विषाणुओं का भय

उपभोक्ता बाजार विषाणु मुक्त करने वाले तरल साबुनों की बाढ़ से अट सा गया है। इसके विपरीत प्रभावों को लेकर सार्वजनिक एवं वैज्ञानिक बहस जारी है। साबुन कंपनियां इसके विपरीत प्रभाव जानते हुए भी सरकारी या कानूनी नियमन की आड़ में उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहीं हैं। मांसपेशियों की पकड़ को कम करने वाले ये साबुन आज अनिवार्यता बनते जा रहे हैं। ऐसे में इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए यथोचित कदम उठाना आवश्यक हो गया है।लाइफबॉय और डेटॉल जैसे हाथ धोने वाले साबुन आपको कीटाणुओं से 99 प्रतिशत सुरक्षा का वायदा करते हैं। इस दावे का आधार ट्रिक्लोसान नाम का एक विषाणुनाशक है, जिसका पिछले 40 वर्षों से उपयोग हो रहा है। इसके बावजूद पिछले दशक में इस सक्रिय रसायन के स्वास्थ्य पर पड़ रहे परिणामों की पड़ताल प्रारंभ हुई। इस नए अध्ययन के कुछ नए प्रमाण भी सामने आए हैं। इससे पता चला है कि इस रसायन से पशुओं की मांसपेशियों के संकुचन में कमी आई हैं।

कैल्शियम की कमी - ट्रिक्लोसान के प्रभावों का आकलन करने के लिए अमेरिका में डेविस स्थित केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने चूहों एवं मछलियों को इस रसायन के विभिन्न मात्रा में खुराकें दीं। चूहों में दोनों तरह की मांसपेशियों में दुर्बलता पाई गई? वास्तविकता तो यह है कि चूहों को 25 मि.ग्रा. / प्रतिकिलो के हिसाब से सर्वाधिक मात्रा में ट्रिक्लोसान देने से उनके हृदय से निकलने वाले प्रवाह में 25 प्रतिशत की कमी आई। इस रसायन के शरीर की मांसपेशियों पर भी गंभीर कुप्रभाव पड़े एवं चूहों की पकड़ने की क्षमता में 18 प्रतिशत की कमी आई।

इसी तरह फेटहेड मिन्नो नाम की मछली के लार्वा को सात दिन तक ट्रिक्लोसान मिश्रित पानी में रखने से उनके तैरने की क्षमता व सहनशीलता में भी कमी आई। मुख्य शोधकर्ता इसाक पेस्साह का कहना है ‘भौतिक रूप से ट्रिक्लोसान रासायनिक प्रदूषक जैसे पोलोक्लोरिनेटेड बाइफिनायल ही है, जो कि सामान्यतया खिलौनों में पाया जाता है और यह घोषित तौर पर स्नायु तंत्र को प्रभावित करने वाला एक जहरीला पदार्थ है और इस पर पिछले 15 वर्षों से कार्य भी चल रहा है। इन्हें रायनोडाइन रिसेप्टर की कार्यप्रणाली में परिवर्तन करने वाला समझा जाता है, जो कि सेल के भीतर कैल्शियम आयन या आयनिष्ट के प्रवाह का नियमन करता है।

उन्होंने बताया कि सभी कोशिकाएं कैल्शियम आयन का भंडारण करती हैं। ये मांसपेशियों के संकुचन के लिए आवश्यक है क्योंकि ये मांसपेशियों के बारिक फिलामेंटो से जोड़कर रखती हैं। इस संकुचन की पकड़ को बनाए रखने के लिए कोशिकाएं इसे विशिष्ट हिस्सों में छोड़ती हैं। लेकिन ट्रिक्लोसान के परिणामस्वरूप ये आयने कम मात्रा में बाहर आते है एवं इस वजह से पकड़ में कमी आ जाती है।

यदि लंबे समय तक इस रसायन के संपर्क में रहें तो पकड़ में पूर्ण गिरावट या कमी आ सकती है। इन खोजों को प्रयोगशाला में सेल कल्चर (विश्लेषण) के द्वारा सिद्ध किया गया है।

अब समय आ गया है कि ट्रिक्लोसान के इस्तेमाल को चिकित्सकीय एवं अस्पतालों में इस्तेमाल तक सीमित कर दिया जाए, जहां पर कि इसके इस्तेमाल को न्यायोचित ठहराया जा सकता है।अकेला मामला नहीं - पूर्व के अध्ययनों ने भी ट्रिक्लोसान के हारमोंस की गतिविधियों पर विपरीत प्रभाव प्रमाणित किए थे। उदाहरण के लिए वर्ष 2006 में केनेडा के विक्टोरिया विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया था कि ट्रिक्लोसान के संपर्क में आने के बाद मेंढक के थायराइड हारमोन के स्तर में कमी पाई गई थी। अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी द्वारा वर्ष 2009 एवं 2010 में किए गए अध्ययनों से यह बात सामने आई थी। इस रसायन से चूहों के यौन क्रिया से संबंधित हारमोंस में परिवर्तन आया एवं थायराइड हारमोंस में कमी आई। हालांकि इसकी मात्रा को देखते हुए ट्रिक्लोसान को प्रतिबंधित करने पर विचार नहीं किया गया। विशेषज्ञों का तर्क है कि कृंतक (चूहे) एवं मनुष्यों के मानसिक एवं हारमोन संबंधी क्रियाकलाप में मूलभूत अंतर होता है। वहीं पेस्साह का कहना है ‘लेकिन कैल्शियम आयन का प्रवाह तो एक मूलभूत प्रणाली है, जिसके माध्यम से सभी प्रजातियों की मांसपेशियों की सिकुड़न का नियमन होता है। अतएव हमें जो प्रभाव चूहे में दिखाई देंगे वे मनुष्यों के लिए भी प्रासंगिक होंगे।

लेकिन साबुन कंपनियां वैज्ञानिक प्रमाणों के बावजूद टस से मस नहीं हुई हैं। वे सरकारी नियमन का इंतजार कर रही हैं। लाईफबॉय हैंडवाश बनाने वाली कंपनी यूनिलीवर के प्रवक्ता का कहना है ‘यूनिलीवर बहुत सीमित उत्पादों में ट्रिक्लोसान का प्रयोग करती है। ये उत्पाद उपभोक्ताओं को वास्तविक लाभ प्रदान करते हैं और हम विश्वभर में निर्धारित सीमा के अंतर्गत ही इनका उपयोग कर रहे हैं। इसके अलावा हम ट्रिक्लोसान की स्थिति की निगरानी एवं समीक्षा करते रहेंगे।’

लेकिन विदेशों में सरकारी एजेंसियां जैसे अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) इसे लेकर चिंतित हैं। इसके द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समूह ने पाया था कि ट्रिक्लोसान औसत उपभोक्ता के लिए बहुत फायदेमंद नहीं है। एजेंसी शीघ्र ही ट्रिक्लोसान के इस्तेमाल के लिए दिशानिर्देश तय करने जा रही है। इस समिति के सदस्य एवं अरिजोना विश्व विद्यालय स्थित सेंटर फॉर एनवायरमेंटल बायो टेक्नोलॉजी के रॉल्फ हाल्डेन का कहना है कि ‘अध्ययनों से यह स्पष्ट हो रहा है कि उपभोक्ता को सूक्ष्म कीटाणुनाशक साबुन या सामान्य साबुन के इस्तेमाल से कोई लाभ नहीं होता है। नए शोधों ने तो इसके मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभाव एवं ट्रिक्लोसान के परिणामस्वरूप पर्यावरणीय प्रदूषण का दस्तावेजीकरण भी किया है। अब समय आ गया है कि ट्रिक्लोसान के इस्तेमाल को चिकित्सकीय एवं अस्पतालों में इस्तेमाल तक सीमित कर दिया जाए, जहां पर कि इसके इस्तेमाल को न्यायोचित ठहराया जा सकता है।

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