पश्चिमबंगाल पंचायत चुनाव-2023 में पर्यावरण एक बड़ा अहम मुद्दा बना। नदी और पर्यावरण राजनीतिक दलों के एजेंडे से कहीं अधिक आम लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने।
जोशीमठ व हिमालय में हो रही भीषण आपदाओं को लेकर मातृ सदन में तीन दिवसीय (12 से 14 फरवरी, 2023) अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। सम्मेलन में श्री जयसीलन नायडू, जो दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति व महान राजनीतिज्ञ श्री नेल्सन मंडेला जी के सरकार में मंत्री रह चुके हैं, देश के विभिन्न अन्य बुद्धिजीवी व पर्यावरणविद मौजूद रहेंगे।
Posted on 30 Jan, 2014 09:35 AMखुली हुई आर्थिकी के यदि कुछ लाभ हैं तो खतरे भी कम नहीं। ये खतरे अलग-अलग रूप धरकर आ रहे हैं; आगे भी आते रहेंगे। जरूरत अंतरराष्ट्रीय
Posted on 09 Jan, 2014 03:05 PMभारत को बड़ी राहत देते हुए हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने पाकिस्तान की आपतियों को खारिज कर दिया और जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा नदी से पानी का प्रवाह मोड़कर विद्युत उत्पादन करने के नई दिल्ली के अधिकार को बरकरार रखा है।
Posted on 03 Dec, 2013 03:08 PMसचमुच घर की लड़ाई। गृह युद्ध। भाई ने भाई को मारा। दूर बैठे देशों ने दोनों को अपने-अपने हथियार बेचे, एक दूसरे को मारने के लिए। नतीजा है कोई एक लाख लोग मारे जा चुके हैं और करीब 20 लाख लोग अपने घरों से उजड़ कर पड़ोसी देशों में शरणार्थी बन कर भटक रहे हैं। सीरिया की इस भारी विपत्ति के पीछे सिर्फ संप्रदायों के सद्भाव की कमी नहीं है। वहां तो पर्यावरण, प्रकृति के प्रति भी सद्भाव की कमी आई और सबका नतीजा निकला यह रक्तपात। हम कुछ सबक सीखेंगे?
वैज्ञानिक हमें बराबर चेतावनी दे रहे हैं कि आने वाले बीस-तीस बरस में हमारे देश के भूजल भंडार का कोई 60 प्रतिशत भाग इस बुरी हालत में नीचे चला जाएगा कि फिर हमारे पास ऊपर से आने वाली बरसात, मानसून की वर्षा के अलावा कुछ बचेगा नहीं। हमारा समाज ऐसी किसी प्राकृतिक विपदा को सहने के लिए और भी ज्यादा मजबूत हो चला है। लेकिन इससे बेफ्रिक तो नहीं ही हुआ जा सकता। धरती गरम हो रही है। मौसम, बरसात का स्वभाव बदल रहा है। इसलिए बिना सोचे समझे भूजल भंडारों के साथ ऐसा जुआ खेलना हमें भारी पड़ सकता है। अपने ही लोगों पर जहरीले रासायनिक हथियारों से हमला करने वाले सीरिया को सबक सिखाना चाहता है अमेरिका। उस पर हमला कर। पर अमेरिका के ही संगी साथी देश उसे इस हमले से रोकने में लगे हैं। लेकिन बाकी दुनिया अभी भी ठीक से समझ नहीं पा रही कि सीरिया के शासक बशर अल-असद ने आखिर अपने लोगों पर यह क्रूर अत्याचार भला क्यों किया है। तुर्की के पुराने उसमानी साम्राज्य के खंडहरों में से कांट-छांट कर बनाया गया था यह सीरिया देश। इसमें रहने वाले अलाविया और सुन्नियों, दुरूजी और ईसाइयों के बीच पिछले कुछ समय से चला आ रहा वैमनस्य निश्चित ही इस युद्ध का एक कारण गिनाया जा सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि अभी कुछ ही समय पहले अरब में बदलाव की जो हवा बही थी और जो छूत के रोग की तरह आसपास के कई देशों में फैल चली थी, उसी हवा ने अब सीरिया को भी अपनी चपेट में ले लिया है।
Posted on 02 Dec, 2013 03:11 PMभूजल प्रभावित इलाकों में जिंक, मैगनीज, कॉपर, पारा, क्रोमियम, सीसा, निकिल जैसी हानिकारक धातुओं की मात्रा मानक से अधिक मिली है। अभी केवल 350 टन कचरे के निपटान को लेकर प्रक्रिया चल रही है, किंतु उससे कहीं अधिक न दिखने वाला कचरा कारखाने के आसपास पानी और मिट्टी में पाया गया है। उसका निपटान करना भी उतना ही जरूरी है। तीन किलोमीटर के क्षेत्र में किए गए अध्ययन से साफ हो गया है कि यहां घातक और जहरीले रसायन भीतर मिट्टी और पानी में मौजूद हैं। भोपाल गैस त्रासदी को इस दिसंबर में 30 साल हो जाएंगे। इस बड़ी अवधि में मध्य प्रदेश और केन्द्र सरकार मिलकर भी यहां पड़े जहरीले कचरे का निपटान नहीं कर पाई हैं। हर साल बारिश के साथ इसका रिसाव भूमि में होता है और अब आशंका की जा रही है कि यह रिसाव लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में फैल गया है। तीन दिसंबर सन् 1984 को भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने में हुई गैस त्रासदी के बाद के तीस वर्षों के दौरान यहां कई तरह के अध्ययन हुए हैं। अभी हाल ही में दिल्ली की संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा एक अध्ययन किया गया है। अध्ययन के बाद इस संस्था ने देश भर के विशेषज्ञों के साथ बैठकर इस घातक प्रदूषण से मुक्ति पाने की एक योजना बनाई ताकिवर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को इसका ख़ामियाज़ा न भुगतना पड़े। उस भयानक हादसे के बाद किसी संस्था ने पहली बार इस तरह के काम की सामूहिक पहल की है।
किसानों, मज़दूरों ने झूठे विकास को एक स्वर से नकार दिया
राज्य सरकार, प्रशासन, जनता के प्रतिनिधि, सरकारी दलाल व ठेकेदार यह कहते नहीं थकते कि किसानों ने तो स्वयं ही मुआवजा लिया। किसानों ने अपनी ज़मीन छोड़ी। गांव से हट गए। लेकिन जिला प्रशासन क्या इस बात का वास्तविक प्रमाण दे सकता है कि किसानों ने अपनी सहमति, समझ से ज़मीन दी और मुआवजा लिया, सिवाय प्रशासन के इस दावे के कि कुछ किसानों ने करार पत्र पर हस्ताक्षर किया है और उन्होंने मुआवज़े का चेक प्राप्त कर लिया है। क्या एसडीएम व लेखपाल द्वारा फार्म नम्बर 11 करार पत्र पर हस्ताक्षर होना किसानों की सहमति का आधार है?इलाहाबाद के किसानों व मज़दूरों ने यमुनापार में स्थापित होने जा रहे तीन दैत्याकार ताप विद्युत घरों को सर्वसम्मति से नकारकर निर्णायक संघर्ष प्रारंभ कर दिया है। किसानों द्वारा जोरदार आन्दोलन व न्याय की फरियाद पर करछना में जहां हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण रद्द कर दिया है, वहीं मेजा तहसील के कोहड़ार में एनटीपीसी का दृढ़ता के साथ विरोध किया जा रहा है। मेजा ऊर्जा निगम प्रा.लि. (संयुक्त उपक्रम एनटीपीसी) के नाम से लग रही इस ताप विद्युत उत्पादक कंपनी के खिलाफ भी बड़ा आन्दोलन शुरू हो गया है। यहां पर प्रभावित सात ग्राम सभाओं ने सर्वसम्मति से विस्थापन विरोधी मंच गठित कर न केवल आन्दोलन का आगाज कर दिया है, बल्कि उन्होंने अपनी ज़मीन को अधिग्रहण से मुक्त करने का मजबूत दावा भी प्रस्तुत किया है। इनका आधार बन रहा है, उत्तर प्रदेश लैण्ड एक्यूजन (डिटरमिनेशन ऑफ कम्पंसेशन एण्ड डेक्लरेशन ऑफ अवार्ड बाई एग्रीमेंट) रूल्स 1997, जिसका कलेक्टर द्वारा खुलेआम उल्लंघन किया गया है।