्र अन्यत्र पाये जाने वाले भारत-प्रशांत क्षेत्र शैल भित्तियों के समान बेहद नाजुक और अनूठा जीव तत्व है।

उपलब्ध सन्दर्भ सामग्री के अनुसार भारत में कुल 21,663 समुद्री प्रजातियाँ हैं जिनमें समुद्री शैवाल और मैंग्रोव शामिल हैं। इसमें से 20,444 जीव प्रजातियाँ भारतीय समुद्रों में मौजूद हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में प्रचुर समुद्री जैव विविधता (6624 प्रजातियाँ; 29.24%) है और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में 3736 प्रजातियाँ हैं। ऐसा अनुमान है कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में लगभग 1123 स्थानिक प्रजातियाँ हैं जिनमें से 871 प्रजातियाँ स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र से हैं जबकि 252 प्रजातियाँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र से हैं। कुल मिलाकर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के स्थलीय और समुद्री जीवों की 1200 प्रजातियों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की विभिन्न अनुसूचियों के तहत सूचीबद्ध किया गया है। उप-महाद्वीप से इन द्वीपों के लम्बे समय तक पृथक्करण के परिणामस्वरूप स्थलीय जीवों और वनस्पति प्रजातियों में उच्च स्थानिकता विकसित हुई। 10% से अधिक वनस्पति प्रजातियां स्थानिक हैं। अमेरुदंदी जीवों में उप-प्रजाति के स्तर में तितली की 70% से अधिक स्थानिकता है।

समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र

पोरिफेरा (छिद्र धारक जीव): ध्रुवीय से लेकर उष्ण कटिबंध क्षेत्रों तक स्पंज दुनिया भर में पाया जाता है। सबसे अधिक संख्या में स्पंज आमतौर पर चट्टानों जैसी दृढ़ सतहों पर पाए जाते हैं लेकिन कुछ स्पंज जड़ जैसे आधार द्वारा खुद को नरम तलछट से जोड़ सकते हैं। आमतौर पर स्पंज की अधिक प्रजातियाँ उथले जल में पाई जाती हैं और कुछ गहरे समुद्र में भी मिलती हैं। भारतीय जल क्षेत्र में स्पंज की कुल 512 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं। उनमें से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 130 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। भारतीय जल क्षेत्र से चूनेदार स्पंज की 12 प्रजातियों का पता चला था जो भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची III के तहत संरक्षित हैं।
साइफ़ोज़ोआः साइफोजोआ आमतौर पर असली जेलीफ़िश के रूप में जाना जाता है। स्काइफोज़ोन वर्गक निडारिया जाति (फायलम) के अंतर्गत आता है। हाल के अनुमानों के अनुसार, तीन कुलों (आर्डर) से संबंधित 191 प्रजातियाँ, और 20 गण (फैमिली) दर्ज किए गए (मोरंदिनी और कॉर्नेलियस, 2015)। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से कुल 5 साइफ्रोजोआ प्रजातियों का पता चला है।

एंथोजोआ (स्क्लेरेक्टिनियन प्रवाल): भारतीय जलक्षेत्र के स्क्लेरेक्टिनियन प्रवाल उष्णकटिबंधीय भित्तियों के अन्य भागों की तुलना में अत्यधिक विविध हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से 19 गणों (फैमिली) से संबंधित स्क्लेरेक्टिनियन प्रवाल की कुल 424 प्रजातियों का पता चला है। भित्तियों में मुख्य रूप से एक्रोपोरिडे, फेविइडे, पोरिटिडे, फंगिडे और एगारिसिडे गणों का प्रभुत्व है।

ऑक्टोकोरल्सः ऑक्टोकोरल्स को आमतौर पर एलसीओनेरियन कहा जाता है। ऑक्टोकोरेलिया कुल (आर्डर) में आठ पालिप स्पर्शक (टेंटेकल्स) होते हैं जबकि हार्ड कोरल में छह पालिप स्पर्शक होते हैं। इनमें नरम प्रवाल, सी फैन, सीव्हिप, सीपेन, ट्यूबकोरल और नीले प्रवाल आते हैं। भारत में ऑक्टोकोरल की कुल 413 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं जिनमें लगभग 229 प्रजातियाँ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के महाद्वीपीय शेल्फ क्षेत्र से हैं।'

प्लेटिहेल्मिन्थेसः फ्लैटवर्म, जिन्हें पॉलीक्लैड्स के रूप में भी जाना जाता है. प्लैटिहेल्मिन्थेस जाति के तहत पॉलीक्लाडिडा कुल और वर्ग टर्बेलारिया में आते हैं। ये विशेष रूप से स्वतंत्रजीवी समुद्री जीव हैं। प्रवाल भित्तियों के आम प्रवासी जीवों में से ये एक हैं। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण ने 10 वर्गों के तहत 47 प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया है जिसमें भारतीय जलक्षेत्र में 7 नए रिकॉर्ड स्थापित करना और 6 नई प्रजातियाँ शामिल है।

क्रस्टेशियाः क्रस्टेशियन आर्थोपोडा जाति से संबंधित हैं और इसमें समुद्री और स्थलीय दोनों प्रकार के जीव शामिल हैं। इन अत्यधिक विविध जीवों में आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण समूह जैसे केकड़े, झींगा और लॉबस्टर शामिल हैं। भारत में पायी जाने वाली क्रस्टेशियन जीवों की 2394 प्रजातियों में से समुद्री प्रजातियाँ (94. 85%) सबसे अधिक हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कुल 897 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं जिनमें से 388 प्रजातियाँ ब्रैच्युरन केकड़े की और 129 प्रजातियाँ झींगा की हैं।

मोलस्काः मोलस्का प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र में मुख्य रूप से मिश्रित जाति है और साथ ही आर्थोपोड्स के बाद यह जीव दुनिया में दूसरी सर्वाधिक प्रजातियों वाली जाति है। मोलस्का में पॉलीप्लाकोफोरा, मोनोप्लाकोफोरा, गैस्ट्रोपोडा, बिवाल्विया, स्कैफोपोडा और सेफलोपोडा जैसे छह समूह शामिल हैं। भारत में मोलस्का की 5070 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं ताजे जल में 183 प्रजातियाँ, स्थल में 1487 प्रजातियाँ और समुद्री जल में 3370 प्रजातियाँ।

एकाइनोडर्मेटा (होलोथुरोइडिया समुद्री खीरे): होलोधुरोइडिया को आमतौर पर समुद्री खीरे कहा जाता है। कृमि जैसे और आमतौर पर नरम शरीर वाले एकाइनोडर्म जीवों का प्रचुर और विविध समूह है। दुनिया भर में अब तक लगभग 1100 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं जबकि भारत में इसकी 179 प्रजातियाँ हैं।

ऐसिडियन्सः ऐसिडियेसिया एक समुद्री अमेरुदंडी जीव है जो उस वर्ग में आता है जिसे आमतौर पर ऐसिडियन या सी स्क्वर्ट के रूप में जाना जाता है। उन्हें उपजाति ट्यूनिकाटा और जाति कॉर्डेटा के तहत वर्गीकृत किया गया है जिसमें पृष्ठीय तंत्रिका डोरियों और नोटोकॉर्ड्स वाले सभी जीव शामिल हैं। भारतीय जल क्षेत्र से कुल 442 प्रजातियाँ दर्ज की गई जबकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से 57 ऐसिडियन्स दर्ज किए गए हैं।

मत्स्य वर्गः भारत की मत्स्यजीवन विविधता में कुल 2735 प्रजातियाँ शामिल हैं जिसमे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का योगदान 58% है। मत्स्यजीवन विविधता को संशोधित किया गया है जिसके अनुसार 36 कुलों (आर्डर) के तहत 177 गणों (फैमिली) से संबंधित कुल 1583 प्रजातियाँ हैं।"

स्तनपायीः समुद्री स्तनधारियों में तीन प्रमुख कुल (आर्डर) शामिल हैं, जैसे कि सीटेसिया (व्हेल, डॉल्फ़िन और पोरपोइज़), सिरेनिया (मैनेटेस और डुगोंग) और कार्निवोरा (समुद्री ऊदबिलाव, ध्रुवीय भालू और पिन्नीपेड)। भारतीय समुद्री जलक्षेत्र में स्तनधारियों की कुल 26 प्रजातियाँ पायी गयी हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह समुद्री स्तनधारियों की 7 प्रजातियों का प्राकृतिक वास है।

स्थलीय जीव

प्रोटोजोआः प्रदूषण और पर्यावर्णीय जैव निगरानी के लिए जैव संकेतक के रूप में प्रोटोजोआ के महत्व को लम्बे समय से मान्यता प्राप्त है, विशेष रूप से जल शोधन संयंत्रों और सक्रिय स्लज (कोच) प्रक्रियाओं में। भारत में प्रोटोजोआ की कुल 2577 प्रजातियाँ हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में प्रोटोजोआ की मात्र 9 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं।

मोलस्का (स्थलीय और फ्रेशवाटर-मीठा जल): वन पारिस्थितिकी तंत्र में स्थलीय घोंघे एक महत्वपूर्ण अवयव हैं। विश्व स्तर पर स्थलीय घोंघो की लगभग 35,000 प्रजातियाँ बताई गई हैं। इसके अलावा 30,000 से 60,000 अतिरिक्त प्रजातियों का वर्णन किया जाना शेष है। मोलस्का की लगभग 5070 प्रजातियाँ हैं जो भारत में पायी जाती हैं जिनमें से 283 प्रजातियाँ मीठे जल की हैं और 1487 प्रजातियाँ स्थलीय मोलस्का की हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मीठे जल और स्थलीय मोलस्का की कुल 152 प्रजातियाँ दर्ज की गयी हैं।

एनेलिडाः एनेलिड्स जिन्हें रिंग्ड वर्क्स या सेगमेंटेड वर्क्स (खण्डयुक्त कृमि) के रूप में जाना जाता है, एक बड़ी जाति (फाइलम) है, जिसमें रिंगवर्म केंचुआ और जोंक (बड एंड जेन्सेन, 2000) सहित 17,000 से अधिक मौजूदा प्रजातियां हैं। भारत में एनेलिड्स की 840 प्रजातियाँ पायी जाती हैं और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एनेलिड्स की 193 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं।

इन्सेक्टा: इन्सेक्टा वर्ग में शामिल कीट पृथ्वी पर सबसे कामयाब और विविध जीवों के रूप में जाने जाते हैं। इनका विकास डायनासोर की उत्पत्ति से पहले ही हो चुका था। इन जीवों ने भूमध्य रेखा से लेकर उत्तरी ध्रुव तक और समुद्र तल से लेकर सबसे ऊँचे पर्वतों के बर्फीले मैदानों तक, ज़मीन पर, हवा और जल में लगभग हर कल्पनीय प्रकार के वातावरण को अपनाया है और कुछ प्रजातियाँ समुद्र में भी पायी जाती हैं। कीट समूह की संरचना इंगित करती है कि सात कुलों (आर्डर) में अर्थात लेपिडोप्टेरा, कोलियोप्टेरा, हेमिप्टेरा, डिप्टेरा, हाइमनोप्टेरा, ऑर्थोप्टेरा और ओडोनाटा में इन जीवों का अधिकतम भाग, 93 प्रतिशत शामिल है जबकि थायसानोप्टेरा, न्यूरोप्टेरा, डिक्ट्योप्टेरा और दस अन्य कुलों में इनकी केवल 7 प्रतिशत प्रजातियाँ हैं।

लेपिडोप्टेरा (तितलियाँ और पतंगे): इस समूह में छोटे से लेकर बहुत बड़े आकार के कीट होते हैं जिन्हें आमतौर पर तितलियों और पतंगों के रूप में जाना जाता है। अब तक अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से तितलियों के 9 गणों (फैमिली) के अंतर्गत 125 जीन्स से संबंधित 305 प्रजातियों का पता चला है। इनमें से 155 प्रजातियाँ इन द्वीपों की स्थानिक हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से अब तक पतंगों के 37 गणों (फैमिली) के तहत 423 जीनस से संबंधित लगभग 622 प्रजातियाँ ज्ञात हैं।

ओडोनाटाः ये उभयचर कीट हैं जिन्हें आमतौर पर ड्रैगनफ्लाई या डैमसेलफ्लाई के नाम से जाना जाता है। इनके वयस्क उड़ने वाले बड़े शिकारी कीड़े हैं। इनका शरीर रंगीन, पंख पारदर्शी होते हैं और उड़ने की कला फुर्तीली और लाजवाब होती है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से अब तक 11 गणों (फैमिली) के अंतर्गत 39 जीनस से संबंधित 72 प्रजातियों का पता चला है। इन द्वीपों की केवल ।। प्रजातियाँ स्थानिक हैं।

अरैक्निडाः अंडमान और निकोबार में मकड़ियों के बारे में जानकारी अभी प्रारंभिक चरण में है। यहाँ लगभग 103 मकड़ी प्रजातियों का पता चला है जिनमें से 20 प्रजातियाँ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की स्थानिक प्रजातियाँ हैं।

मत्स्य: मीठे जल की मछलियाँ वे हैं जो अपना कुछ या पूरा जीवन मीठे जल में बिताती हैं जैसे कि नदियों और झीलों में जिसमें लवणता 0.05% से कम होती है। भारत में मीठे जल में पायी जाने वाली मछलियों की कुल 951 प्रजातियाँ हैं जिनमें से 77 प्रजातियाँ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पायी गई हैं। 

एम्फिबिया : दिनेश (2009) ने कुल 284 प्रजातियों के एम्फिवियंस (उभयचरों) का दस्तावेजीकरण किया था। उभयचरों पर अधिकांश अध्ययन भारत के पश्चिमी भाग में किए गए थे। दिनेश और अन्य के लगातार कार्य (2010, 2011, 2012, 2013, 2015) से इनकी 384 प्रजातियों का पता लगाना संभव हो सका है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में उभयचरों की कुल 19 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं।"

रेपटीलिया (सरीसृप): अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रेपटीलिया (सरीसृप) की 82 प्रजातियाँ पायी गयी हैं जिनमें साँपों की 39 प्रजातियाँ, घरेलु छिपकली (गेको) की 15 प्रजातियाँ, स्किंक की 11 प्रजातियाँ, छिपकलियों की नौ प्रजातियाँ, कछुओं की सात प्रजातियाँ और मगरमच्छ की एक प्रजाति शामिल हैं। बाद में दास (1994) ने अंडमान और निकोचार द्वीप समूह के उभयचरों और सरीसृपों की चेकलिस्ट तैयार की।

एवीजः पक्षियों की कुल 377 प्रजातियाँ/उपप्रजातियाँ (268 प्रजातियाँ और 81 उप प्रजातियाँ) पायी जाती हैं। 30 प्रजातियाँ स्थानिक हैं जिनमें से 21 प्रजातियाँ अंडमान द्वीप समूह से और नौ प्रजातियाँ निकोबार द्वीप समूह से दर्ज की गई हैं। द्वीपों पर इनका फैलाव सीमित है। 42 पक्षी प्रजातियाँ संकटापन्न हैं।

स्तनपायीः भारत में स्तनधारियों की कुल 426 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्तनधारियों की कुल 60 प्रजातियों को दर्ज किया गया है।

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के विशेष जीव-जंतु 

नारियल केकड़ा बिरगस लैट्रो (लीनियस, 1767) - नारियल केकड़ा या लुटेरा केकड़ा या ताड़ चोर केकड़ा (Birgo Latro Linnaeus, 1767) कोएनोबिटिडे गण (फैमिली) और एनोमुरा इन्फ्राऑर्डर के अंतर्गत आता है। नारियल केकड़ा दुनिया का सबसे बड़ा स्थलीय आर्थोपोड है जो हर्मिट केकड़ों और झींगा मछलियों से सम्बन्धित है। यह बिरगस जीनस की एकमात्र प्रजाति है जो भूमि पर मौजूद रहने के लिए अनुकूलित हो सकता है और पेलाजिक लार्वा के लिए समुद्री जल पर निर्भर करता है। वयस्क नारियल केकड़ों का आकार भिन्न हो सकता है। यह 40 से.मी. तक बढ़ सकता है और इसका पैर 0.91 मीटर से अधिक तक पहुँच सकता है। इस प्रजाति में किशोरावस्था में सुरक्षा के लिए एक खाली गैस्ट्रोपॉड खोल होता है लेकिन वयस्क अपने पेट पर एक मजबूत एक्सोस्केलेटन (बाह्य कंकाल) विकसित करते हैं और खोल रखना बंद कर देते हैं।

लांग-टेल्ड मकाकः मकाका फासीक्यूलेरिस अम्ब्रोसा मिलर, 1902 - यह निकोबार द्वीप समूह में ग्रेट निकोबार द्वीप, कत्त्चल द्वीप और लिटिल निकोबार द्वीप में पाये जाते हैं। मैंग्रोव और तटीय वन इनके पसंदीदा आवास हैं। ये समुद्र तल से 600 मीटर की ऊँचाई पर अंतःस्थलीय वन में भी पाये जाते हैं। लम्बी पूंछ वाला मकाक भारत में एक लुप्तप्राय नरवानर (प्राइमेट) है और इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-1 में सूचीबद्ध किया गया है।

नारकोंडम हॉर्नबिल एसरोसनारकोंडामी ह्यूम, 1873 - हॉर्नबिल की 55 विभिन्न प्रजातियाँ एशिया और अफ्रीका में पाई जाती हैं। एशिया के भीतर मौजूद हॉर्नबिल की 31 प्रजातियों में से भारतीय हॉर्नबिल की 9 प्रजातियाँ हैं जिनमें से 4 प्रजातियाँ भारत में स्थानिक हैं और उनमें से एक प्रजाति नारकोंडम द्वीप में मौजूद है। इस प्रजाति को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आइयूसीएन) श्रेणियों के अनुसार एक लुप्तप्राय प्रजाति माना जाता है और यह वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-1 के तहत संरक्षित है।

मोटे अनुमान के अनुसार इस द्वीप में हॉर्नबिल की आबादी लगभग 700-1100 है और लगभग 68-85 प्रजनन जोड़े द्वीप पर मौजूद हैं। निकोबार मेगापोड मेगापोडियस निकोबारिएन्सिस ब्लिथ, 1846 निकोबार मेगापोड (मंगापोडियस निकोबारिएन्सिस) मंगापोड्स के गण (फैमिली) मेगापोडिडी का सदस्य है। आइयूसीएन ने इन मेगापोड प्रजातियों को वर्गीकृत किया है और उन्हें अतिसंवेदनशील के रूप में सूचीबद्ध किया है। ये प्रजातियाँ केवल भारत के निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती हैं। जन्म के समय नवजात के पूरी तरह से पंख होने के कारण वे उड़ने में सक्षम होते हैं। उन्हें माता-पिता की देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है। ये पक्षी एकांगी होते हैं।

संरक्षण प्रयास

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भूमध्यरेखीय क्षेत्र में स्थित है और वनस्पतियों और जीव जंतुओं की प्रचुरता से संपन्न है। कई प्रजातियाँ स्थानिक हैं और द्वीप के भौगोलिक पृथक्करण के कारण छोटे क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। यही कारण है कि प्राकृतिक प्रणालियों में आने वाला कोई भी परिवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र को अव्यवस्थित कर सकता है। पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए 87% क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। यहाँ 105 संरक्षित क्षेत्रों को (नौ राष्ट्रीय उद्यान और 96 वन्य जीवन अभयारण्य) स्थल पर 1271.12 किमी. स्क्वायर और आसपास के प्रादेशिक सागर में 349.04 कि.मी. स्क्वायर के क्षेत्र में स्थापित किया गया है। इसके अलावा इन द्वीपों के स्थानिक जीवों की रक्षा के लिए ग्रेट निकोबार को बायोस्फीयर (जैवमंडल) रिजर्व घोषित किया गया है।

संदर्भ

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2. Turner et al., 2001
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4. Champion and Seth (1968)
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8. Mondal et al., 2016 &2017
9. Rao, 2016
10. Kelkwitz and Marson, 1908
11. Budd and Jensen, 2000


लेखक वैज्ञानिक-ई और भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, अंडमान और निकोबार क्षेत्रीय केंद्र में प्रभारी अधिकारी हैं। ईमेल: sivaperuman)@rediffmail.com

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